कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की शनिवार को हुई बैठक में राहुल गाँधी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की। सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राहुल गाँधी ने पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी, लेकिन इसे मंजूर नहीं किया गया गया। सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी लोकसभा चुनाव में मिली हार को स्वीकार करती है, लेकिन राहुल गाँधी ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे। ख़बरों के मुताबिक़, राहुल गाँधी ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में कहा कि वह पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं और अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं।
बैठक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, गुलाम नबी आजाद, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित कई बड़े नेता शामिल रहे।बता दें कि कांग्रेस 2014 के मुक़ाबले इस चुनाव में सिर्फ़ 8 सीटें ज़्यादा जीत पाई है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीट जीती थीं जबकि इस बार उसे 52 सीटों पर जीत मिली है। राहुल गाँधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी से भी चुनाव हार गए हैं। इसके अलावा यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर के भी पद से इस्तीफ़ा देने की ख़बर है।
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने नोटंबदी, रफ़ाल सौदे में कथित गड़बड़ी, किसानों और अर्थव्यवस्था की बुरी हालत को मुद्दा बनाया लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद ऐसा लगा कि जनता पर इसका कोई भी असर नहीं हुआ।
इस बार कांग्रेस के 8 पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव हार गए। इनमें भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा की सोनीपत सीट से, हरीश रावत उत्तराखंड की नैनीताल सीट से, शीला दीक्षित उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट से, दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की भोपाल सीट से, नबाम तुकी अरुणाचल पश्चिम सीट से, अशोक चह्वाण महाराष्ट्र की नांदेड़ सीट से, सुशील शिंदे महाराष्ट्र की सोलापुर सीट से और मुकुल संगमा मेघालय की तुरा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए हैं। इससे पता चलता है कि कांग्रेस की हालत किस कदर ख़राब है।
इसके अलावा कई ऐसे राज्य हैं जहाँ खाता खोलने तक के लिए कांग्रेस तरस गई। इन प्रदेशों में गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश हैं।
अब सवाल यह है कि इस करारी हार के बाद क्या कांग्रेस फिर से ख़ुद को खड़ा कर पाएगी इस सवाल के जवाब के लिए हम 2014 में कुछ राज्यों में कांग्रेस के प्रदर्शन की तुलना 2019 के लोकसभा चुनाव से करेंगे। क्योंकि केंद्र में सरकार बनाने के लिए राज्यों में जीत हासिल करना ज़रूरी है।
उत्तर प्रदेश
देश की सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटों वाले प्रदेश, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से ज़्यादा समय से सत्ता से बाहर है। उसने सत्ता में वापसी की हज़ार कोशिशें की, यहाँ तक कि 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव से भी हाथ मिलाया लेकिन कुछ नहीं हुआ। यहाँ बीजेपी की आँधी में कांग्रेस ही नहीं, एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन भी उड़ गया। कांग्रेस को यहाँ 2014 में 7.50% वोट मिले थे लेकिन इस बार उसे सिर्फ़ 6.31% वोट मिले हैं। यहाँ से कांग्रेस के लिए सबसे हैरान करने वाली ख़बर यही रही कि उसके अध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी पारिवारिक सीट अमेठी तक नहीं बचा पाये। पार्टी को सिर्फ़ 1 सीट (रायबरेली) पर जीत मिली है। कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी वाड्रा को उतारकर मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की थी लेकिन इसका भी उसे कोई फ़ायदा नहीं हुआ।दिल्ली
2014 में दिल्ली में कांग्रेस को 15.10% वोट मिले थे जबकि इस बार उसे यहाँ 22.5% वोट मिले हैं। पार्टी को पिछली बार भी यहाँ कोई सीट नहीं मिली थीं और इस बार भी वह एक भी सीट जीतने में नाकामयाब रही है। लेकिन उसका वोट फ़ीसद बढ़ने से कहा जा सकता है कि वह जी-तोड़ मेहनत करे और संगठन को मज़बूत करे तो फिर से अच्छा प्रदर्शन कर सकती है क्योंकि उसने 15 साल तक लगातार दिल्ली में सरकार चलाई है।गुजरात
प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में इस बार भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। 2014 में गुजरात में कांग्रेस को 32.90%% वोट मिले थे जबकि इस बार उसके वोट प्रतिशत में कमी आई है और उसे 32.11% वोट मिले हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया था और बीजेपी को 99 सीटों पर रोक दिया था। साथ ही, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह माना जा रहा था कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।हरियाणा
दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में 22.90% मत मिले थे और एक सीट पर जीत मिली थी लेकिन इस बार उसे 1 भी सीट नहीं मिली है हालाँकि उसका वोट फ़ीसद बढ़कर 28.42% हो गया है। कांग्रेस यहाँ 2005 से लेकर 2015 तक सत्ता में रही है। इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि उसकी संभावनाएँ यहाँ ख़त्म नहीं हुई हैं।
हरियाणा में इस बार पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर भी चुनाव हार गए हैं। हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपनी खोई ताक़त वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
हिमाचल प्रदेश
