मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ और उनकी टीम की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। राज्यसभा चुनाव की तैयारियों के लिए बुधवार को भोपाल में बुलाई गई विधायकों की महत्वपूर्ण बैठक से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई और कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह सहित कई विधायक ‘ग़ायब’ रहे। इसके बाद से ही सवाल उठ रहा है कि क्या ‘कुछ और विधायक तो कांग्रेस का ‘हाथ’ नहीं छोड़ने वाले हैं?’
19 जून को मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होने हैं। तीन में दो बीजेपी और एक सीट कांग्रेस के खाते में जाने की संभावनाएं हैं। चूंकि बीजेपी में भी भारी खींचतान है, लिहाजा कांग्रेस दो सीटें हासिल करने की जुगतबाज़ी में जुटी हुई है।
कांग्रेस की जुगतबाज़ी और मशक्कत को बुधवार को तब तगड़ा झटका लगता नजर आया, जब विधायकों की बैठक में पार्टी के ही कई विधायक नहीं पहुंचे। राज्य की विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। फिलहाल 24 सीटें रिक्त हैं। कुल 206 विधायकों में से बीजेपी के पास 107 और कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। बीएसपी के दो, सपा के एक और निर्दलीय विधायकों की संख्या चार है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और मध्य प्रदेश के प्रभारी मुकुल वासनिक की उपस्थिति में कांग्रेस विधायकों की यह बैठक बुलाई गई थी। बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह, केपी सिंह, हिना कांवरे समेत आधा दर्जन से कुछ ज्यादा विधायक नहीं आये। एक विधायक कुणाल चौधरी को कोरोना हो गया है। वे भोपाल के सरकारी अस्पताल हमीदिया में भर्ती हैं।
बीजेपी ने कसा तंज
विधायकों के बैठक में ना आने से कांग्रेस की खूब भद्द पिटी। मध्य प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष विजेश लूनावत ने ट्वीट करते हुए कांग्रेस की चुटकी ली और कहा, ‘लो, अब ये क्या सुनाई दे रहा है...दादा भाई (दिग्विजय सिंह) के अनुज छोटे राजा (लक्ष्मण सिंह) भी ‘कंपनी बहादुर’ (कमल नाथ) की बैठक में नहीं पहुंचे। क्या वे अब तक खफ़ा हैं? कहीं राजा (दिग्विजय सिंह) के राज्यसभा जाने की राह में राघोगढ़ का रोड़ा तो नहीं पड़ रहा है!’
मामले को लेकर पार्टी गंभीर
इधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर नेता विधायकों के बैठक से नदारद रहने के मामले पर प्रतिक्रियाएं देने से बचते रहे। प्रदेश कांग्रेस के एक सूत्र ने ‘सत्य हिन्दी’ को बताया कि करीब आठ विधायक बैठक में नहीं आये। इनमें से ज्यादातर विधायकों ने बैठक से ग़ैर-हाजिर रहने का कारण और पूर्व सूचना पार्टी को नहीं दी थी। सूत्र ने कहा पार्टी ने इस मामले को गंभीरता से लिया है।
कमलनाथ सरकार के सत्ता में रहने तक कांग्रेस विधायक दल की बैठकों का हिस्सा रहने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के चार निर्दलीय विधायक, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक भी बैठक में नहीं आए।
इनके ‘गायब’ रहने के सवाल पर मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा ने ‘सत्य हिन्दी’ से प्रतिप्रश्न किया, ‘कांग्रेस की बैठक में इनका (बीएसपी, एसपी और निर्दलीय विधायकों) क्या काम?’
उन्हें याद दिलाया गया कि पूर्व में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में ये सभी आते रहे हैं। ‘सत्य हिन्दी’ ने शर्मा से कहा, ‘एक निर्दलीय विधायक ने बैठक में आने के आमंत्रण की पुष्टि की तो शर्मा हंसकर आगे बढ़ गये।’ कांग्रेस विधायकों की ग़ैर-हाजिरी के सवाल पर उनका जवाब था, ‘वजह मालूम करके बताता हूं।’
बीजेपी के पास हैं ज्यादा वोट
राज्यसभा में एक सीट जीतने के लिए 54 वोटों की ज़रूरत है। इस हिसाब से दो सीटें जीतने के लिए बीजेपी को कुल 108 विधायकों की ज़रूरत है। बीजेपी के पास उसके अपने 107 विधायक हैं। दोनों सीटें हासिल करने के लिए उसे महज एक विधायक की ज़रूरत होगी।
कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। यानी दो सीटें जीतने के लिए कांग्रेस को 16 विधायकों की आवश्यकता है। निर्दलीयों और बीएसपी-एसपी के विधायकों ने कमल नाथ सरकार गिरने के बाद से इनसे दूरी बना ली है। इस वजह से कांग्रेस को ज्यादा जोड़तोड़ करना होगी।
चूंकि कांग्रेस के अपने विधायक पार्टी के साथ नज़र नहीं आ रहे हैं, लिहाजा दृश्य यही बनता दिख रहा है कि कांग्रेस को एक ही सीट से संतोष करना पड़ेगा।
विधायकों की बग़ावत से बदली तसवीर
कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार बनाया है। जबकि बीजेपी से ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी प्रत्याशी हैं। जब राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ हुई थी तब विधानसभा में सदस्यों का गणित आज के दृश्य से ठीक उलट था।
कांग्रेस के पास कुल नंबर 120 (चार निर्दलीय, बीएसपी के दो और एसपी का एक सदस्य भी कांग्रेस के साथ) था और बीजेपी के विधायकों की संख्या 108 थी। कांग्रेस और बीजेपी के एक-एक विधायक की मृत्यु की वजह से दो सीटें रिक्त थीं। तब के गणित में कांग्रेस के खाते में दो और बीजेपी को एक सीट ही मिल पाने की उम्मीद थी।
कांग्रेस के 22 विधायकों द्वारा साथ छोड़ देने और बीजेपी में शामिल हो जाने पर कमल नाथ की सरकार चली गई थी और शिवराज की अगुवाई में बीजेपी सत्ता में लौट आयी थी। इसके बाद राज्यसभा में सीट मिलने की तसवीर भी उलट गई।