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वकील यूनियन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर कार्रवाई की मांग की

वकील यूनियन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर कार्रवाई की मांग की

विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव का विवादित बयान तूल पकड़ रहा है। उन पर कार्रवाई की मांग वकीलों के संगठन और नेताओं ने की है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ वकीलों का गुस्सा बढ़ रहा है। अखिल भारतीय वकील संघ ने भारत के चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में जस्टिस यादव पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वकीलों के संघ ने कहा कि जस्टिस यादव का भाषण "मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला है।" अन्य लोगों ने भी जस्टिस यादव के बयान की निन्दा की है। 

जस्टिस यादव ने रविवार को विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और वहां विवादित भाषण दिया था। आमतौर पर जज सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने, किसी विचारधारा का प्रचार करने आदि से बचते रहे हैं लेकिन अब देखा जा रहा है कि कई जज हिन्दू संगठनों के कार्यक्रमों में खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। बाद में राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं। देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की जरूरत पर जोर देते हुए जस्टिस यादव ने रविवार को कहा था कि भारत बहुसंख्यकों यानी हिन्दुओं की इच्छाओं के अनुसार ही चलेगा। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के काम की भी तारीफ की और कहा कि बहुविवाह, तीन तलाक या हलाला जैसी प्रथाओं के लिए "कोई बहाना नहीं" चलेगा।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राज्यसभा सदस्य और ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के अध्यक्ष बिकास रंजन भट्टाचार्य और एआईएलयू महासचिव पी.वी. सुरेंद्रनाथ द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि जस्टिस यादव का "सांप्रदायिक भाषण" "संविधान और उसके लोकाचार के खिलाफ है। उनका बयान धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की आजादी का सीधा अपमान है।" उन्होंने कहा कि ''यह न्यायपालिका की आजादी को अंदर से नुकसान पहुंचाने की तरह है।''

भट्टाचार्य और सुरेंद्रनाथ के पत्र में कहा गया है, ''लोकतंत्र बहुसंख्यकवाद या धार्मिक बहुसंख्यकवाद नहीं है।'' पत्र में दावा किया गया कि जस्टिस यादव के ''मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ आरोप वीभत्स, कटु और जहरीले प्रकृति के हैं, एक संवैधानिक अदालत के मौजूदा जज के लिए सबसे अशोभनीय और हाईकोर्ट के जज के पद की संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है।''

उन्होंने कहा कि जस्टिस यादव की अभिव्यक्ति और लोकतंत्र की अवधारणा "हिंदू राष्ट्र" से कम नहीं है। अखिल भारतीय वकील संघ ने कहा कि इस घटना ने एक बार फिर "जजों के चयन और नियुक्ति के मामले में कॉलेजियम प्रणाली की कमजोरी" को बता दिया है। संवैधानिक अदालतें यानी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका की आजादी की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं। जजों के चयन और नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र संवैधानिक तंत्र की जरूरत है।

सीपीएम को भी आपत्तिः सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने सोमवार को भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए कार्रवाई की मांग की। अपने पत्र में, करात ने कहा कि जस्टिस यादव का भाषण "घृणास्पद भाषण" था और यह संविधान पर उनकी शपथ का उल्लंघन है, जब उन्हें जज के रूप में शपथ दिलाकर शामिल किया गया था।

बृंदा करात ने कहा-  "यह भाषण एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश की सामूहिक चेतना का अपमान है। इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज द्वारा दिया जाना न्याय प्रक्रिया पर भी हमला है। कोई भी आम आदमी अदालत में इंसाफ की उम्मीद नहीं कर सकता है जिसका एक सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ और बहुसंख्यकवादी नजरिये के पक्ष में पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से भरी, सार्वजनिक रूप से ऐसी राय रखता है।''

सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा, "आरएसएस हमेशा से ऐसा ही रहा है, वे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।" टीएमसी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने जस्टिस यादव की टिप्पणियों की निंदा की और उन्हें विभाजनकारी करार दिया। उन्होंने कहा कि उनके बयान से तमाम सवाल खड़े हो गए हैं। सोशल मीडिया पर भी जस्टिस यादव के बयान की जबरदस्त निन्दा हो रही है। हालांकि उनके बयान को दक्षिणपंथी समर्थन भी दे रहे हैं।

(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)

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