यूपी के लखीमपुर खीरी में हत्या के एक मामले में आरोपी आशीष मिश्रा ने आज उत्तर प्रदेश में एक स्थानीय अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद उन्हें वापस लखीमपुर जेल में भेज दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते उनकी ज़मानत रद्द कर दी थी और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था।
आशीष मिश्रा पर विवादास्पद कृषि क़ानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों को कुचलने का आरोप है। उन पर किसानों और एक पत्रकार की हत्या का आरोप लगाया गया है।
लखीमपुर खीरी की घटना में कुल 8 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से 4 किसान थे जिनकी कार से कुचलकर मौत हो गई। किसानों की मौत के साथ ही बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं- शुभम मिश्रा, श्याम सुंदर निषाद और हरि ओम मिश्रा की भीड़ ने जान ले ली थी। एक पत्रकार की भी मौत इस घटना में हुई थी।
आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे हैं और लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में उन्हें बीते साल 9 अक्टूबर को भारी दबाव के बाद ही गिरफ्तार किया जा सका था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी बेहद सख़्त टिप्पणी कर चुका था। लेकिन फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशीष को जमानत दे दी थी।
आशीष की जमानत के खिलाफ लखीमपुर हिंसा के पीड़ित परिवारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा था कि पीड़ितों को सुनने से इनकार कर दिया गया और हाई कोर्ट ने जल्दबाजी दिखाई जिस वजह से जमानत दिए जाने के आदेश को रद्द किया जाता है।
बेंच ने कहा कि पीड़ितों को जमानत के मामले की सुनवाई सहित बाकी प्रक्रियाओं में शामिल होने का पूरा अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने फैक्चुअल मैरिट पर ध्यान दिया जबकि यह जांच का विषय है।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को आशीष मिश्रा की जमानत को रद्द न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की थी। सीजेआई ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा था, “मामले की निगरानी कर रहे जज की रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्होंने जमानत को रद्द करने की सिफारिश की थी और यह भी सिफारिश की थी कि इसके लिए आवेदन किया जाना चाहिए तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया।”
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस राकेश कुमार जैन को इस मामले की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया था।