एमपी: ‘शिवराज बदलो मुहिम’ की हवा निकली, सियासी विरोधी चित

08:22 pm Jun 07, 2021 | संजीव श्रीवास्तव - सत्य हिन्दी

मध्य प्रदेश में ‘शिवराज बदलो मुहिम’ की हवा निकल गई है। बेहद दिलचस्प बात यह है कि उन नेताओं ने ही ‘शिवराज बदलो मुहिम’ की हवा निकलने के संकेत दिये जो पिछले कुछ दिनों से मेल-मुलाक़ातें कर इस मुद्दे पर सियासी सरगर्मियां बढ़ाते ‘नज़र’ आ रहे थे।  

मध्य प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का सोमवार को बयान आया, ‘राज्य में नेतृत्व परिवर्तन संबंधी खबरें वॉट्स एप यूनिवर्सिटी की खुराफात है। योग्यता न रखने वाले वाइस चांसलर, वॉट्स एप पर नेतृत्व परिवर्तन संबंधी निराधार खबरें वायरल कर रहे हैं।’

मिश्रा ने कहा, ‘नेतृत्व परिवर्तन संबंधी वॉट्स एप पर वायरल सभी खबरें फेक हैं। इन भ्रामक और असत्य खबरों पर ध्यान न दें।’ नरोत्तम मिश्रा ने यह भी कहा, ‘शिवराज सिंह मुख्यमंत्री थे, मुख्यमंत्री हैं और आगे भी रहेंगे। इसलिये वॉट्स एप और फेसबुक की निराधार खबरों को आधार न बनायें।’

बता दें, मध्य प्रदेश में बीते सप्ताह भर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं की सिलसिलेवार मेल-मुलाक़ातों के तेज दौर, डिनर डिप्लोमेसी और अन्य गतिविधियों ने सियासी सरगर्मियां बढ़ाते हुए नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को जन्म दिया हुआ था।

विजयवर्गीय की मुलाक़ातें 

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश की राजनीति में एक समय बड़ा रूतबा रखने वाले कैलाश विजयवर्गीय बीते सप्ताह नरोत्तम मिश्रा से मिलने भोपाल स्थित उनके सरकारी घर पर पहुंचे थे। दोनों नेताओं के बीच घंटे भर तक बंद कमरे में ‘बातचीत’ चली थी।

विजयवर्गीय ने भोपाल के बाद केन्द्रीय मंत्री और अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता प्रहलाद पटेल के दिल्ली आवास में डिनर किया था। विजयवर्गीय की अन्य नेताओं से भी भोपाल और दिल्ली में मुलाक़ातें हुईं थीं।

प्रभात झा सक्रिय

इधर, भोपाल में विजयवर्गीय के ठीक बाद बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा के पूर्व सदस्य प्रभात झा ने नरोत्तम मिश्रा के घर पहुंचकर बंद कमरे में उनसे ‘लंबी चर्चा’ की थी। झा की गिनती शिवराज के धुर विरोधियों में होती है। 

विजयवर्गीय और झा के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कृपापात्रों में शुमार किये जाने वाले मध्य प्रदेश बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष वी.डी.शर्मा के नरोत्तम मिश्रा के घर ‘चर्चा’ के लिए पहुंचने से नेतृत्व परिवर्तन संबंधी अटकलें तेज होने लगी थीं।

तमाम सियासी गुणा-भाग के बीच शिवराज सरकार के अनेक मंत्रियों एवं विधायकों ने भी विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा से मेल-मुलाकातें कीं। मुलाक़ातों के बाद दी गईं सियासत गरमाने वाली प्रतिक्रियाओं ने तमाम अटकलों को भरपूर बल दिया और संभावनाओं को बढ़ाया।

विजयवर्गीय का सुर भी मिश्रा जैसा 

मप्र के मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदारों में लंबे वक्त से शुमार कैलाश विजयवर्गीय ने भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को खारिज़ करते हुए आज वही कहा जो नरोत्तम मिश्रा बोले। विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री बदलने संबंधी सवाल के जवाब में मीडिया से कहा, ‘शिवराज जी के नेतृत्व में ही मध्य प्रदेश चलेगा।’ 

