उत्तर प्रदेश में पश्चिम से होते हुए पूरब तक पहुँचते ही बीजेपी, संघ और समर्थकों का नया शगल है - ग़ैर यादव पिछड़ों व ग़ैर जाटव दलितों की ज़बरदस्त गोलबंदी और इसके बूते भारी सफलता। यह एक एसा नैरेटिव है जो राजनीति शास्त्रियों से लेकर अपने कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर बख़ूबी काम करता है। इसके तर्क में 2014 लोकसभा से लेकर 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों का हवाला भी दिया जाता है। नैरेटिव न केवल समझ में आता है बल्कि ज़मीन पर कई जगहों पर दिखने भी लगता है। मध्य उत्तर प्रदेश में चौथे चरण के चुनाव में कई जगहों पर यह ग़ैर यादव पिछड़ा और ग़ैर जाटव दलित का कार्ड चलता भी दिखा और शायद बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में अब तक हुए पाँच चरणों के चुनाव में सबसे अच्छा चौथा चरण ही गया है। हालाँकि इस पूरे नैरेटिव पर बारीक़ी से नज़र डालने पर कई झोल भी नज़र आते हैं।
माया ने अटकाया रोड़ा
ग़ैर यादव पिछड़ों व ग़ैर जाटव दलितों के वोटों के साथ अगड़ों को मिलाकर मैदान मारने की बीजेपी की इस रणनीति में सबसे बड़ा रोड़ा अटकाने का काम मायावती ने किया है। एसपी-बीएसपी गठबंधन (रालोद पूर्वी उत्तर प्रदेश में कहीं मैदान में नहीं है) के पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रत्याशियों की सूची को देखें तो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का असर साफ़ नज़र आता है। अब छठे और सातवें चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश में जिन 27 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है उनमें एसपी-बीएसपी गठबंधन की ओर से किसी भी सीट पर कोई जाटव प्रत्याशी नहीं है। इतना ही नहीं, आज़मगढ़ में ख़ुद अखिलेश यादव, फूलपुर में पंधारी यादव और जौनपुर में श्याम सिंह यादव के अलावा किसी अन्य सीट पर यादव को भी टिकट नहीं दिया गया है। इनमें से भी फूलपुर को छोड़कर बाक़ी दोनों सीटें यादव बहुल हैं।
बीजेपी ने इन बची 27 सीटों पर जातीय संतुलन साधने का आधा-अधूरा प्रयास किया है, वहीं गठबंधन ने इसका चाक-चौबंद इंतजाम किया है। पूर्वांचल की दो प्रमुख सीटों बनारस और गोरखपुर के आसपास की सीटों पर यह साफ़ दिखायी देता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रमुख पिछड़ी जातियों कुर्मी, निषाद, लोनिया, कुशवाहा और ग़ैर जाटव दलितों में पासी, धोबी वग़ैरह को गठबंधन ने बहुतायत में टिकट दिए हैं। पिछड़ों के साथ अगड़ों का बेहतरीन कॉकटेल भी इन सीटों पर नज़र आता है।
गठबंधन ने ख़ूब की जातीय जुगलबंदी
जौनपुर में दलित-यादव तनातनी के इतिहास को देखते हुए बीएसपी की ओर से मायावती ने श्याम सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया है तो पड़ोस की मछलीशहर सीट पर पूर्व इंजीनियर टी. राम को उतारा है। ग़ाज़ीपुर में यादव, दलित के साथ सामंजस्य बिठाते हुए बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफ़ज़ाल को टिकट दिया है, वहीं चंदौली में लोनिया जाति के संजय चौहान तो घोसी में भूमिहार अतुल राय प्रत्याशी हैं। भदोही में निषाद जाति के रामचरित्र निषाद को उतारा गया है। इन इलाक़ों में ग़ैर यादव पिछड़ों की बहुतायत है और क़रीब-क़रीब हर टिकट इसे ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं।फूलपुर में बीजेपी और कांग्रेस के पटेल प्रत्याशी के जवाब में गठबंधन ने पंधारी यादव को टिकट दिया है तो इलाहाबाद में परिसीमन के बाद बदले जातीय गणित को ध्यान में रखते हुए राजेंद्र पटेल को उतारा गया है। प्रतापगढ़ में कांग्रेस और राजा भैय्या की पार्टी जनसत्ता दल के ठाकुर प्रत्याशियों के जवाब में गठबंधन की ओर से ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में है।
योगी को घेरने की कोशिश
उपचुनाव में गोरखपुर सीट गंवाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहाँ से जीते सांसद प्रवीण निषाद को अपने पाले में कर समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका दिया था और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन भी कर लिया था। गोरखपुर संसदीय सीट पर निषाद मतदाता प्रभावी हैं पर सांसद प्रवीण निषाद को बगल की संतकबीरनगर सीट से टिकट दे दिया गया।त्रिपाठी का टिकट कटने से ब्राह्मण नाराज
जूता कांड की वजह से संतकबीरनगर सीट से बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट कटने के बाद यहाँ के ब्राह्मण नाराज हैं। गठबंधन ने यहाँ से ब्राह्मण प्रत्याशी कुशल तिवारी को मैदान में उतारा है। यादव-ब्राह्मण-दलित-मुसलिम वोटों के सहारे वह यहाँ मजबूत दिखायी देते हैं जबकि बीजेपी के प्रवीण निषाद केवल योगी के चमत्कार के भरोसे दिखते हैं। बगल की बस्ती सीट पर गठबंधन ने कुर्मी प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी को उतारा है जबकि क़रीब 6 लाख से ज़्यादा मुसलिम वोटों वाली सीट डुमरियागंज में गठबंधन की ओर से आफ़ताब आलम हैं। सलेमपुर में गठबंधन की ओर से कुशवाहा प्रत्याशी हैं तो बांसगाँव से पासी और देवरिया से जायसवाल और कुशीनगर से कुशवाहा प्रत्याशी मैदान में उतारे गए हैं।
कुल मिलाकर सीट दर सीट गठबंधन ने ग़ैर यादव पिछड़ों को साधकर पूरे पूर्वांचल में बीजेपी को फंसाने का काम कर दिया है। बलिया में ब्राह्मण सनातन पांडे हैं तो महराजगंज में ठाकुर कुंवर अखिलेश सिंह हैं।