तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों ने 'ब्लैक फंगस' संक्रमण को अधिसूचित बीमारी घोषित की है। राजस्थान ने भी इसे महामारी घोषित कर दिया है। 90 लोगों की मौत के बाद महाराष्ट्र ने इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन की मांग की है और दिल्ली व गुजरात जैसे राज्यों में भी दवा की कमी शिकायतें हैं। कई राज्यों में ब्लैक फंगस के मामले आने लगे हैं। अब कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने चिंता बढ़ा दी है। यह चिंता इतनी बढ़ी कि राष्ट्रीय कोविड टास्क फोर्स के विशेषज्ञों ने रविवार को इस बीमारी को लेकर सलाह जारी की है। जिस बीमारी के मामले दुर्लभ रूप से कभी-कभी ही आते थे उसके मामले इतने ज़्यादा कैसे आने लगे कि इसे महामारी की तरह माना जाने लगा? आख़िर यह ब्लैक फंगस क्या है और यह कितना ख़तरनाक है? इसका इलाज किस तरह संभव है? जानिए इन सभी सवालों के जवाब।
क्या है ब्लैक फंगस?
ब्लैक फंगस को तकनीकी भाषा में म्यूकोर्मिकोसिस कहा जाता है। लेकिन आम तौर पर यह ब्लैक फंगस के नाम से चर्चित है। यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर संक्रमण है। यह संक्रमण म्यूकोर्मिसेट नाम के एक फंगस से फैलता है। यह संक्रमण के शिकार किसी व्यक्ति से नहीं फैलता है, बल्कि म्यूकोर्मिसेट पर्यावरण में मौजूद होता है। यानी हर कोई सांस लेने पर इस फंगस के संपर्क में आ सकता है लेकिन संक्रमित वह व्यक्ति होता है जिसका शरीर इससे लड़ पाने में सक्षम नहीं होता है।
यह मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएँ हैं या वे दवाएँ लेते हैं जो शरीर की रोगाणुओं और बीमारी से लड़ने की क्षमता को कम करती हैं। सामान्य तौर पर यह फंगस मज़बूत इम्यून सिस्टम वाले व्यक्ति के लिए बड़ा ख़तरा नहीं पेश कर पाता है।
कौन ज़्यादा असुरक्षित है?
कोरोना महामारी से पहले अनियंत्रित मधुमेह वाले रोगियों में म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा अधिक था। ऐसा इसलिए क्योंकि हाई ब्लड शूगर का स्तर फंगस के बढ़ने और जीवित रहने के लिए स्थिति बनाता है। इसके साथ उनकी कमजोर इम्यून सिस्टम संक्रमण से कम सुरक्षा प्रदान करता था। अब इस कोरोना महामारी के दौरान वायरस से संक्रमित होने पर इन रोगियों के लिए म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा दो कारणों से बढ़ जाता है। पहला यह है कि कोविड -19 उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को और ख़राब कर देता है और दूसरा, उन्हें उनके इलाज के लिए स्टेरॉइड वाली दवाएँ दी जाती हैं। इससे एक तो इम्यून सिस्टम सुस्त हो जाता है और उनके ब्लड शूगर के स्तर में वृद्धि होती है जिससे उनके म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा बढ़ जाता है।
जिन्हें मधुमेह, कैंसर है या जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है उनको इसका ज़्यादा ख़तरा होता है।
कैसे पहचानें ब्लैक फंगस संक्रमण?
कोविड से ठीक हुए मरीजों की देखभाल करने वालों को खतरे के संकेतों पर ध्यान देना चाहिए-
- नाक से असामान्य काले रंग की चीज का स्राव, काला धब्बा वाला ख़ून।
- सांस लेने में तकलीफ होना। खून की उल्टी की शिकायत।
- नाक बंद होना, सिरदर्द या आँखों में दर्द, आँखों के चारों ओर सूजन।
- धुंधली दृष्टि। आँखों का लाल होना, आँख बंद करने व खोलने में कठिनाई।
- बुखार, सिरदर्द, खांसी। चेहरे का सुन्न होना या सनसनाहट जैसा महसूस होना।
- मुँह चबाने या खोलने में कठिनाई।
- चेहरे की सूजन, विशेषकर नाक, गाल, आंख के आसपास।
- दाँतों का ढीला होना। काले क्षेत्र और मुँह, तालू, दाँत या नाक के अंदर सूजन।
कैसे करें संक्रमण से बचाव?
एम्स के डॉक्टरों सहित दूसरे विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि स्टेरॉइड वाली दवाओं का इस्तेमाल कम करें। यदि इसका इस्तेमाल करें तो डॉक्टर की सलाह से और इसमें यह काफ़ी अहम होता है कि किस समय इसका सेवन कर रहे हैं, कितनी मात्रा में और कितने समय तक सेवन कर रहे हैं। यदि आप धूल वाले निर्माण स्थलों पर जा रहे हैं तो मास्क का प्रयोग करें। बागवानी करते समय जूते, लंबी पतलून, लंबी बाजू की शर्ट और दस्ताने पहनें। स्वच्छता का ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान रखें।
क्या इलाज संभव है?
विशेषज्ञों के अनुसार ब्लैक फंगस का इलाज उपलब्ध है। इसका एंटी-फंगल दवा से इलाज किया जाना चाहिए। कुछ मामलों में सर्जरी की ज़रूरत हो सकती है। कुछ मामलों में यह ऊपरी जबड़े और कभी-कभी एक आँख को भी नुक़सान पहुँचा सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार, मधुमेह को नियंत्रित करने, स्टेरॉयड के उपयोग को कम करने और इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने वाली दवाओं को बंद करना अत्यंत ज़रूरी है। उपचार में कम से कम 4-6 सप्ताह लग सकते हैं और इसके लिए एम्फ़ोटेरिसिन बी और एंटी-फंगल दवाएँ दी जाती हैं।
लेकिन सबसे ज़रूरी है कि गंभीर स्थिति की संभावना को कम करने के लिए उपचार जल्दी और तुरंत दिया जाए।