मध्य प्रदेश में चल रहे सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ और राज्यपाल लाल जी टंडन के बीच लेटर वॉर जारी है। सोमवार शाम को राज्यपाल ने कमलनाथ को पत्र लिखकर कहा था कि वह मंगलवार को बहुमत साबित करें। अब कमलनाथ ने राज्यपाल को मंगलवार को लिखे ताज़ा पत्र में कहा है कि उनके ऊपर संसदीय मर्यादाओं का पालन न करने का जो आरोप राजभवन की ओर से लगाया गया है, उससे वह दुखी हैं।
कमलनाथ ने पत्र में लिखा, ‘कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण ही विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही को 26 मार्च तक के लिये स्थगित किया है।’ कमलनाथ ने राज्यपाल को संबोधित करते हुए लिखा है, ‘आपने (राज्यपाल) अपने पत्र में लिखा है कि मैंने बहुमत परीक्षण कराने में आनाकानी की है। जबकि पिछले 15 महीनों में मैंने सदन में कई बार बहुमत सिद्ध किया है। अब यदि बीजेपी यह आरोप लगा रही है कि मेरे पास बहुमत नहीं है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाकर बहुमत परीक्षण करा सकती है।’
मुख्यमंत्री ने लिखा है, ‘मैंने आपको कई बार अवगत कराया है कि बीजेपी के नेताओं द्वारा कांग्रेस के 16 विधायकों को बेंगलुरू में होटल और रिसॉर्ट में कर्नाटक पुलिस की मदद से बंदी जैसी स्थिति में रखा गया है और उन्हें भोपाल आने से रोका जा रहा है।’
अंत में कमलनाथ ने कहा है, ‘कथित रूप से बंदी बनाये गये 16 कांग्रेसी विधायकों को स्वतंत्र होने दीजिए और बिना किसी दबाव के उन्हें उनके घर पर रहने दीजिए ताकि वे स्वतंत्र मन से अपना निर्णय ले सकें।’ सुप्रीम कोर्ट ने भी मंगलवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए विधानसभा स्पीकर, राज्यपाल और मुख्यमंत्री को नोटिस जारी किया है। अब इस मामले में बुधवार को सुनवाई होगी।
भारी शोरगुल और हंगामे के बीच सोमवार को मध्य प्रदेश विधानसभा को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। इसका कारण कोरोना वायरस का संक्रमण बताया गया था। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल लाल जी टंडन को चिट्ठी सौंपकर बहुमत का दावा किया था। चौहान ने कहा था कि कमलनाथ सरकार को सिर्फ 92 विधायकों का समर्थन हासिल है जो बहुमत से कम है। बीजेपी ने 106 विधायकों को राज्यपाल के सामने पेश किया था।
‘राज्यपाल स्पीकर के मार्गदर्शक नहीं’
कमलनाथ ने सोमवार को राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर कहा था, ‘विधानसभा अध्यक्ष के कार्य में हस्तक्षेप करना राज्यपाल के क्षेत्राधिकार में नहीं आता और राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष के मार्गदर्शक या परामर्शदाता नहीं हैं। राज्यपाल अध्यक्ष से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि अध्यक्ष उस तरीक़े से सदन में कार्य करें जो राज्यपाल संवैधानिक दृष्टि से उचित समझते हैं। राज्यपाल तथा अध्यक्ष, दोनों की अपनी-अपनी स्वतंत्र संवैधानिक जिम्मेदारियां हैं।’