क्या दिल्ली के कर्मचारियों को '7000/- केजरीवाल बोनस' का संबंध चुनाव से है?
दिवाली से पहले, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार 6 नवंबर को सरकार के सभी ग्रुप बी, गैर राजपत्रित और ग्रुप सी कर्मचारियों को ₹7,000 के बोनस की घोषणा की। सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सीएम केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार ने 80,000 कर्मचारियों को दिवाली बोनस देने के लिए ₹56 करोड़ आवंटित किए हैं।
उन्होंने कहा, “हम दिल्ली सरकार के ग्रुप बी गैर-राजपत्रित और ग्रुप सी कर्मचारियों को बोनस के रूप में ₹7,000 देंगे। वर्तमान में, लगभग 80,000 ग्रुप बी गैर-राजपत्रित और ग्रुप सी कर्मचारी दिल्ली सरकार के साथ काम कर रहे हैं। इस बोनस को देने के लिए कुल ₹56 करोड़ खर्च किए जाएंगे।''
पिछले महीने, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अर्धसैनिक बलों सहित ग्रुप सी और गैर-राजपत्रित ग्रुप बी रैंक के अधिकारियों के लिए बोनस को मंजूरी दी थी। वित्त मंत्रालय ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए गैर-उत्पादकता से जुड़े बोनस (तदर्थ बोनस) की गणना के लिए 2022-23 के लिए ₹7,000 की सीमा तय की। केजरीवाल ने एक तरह से केंद्र की बराबरी करने की कोशिश की है।
केजरीवाल ने दिल्ली मे सात हजार रुपये के बोनस की घोषणा करके यह संदेश चुनावी राज्यों में भेजा है कि मोदी सरकार ने सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों को बोनस दिया है, जबकि आप सरकार ने दिल्ली में अपने कर्मचारियों को बोनस दिया है। यानी केजरीवाल यह कहना चाहते हैं कि मोदी सरकार ने वही बोनस अन्य भाजपा शासित राज्यों में क्यों नहीं दिलाया। केजरीवाल की दिल्ली में घोषणा के बाद मध्य प्रदेश में उसके प्रत्याशियों ने इसका प्रचार भी शुरू कर दिया है।
मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी 70 सीटों पर लड़ रही है। हालांकि एमपी में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में है लेकिन यहां पर आप और सपा अपनी ताकत देखना चाहते हैं। दोनों ही दल अगर कुछ फीसदी वोट ले गए तो इसका असर कांग्रेस और भाजपा दोनों पर ही पड़ेगा। यहां यह बताना जरूरी है कि गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने सीटें सिर्फ पांच हासिल की लेकिन उसे 13 फीसदी वोट मिले लेकिन इससे कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ और वो गुजरात में बुरी तरह हार गई।
इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी आप ने 57 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। लेकिन पिछले 2018 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 90 में से 85 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे। यहां पर उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और उसे एक फीसदी से कम वोट मिले थे। 2018 में कांग्रेस ने भाजपा को बुरी तरह हराया था।
राजस्थान में भी आप ने अब तक 63 प्रत्याशी उतारे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में आप बुरी तरह हाशिए पर चली गई थी। उसने तब 143 प्रत्याशी उतारे थे। उनमें 51 प्रत्याशियों को 500 वोट भी नहीं मिले। इनमें भी 12 प्रत्याशी ऐसे थे जिन्हें 200 से कम वोट मिले थे। गंगापुर विधानसभा सीट पर आप प्रत्याशी को 130 वोट मिले थे। हालत यह रही कि राजस्थान के पिछले चुनाव में नोटा को 467781 वोट मिले तो आम आदमी पार्टी को 135816 वोट यानी नोटा से भी कम मिले।