नेतृत्व परिवर्तन संबंधी अटकलों से जुड़े सवालों के जवाब में उन्होंने कहा, ‘मीडिया कुछ भी कहानी बनाता रहे, नेतृत्व परिवर्तन को लेकर जो भी छप रहा है या सोशल मीडिया में चल रहा है, उसमें कोई दम नहीं है। सब बकवास है। सामान्य मेल मुलाकातों को राजनीतिक रंग देना उचित नहीं है।’

जब उनसे पूछा गया कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में उनका नाम भी लिया गया है तो विजयवर्गीय ने कहा, ‘मैं अभी दूसरी जगह लगा हुआ हूं।’

सीएम बनने की दौड़ में कई नाम

मध्य प्रदेश में कई नेता खुद को शिवराज के विकल्प के तौर पर देखते हैं। ऐसे नेताओं में नरोत्तम मिश्रा का नाम ऊपरी पायदान पर रहता आया है। कमल नाथ सरकार गिरने के बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में मिश्रा का नाम शुमार भी रहा था। दिल्ली से अच्छे संबंध रखने वाले मिश्रा का पत्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया के वीटो के चलते कट जाने की चर्चा जोरों पर रही थी। अंत में शिवराज चौथी बार सीएम की कुर्सी पाने में सफल रहे थे।

शिवराज के बड़े और प्रमुख विकल्प के तौर पर केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी उछलता रहा है। सिंधिया की बीजेपी में एंट्री और कथित तौर पर संबंधों में आयी खटास के बाद तोमर का नाम अब नीचे की और खिसकने की चर्चाएं जोरों पर हैं। 

यह भी कहा जा रहा है कि सिंधिया कभी भी नरोत्तम मिश्रा को सीएम बनने देना नहीं चाहेंगे। वे नहीं चाहेंगे कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कोई भी नेता इतना पावरफुल हो, जिससे उनका (स्वयं सिंधिया का) कद या रुतबा कम हो। 

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वी.डी.शर्मा भी मुख्यमंत्री पद की चाह रखते हैं। संघ के करीबी होने की वजह से उनकी यह महत्वाकांक्षा कुलाचें भरती हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। 

सवाल बरकरार कौन होगा सीएम?

मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन संबंधी अटकलों को कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा ने आगे आकर खारिज करते हुए भले ही फिलहाल बदलाव की सुगबुगाहट को विराम लगा दिया, लेकिन अभी यह सवाल समाप्त नहीं हुआ है कि भविष्य में शिवराज बदले जाते हैं तो सीएम कौन होगा?

सीएम पद के तमाम उपरोक्त दावेदारों के अलावा एक अन्य अहम नाम प्रहलाद पटेल का भी लिया जाता है। शिवराज के विरोधियों में गिने जाने वाले पटेल ओबीसी वर्ग से आते हैं।

ओबीसी वर्ग से होना ही उन्हें सीएम पद का प्रबल दावेदार बनाता है। असल में राज्य में कुल वोटरों में 40 प्रतिशत के आसपास वोट बैंक ओबीसी ही है। केन्द्र में पैठ, सहजता एवं सरलता भी प्रहलाद पटेल के नंबर बढ़ाती है।

ओबीसी वर्ग के पास कुर्सी 

मध्य प्रदेश में साल 2003 से 2013 तक तीन चुनावों के दौरान तीन सीएम हुए। तीनों ओबीसी वर्ग से रहे। ओबीसी वर्ग की उमा भारती ने दिग्विजय सिंह को रिप्लेस किया था। भारती गईं तो ओबीसी वर्ग के बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी मिली। गौर हटे तो इसी वर्ग से आने वाले शिवराज सीएम बनाये गये। 

