सबरीमला: सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को सख़्ती से लागू कराएगी सरकार?

07:31 am Nov 18, 2019 | अनूप भटनागर - सत्य हिन्दी

सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर आगे क्या होगा, सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं। क़ानून व्यवस्था के नाम पर शीर्ष अदालत के इस फ़ैसले पर राज्य सरकार सख़्ती से अमल करेगी या इसे सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपे जाने की व्यवस्था की आड़ में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश नहीं करने देगी, यह सवाल उठ रहा है।

यह विचार आने की प्रमुख वजह सबरीमला स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं को लेकर उनके श्रद्धालुओं का अत्यधिक संवेदनशील होना और रजस्वला आयु की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की न्यायिक व्यवस्था को लेकर उनमें गुस्सा होना है। पुलिस के कड़े बंदोबस्त के बावजूद भगवान अयप्पा के अनुयायियों ने पिछले साल भी रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का प्रयास किया था। हिंसा भी हुयी थी।

ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या इस फ़ैसले के अमल में ढिलाई बरती जायेगी या फिर वाराणसी के दोषीपुरा कब्रिस्तान प्रकरण की तरह क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका में अमल कुछ समय के लिये स्थगित कर दिया जायेगा।

अदालत का फ़ैसला लागू होगा

सर्वोच्च अदालत की व्यवस्था के बावजूद सबरीमला मंदिर जाने के लिये पम्बा स्थित आधार शिविर पहुँची 10 महिलाओं को प्रशासन ने वापस लौटा दिया। इस घटना ने बरबस ही वाराणसी में दोषीपुरा कब्रिस्तान के मामले में शीर्ष अदालत के 1981 और 1983 के फ़ैसलों की याद ताज़ा कर दी। दोषीपुरा मामले में करीब 36  साल बाद भी फ़ैसले पर पूरी तरह अमल नहीं हो सका।

सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के न्यायालय के निर्णय सितंबर, 2018 के बहुमत के फ़ैसले के बाद केरल में सबरीमला की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध हुआ था। भगवान अयप्पा के अनुयायियों का मानना था कि न्यायालय की व्यवस्था से उनकी सदियों पुरानी परंपरा और आस्था पर हमला हुआ है।

क्या कहा था अदालत ने

शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के सितंबर, 2018 के बहुमत के फ़ैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने 14 नवंबर को बहुमत के निर्णय से सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया। हालांकि इस पीठ के दो न्यायाधीशों ने अल्पमत के अपने फ़ैसले में इस निर्णय से असहमति जताई थी।

इनमें से ही एक न्यायमूर्ति आर एफ़ नरीमन ने सबरीमला मंदिर के कपाट खुलने से दो दिन पहले 15 नवंबर को केन्द्र सरकार से कहा कि वह उनके असहमति के आदेश को ध्यानपूर्वक पढ़े। 

न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ ने अपने असहमति वाले आदेश में यह कहा था कि सितंबर 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती और कोई भी अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता।

प्रशासन का रवैया

यह बात दीगर बात है कि इन न्यायाधीशों के सख़्त रुख के बावजूद सबरीमला मंदिर में पूजा अर्चना के लिये पहुँचने वाले श्रद्धालुओं में सम्मिलित महिलाओं के परिचय पत्रों की आधार शिविर पर जाँच हो रही है ताकि वर्जित आयु वर्ग की महिलाओं को आगे जाने से रोका जा सके। यह अपने आप में इस बात का संकेत है कि क़ानून व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के लिये प्रशासन अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है और एक तरह से अप्रत्यक्ष रूप से यह सुनिश्चित कर रहा है कि इस मंदिर में प्रवेश संबंधी पुरानी परंपरा बनी रहे।

यह सही है कि असहमति के आदेश में न्यायाधीशों ने इस मामले में अपने फ़ैसले पर अमल करने पर जोर दिया है और कहा है कि इसका पालन वैकल्पिक नहीं है। इसके बावजूद सबरीमला मंदिर जाने के लिये पहुंची 10 महिलाओं को गत शुक्रवार को वापस लौटाने की घटना ने बरबस ही वाराणसी में दोषीपुरा कब्रिस्तान के मामले में शीर्ष अदालत के 1981 और 1983 के फ़ैसलों की याद ताजा कर दी।

दोषीपुरा मामले में करीब 36 साल बाद भी फ़ैसले पर पूरी तरह अमल नहीं हो सका। वाराणसी के ज़िला प्रशासन ने इस पर अमल करने की स्थिति में क़ानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की थी। न्यायालय ने भी सारे प्रकरण को संवेदनशील बताते हुये अपने फ़ैसले पर अमल रोक दिया था।

यह विवाद सुन्नी समुदाय के कब्रिस्तान में शिया समुदाय के भूखण्डों से संबंधित हैं, हालांकि अब उत्तर प्रदेश प्रशासन ने विवाद का केन्द्र रहे भूखण्ड के इर्द-गिर्द उंची दीवार का निर्माण करा दिया है, ताकि मुहर्रम के दौरान किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हो।

भगवान अयप्पा के इस मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के फ़ैसले के बावजूद प्रशासन आधार शिविर पर श्रद्धालुओं के पहचान पत्रों की जाँच कर रहा है। पुलिस और प्रशासन के रवैये से संकेत मिलता है कि क़ानून व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के नाम पर वह सबरीमला मंदिर  में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी संविधान पीठ के फ़ैसले पर सख्ती से अमल नहीं कर रहा है।

ऐसा लगता है कि सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले में भी ऐसा कुछ किया जा रहा है कि दो महीने चलने वाली तीर्थयात्रा मंडल-मकरविलक्कू के दौरान शांति बनी रहे और किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हो।