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को पिछले चुनाव में 40.70% वोट मिले थे लेकिन इस बार उसका वोट फ़ीसद गिरकर 27.3% पर आ गया है। साथ ही, उसे एक भी सीट नहीं मिली है। हिमाचल में वर्तमान में बीजेपी की सरकार है लेकिन इससे पहले वहाँ कांग्रेस भी लंबे समय तक सत्ता में रही है। चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विरोधी तेवरों के कारण पार्टी को काफ़ी असहजता का सामना करना पड़ा था।झारखंड
कांग्रेस को इस राज्य में 2014 में 13.30% वोट मिले थे जबकि इस बार वहाँ उसका वोट फ़ीसद बढ़कर 15.63% हो गया है। लेकिन यहाँ भी मोदी की सुनामी चली है और बीजेपी को 14 में से 12 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस को सिर्फ़ 1 सीट पर जीत मिली है। राज्य में बीजेपी की सरकार है और पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस को राज्य में ख़ुद को फिर से खड़ा कर पाना बेहद मुश्किल होगा।मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 2014 में 34.90% वोट मिले थे और सिर्फ़ 2 सीट मिली थीं लेकिन राज्य में सरकार बनने के बाद भी उसका वोट फ़ीसद घटकर 34.50% हो गया है और सीट सिर्फ़ 1 मिली है। दिसंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही थी और यह माना जा रहा था कि वह बेहतर प्रदर्शन करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनाव नहीं जीत सके। माना जा रहा है कि बीजेपी अब राज्य की कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर सकती है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में कांग्रेस को 2014 में 18.10% वोट मिले थे और इस बार उसका वोट प्रतिशत घटकर 16.17% हो गया है। पिछली बार उसे 2 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार उसे सिर्फ़ 1 सीट मिली है। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस सत्ता में रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को महाराष्ट्र में 41 सीटें मिली हैं और उसने अपनी स्थिति काफ़ी मजबूत कर ली है। ऐसे में कांग्रेस का वहाँ राज्य की सत्ता में वापस आना बेहद मुश्किल होगा। अशोक चव्हाण, सुशील कुमार शिंदे जैसे दिग्गज नेताओं को हार का मुँह देखना पड़ा है।
पंजाब
पंजाब ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ से कांग्रेस के लिए राहत भरी ख़बर है। पिछले चुनाव में उसे वहाँ 33.10% वोट मिले थे और इस बार उसका वोट फ़ीसद बढ़कर 40.1 हो गया है। लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच संबंध बेहद ख़राब हो चुके हैं। अमरिंदर खुलेआम कह चुके हैं कि सिद्धू उन्हें हटाकर राज्य का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। कांग्रेस को अगर यह गढ़ बचाना है तो उसे गुटबाज़ी पर लगाम लगानी होगी, वरना वह यह किला भी खो देगी। कांग्रेस को राज्य की 13 में से 8 सीटें मिली हैं।राजस्थान
दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद यह माना जा रहा था कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करेगी। लेकिन यहाँ उसे करारी शिकस्त मिली है। कांग्रेस को 2014 में 30.40% वोट मिले थे। इस बार उसका वोट फ़ीसद तो बढ़ा है लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट में हुई खींचतान जगजाहिर है। यह माना जा रहा है कि इसी की वजह से पार्टी को राज्य में नुक़सान हुआ है।उत्तराखंड
उत्तराखंड में भी मोदी की सुनामी चली है और बीजेपी को राज्य की सभी पाँचों सीटों पर जीत मिली है। पिछली बार कांग्रेस को यहाँ 34.00% वोट मिले थे लेकिन इस बार उसे 30.40% वोट मिले हैं। राज्य में उसके प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बड़ी हार मिली थी और अब लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उसकी सत्ता में वापसी को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ भी उन राज्यों में है जहाँ कांग्रेस को दिसंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत मिली थी। यह माना जा रहा था कि वह अपने प्रदर्शन को बरकरार रखेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और राज्य की 11 में से उसे सिर्फ़ 2 सीटों पर जीत मिली है। 2014 में उसे सिर्फ़ 1 सीट पर जीत मिली थी। 2014 में उसका वोट प्रतिशत 38.40% था जो इस बार बढ़कर 40.9% हुआ है। यहाँ भी मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में ख़ासी खींचतान हुई थी। विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद भी बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है।बिहार
बिहार में कांग्रेस की दुर्गति होती जा रही है। गठबंधन के माध्यम से वह बीजेपी को चुनौती दे सकेगी, यही सोचकर उसने राष्ट्रीय जनता दल, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और कुछ अन्य दलों से समझौता किया था। लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 8.40% वोट मिले थे जो इस बार घटकर 7.70% हो गए।
बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 2 सीट मिली थीं जो इस बार घटकर 1 ही रह गयी है। गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बाद भी कांग्रेस अपनी हालत नहीं सुधार सकी।
निश्चित रूप से देशभर में कांग्रेस को बड़ी हार मिली है और इससे उसके हौसलों पर असर पड़ना स्वाभाविक है। चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को देखकर यह कहना क़तई सही नहीं होगा कि लोगों ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। कई राज्यों में कांग्रेस को ठीक-ठाक वोट मिले हैं लेकिन यह बात दूसरी है कि वह सीटें अधिक नहीं जीत सकी। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सियासी मुक़ाबले में चित करने के लिए कांग्रेस को और ज़्यादा जोर लगाना होगा। जन समस्याओं के लिए संघर्ष करना होगा, लोगों की आवाज़ सुननी होगी, संगठन को मजबूत करना होगा और ख़ुद को बीजेपी के ठोस विकल्प के रूप में पेश करना होगा।