सीएम बनने के बाद शिवराज ने ऐसा खूंटा गाड़ा कि उसे अब तक कोई उखाड़ नहीं पाया है। 

‘पहले दावेदार एक तो हों’

मध्य प्रदेश में लंबे वक्त से बीजेपी को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राकेश अग्निहोत्री ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘नेतृत्व परिवर्तन तब हो सकता है, जब इस मसले को हवा देने वाले एक हों। एक अनार है, और सौ बीमार हैं। ऐसे में शिवराज को मुख्यमंत्री पद से हटाना संभव नहीं है।’

अग्निहोत्री यह भी कहते हैं, ‘जो खूबियां शिवराज में हैं, वैसी खूबियों वाला दूसरा लीडर मध्य प्रदेश में फिलहाल तो नज़र नहीं आता है। दीनता-हीनता वाला भाव शिवराज का सबसे बड़ा प्लस पाइंट है।’ 

‘नये प्रेशर ग्रुप खड़ा करने की कवायद’

मध्य प्रदेश के राजनैतिक विश्लेषक और सीनियर जर्नलिस्ट प्रभु पटैरिया नेतृत्व परिवर्तन की मौजूदा हवाबाजी को नये प्रेशर ग्रुप खड़ा करने की कवायद बता रहे हैं। पटैरिया ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा कि कभी मध्य प्रदेश बीजेपी में बहुत ही प्रभावी प्रेशर ग्रुप होता था। 

सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, कृष्ण मुरारी मोघे, सुमित्रा महाजन, विक्रम वर्मा, रघुनंदन शर्मा से लेकर कप्तान सिंह सोलंकी सरीखे धाकड़ नेतागण इस ग्रुप का हिस्सा होते थे। सीएम कोई भी रहे, प्रेशर ग्रुप के आगे हर मुख्यमंत्री काफी बौना हुआ करता था।

प्रेशर ग्रुप जब-तब सीएम के पर कतर दिया करता था। चैक एंड बैलेंस हो जाया करता था। मनमानी नहीं हो पाती थी। वक्त के साथ संगठन का कद घटता गया। प्रेशर ग्रुप और धाकड़ नेता नेपथ्य में चले गये। पटैरिया आगे कहते हैं, ‘विजयवर्गीय और उनके जैसे अन्य वरिष्ठ नेता पूर्व की तरह प्रेशर ग्रुप खड़ा करने की कवायद कर रहे हैं।’

2023 में होने हैं चुनाव

मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव 2023 में होने हैं। विधानसभा चुनाव के पूर्व स्थानीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होंगे। स्थानीय निकाय चुनाव कोविड की वजह से टाले गये हैं। तमाम उठापटक की वजह ये चुनाव भी माने जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश में उठी ‘बदलाव’ की बयार को यूपी और कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चली सुगबुगाहटों से जोड़ा गया। यूपी में योगी आदित्यनाथ को ‘जीवनदान’ मिल गया है, लिहाजा ऐसा माना जा रहा है कि केन्द्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश को लेकर भी अभी वेट और वॉच के मूड में आ गया है।

शिवराज सिंह दिखे सहज 

मध्य प्रदेश में बड़े नेताओं और पार्टी के विरोधियों की मेल-मुलाकातों के बीच शिवराज सिंह हमेशा की तरह सहज नजर आये। एकला चलो पर विश्वास रखने वाले शिवराज ने पूरी ‘कवायद’ को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। वे मुख्यमंत्री पद से जुड़े अपने कार्यों के निर्वहन में लगे रहे। 

तमाम सरगर्मियों एवं विरोधियों द्वारा की गई सियासत के बावजूद शिवराज के गिने-चुने निकटवर्ती मंत्रियों और विधायकों ने भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।

कुल मिलाकर ऐसा ध्वनित हुआ कि-‘शिवराज और उनके करीबी मानते हैं कि मुख्यमंत्री पद को लेकर दावेदार कभी एक नहीं हो पायेंगे और मध्य प्रदेश में शिव-राज चलता रहेगा।’