वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मसजिद विवाद के बीच ही कर्नाटक के बेंगलुरु में टीपू सुल्तान महल का मुद्दा अब एक हिंदू संगठन ने उठाया है। एक रिपोर्ट के अनुसार हिंदू जनजागृति समिति ने आरोप लगाया है कि टीपू सुल्तान महल मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया था।
ज्ञानवापी मसजिद और कुतुब मीनार मसजिद विवादों को लेकर उठे विवाद के बीच हिंदू जनजागृति समिति के प्रवक्ता मोहन गौड़ा ने गुरुवार को जमीन का सर्वे कराने की मांग की है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'कई लोगों ने बेंगलुरु के टीपू सुल्तान पैलेस के बारे में बात की है। पहले यह जमीन कोटे वेंकटरमण स्वामी मंदिर की थी। टीपू सुल्तान के शासन के दौरान, इस पर अतिक्रमण किया गया था।'
उन्होंने आगे कहा, 'कुछ लोगों के अनुसार वेदों को उस स्थान पर पढ़ाया जाता था। मैं हिंदू जनजागृति समिति की ओर से मांग करता हूं कि भूमि का सर्वेक्षण कर उसके वास्तविक मालिक को हस्तांतरित किया जाए।' वेंकटरमण स्वामी मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में चिक्कदेवराज वाडेयार ने करवाया था।
कर्नाटक में अभी क़रीब हफ़्ते भर पहले उन दो मंदिरों में आरती के नाम को बदलने की सिफारिश की गई जिसका संबंध टीपू सुल्तान से बताया जाता है। यह मामला तमिलनाडु के मंड्या में मेलुकोटे चेलुवनारायण स्वामी मंदिर का है। एक रिपोर्ट के अनुसार कई हिंदू संगठनों के विरोध के बाद जिला प्रशासन ने मेलुकोटे चेलुवनारायण स्वामी मंदिर की 'सलाम आरती' का नाम 'संध्या आरती' करने की सिफारिश की है। सलाम आरती को सदियों से 'देवतीगे सलाम' प्रथा के तौर पर जाना जाता रहा है।
ऐसा कहा जाता है कि टीपू सुल्तान के शासनकाल के दौरान मंदिर के पुजारियों ने पीठासीन देवता की 'देवतीगे सलाम' के नाम से प्रथा रोजाना शाम 7 बजे शुरू की थी।
वैसे, टीपू सुल्तान को लेकर दक्षिणपंथी संगठन मुद्दा उठाते रहे हैं। बीजेपी भी टीपू सुल्तान का मुद्दा उठाती रही है।
राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 2019 में माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाने की बात की थी तो इस पर काफी विवाद हुआ था। कर्नाटक में सत्ता में आने के तुरंत बाद जुलाई में बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। इसका 2015 से ही बीजेपी विरोध कर रही थी।
टीपू सुल्तान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का दुश्मन माना जाता था। श्रीरंगपटना में अपने क़िले का बचाव करते समय ब्रिटिश सेना से लड़ाई के दौरान मई, 1799 में उनकी हत्या कर दी गई थी।
कई इतिहासकार टीपू को एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शासक के रूप में देखते हैं जिन्होंने अंग्रेज़ों की ताक़त को चुनौती दी थी। टीपू एक राजा थे और किसी भी मध्ययुगीन राजा की तरह उन्होंने बग़ावत करने वाली प्रजा का मनोबल तोड़ने के लिये अत्याचार किया। मध्य युग के राजाओं का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है।
इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोंद्धार करवाया। उनके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।
1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मठ के स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं। टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी को लिखा- “जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही अपने कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।' अब इन्हीं टीपू सुल्तान पर विवाद खड़े हो रहे हैं।