कश्मीर में अब मजदूर की हत्या, दहशतगर्दी बढ़ी
कश्मीर में आतंकियों के हमले फिर बढ़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा के सोदनारा सुंबल में शुक्रवार तड़के बिहार के एक मजदूर की आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
कश्मीर जोन पुलिस ने ट्वीट किया, आधी रात के दौरान, आतंकवादियों ने एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद अमरेज, निवासी मधेपुरा, बेसार, बिहार के बांदीपोरा के सोदनारा सुंबल में गोलियां चलाईं और घायल कर दिया। अमरेज को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
अमरोज के भाई ने बताया कि लगभग 12.20 बजे मेरे भाई ने मुझे जगाया और कहा कि फायरिंग शुरू हो गई है। वह (मृतक) आसपास नहीं था, हमें लगा कि वह शौचालय गया है। हम उसे तलाशने लगे तो उसे खून से लथपथ देखा और सुरक्षा कर्मियों से संपर्क किया। उसे हाजिन लाया गया और बाद में रेफर कर दिया गया लेकिन उसकी मृत्यु हो गई।
J&K | One migrant labourer from Bihar, Mohd Amrez shot dead by terrorists at Soadnara Sumbal, Bandipora.
— ANI (@ANI) August 12, 2022
Visuals from Community Health Centre in Sumbal. pic.twitter.com/rdCEPZmjTs
आतंकियों ने गुरुवार को भी इसी तरह राजौरी में सेना के एक कैंप पर हमला किया था। इस घटना में चार जवान शहीद हो गए थे और दो आतंकी मारे गए थे। कश्मीर में साढ़े चार साल से सेना के किसी कैंप पर हमला नहीं हुआ था, लेकिन काफी समय बाद ऐसी कार्रवाई हुई है। साढ़े चार साल बाद इस तरह का हमला कई सवाल खड़े करता है।
इससे पहले भी आत्मघाती हमलावर सेना के कैंपों पर हमला कर चुके हैं। 10 फरवरी, 2018 को, जम्मू-कश्मीर के सुंजुवां में एक सेना शिविर पर हमला किया गया था। दो दिन बाद आतंकियों ने श्रीनगर के कर्ण नगर में सीआरपीएफ कैंप को निशाना बनाया था. तब से अब तक सैन्य शिविरों को निशाना नहीं बनाया गया था।
एक कारण यह था कि सितंबर 2016 में उरी में एक सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद सेना और सीआरपीएफ ने अपने ऑपरेशन सिस्टम को बदल दिया था। उरी हमले ने एलओसी के पार कई स्थानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी।
इसके बाद कश्मीर में जगह-जगह सेना के कैंप बनाए गए हैं जो ऑपरेशन का आधार है। राजौरी में जिस आर्मी कैंप पर हमला हुआ वो भी इसी तरह का कैंप है। एक "कैंप" में लगभग 100 जवान होते हैं। यह उस क्षेत्र में सेना की मौजूदगी होने के लिए स्थापित किया गया है। ऐसे कैंप एलओसी के करीब 25 किमी अंदर है, जो इस बात का संकेत है कि आतंकियों ने पहले घुसपैठ की होगी।
खास बात ये है कि 25 किमी की यात्रा, वह भी इतनी भारी बारिश में, राजौरी के पहाड़ी इलाके में एक बार में लगभग असंभव है। शिविर की भौगोलिक स्थिति इंगित करती है कि पुलिस की वर्दी पहनकर आए आतंकवादियों के लिए एक स्थानीय गाइड उपलब्ध रहा होगा।
अधिकारियों ने कहा कि वे इसे एक "संदेश" के रूप में देख रहे थे क्योंकि हमला रक्षा बंधन पर और स्वतंत्रता दिवस से तीन चार दिन पहले हुआ है।