नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में देश में कई जगहों पर आवाज़ बुलंद कर रहे गोरखपुर के डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया है। डॉ. कफ़ील पर आरोप है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में 12 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में भड़काऊ भाषण दिया था। इस मामले में डॉ. कफ़ील के ख़िलाफ़ अलीगढ़ पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की थी और 29 जनवरी को उन्हें मुंबई से गिरफ़्तार कर लिया था। तब डॉ. कफ़ील नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ मुंबई में हो रहे एक प्रदर्शन में शामिल होने वहां पहुंचे थे। इसके बाद 10 फ़रवरी को ही उन्हें जमानत मिली थी।
जमानत मिलने के बाद भी डॉ. कफ़ील को मथुरा जेल में ही रखा गया था और चार ही दिन बार उत्तर प्रदेश सरकार ने उन पर रासुका लगा दी। डॉ. कफ़ील को इस शर्त पर जमानत दी गई थी कि वह ऐसा अपराध फिर नहीं करेंगे। अलीगढ़ पुलिस के मुताबिक़, डॉ. कफ़ील के ख़िलाफ़ 13 दिसंबर को आईपीसी की धारा 153-ए (धर्म के आधार पर द्वेष फैलाना) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था।
न्यूज़ 18 के मुताबिक़, डॉ. कफ़ील के भाई ने कहा, ‘हमें शुक्रवार सुबह पता चला कि डॉ. कफ़ील पर रासुका लगा दिया गया है और अब वह जल्दी जेल से नहीं निकल पायेंगे। राज्य सरकार उन्हें लगातार निशाना बना रही है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।’
डॉ. कफ़ील को अलीगढ़ से मथुरा जेल ट्रांसफर कर दिया गया था। पुलिस का कहना था कि ऐसा सुरक्षा कारणों से किया गया क्योंकि अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय और ईदगाह मैदान में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। पुलिस का कहना था कि डॉ. कफ़ील के अलीगढ़ में रहने से क़ानून और व्यवस्था की स्थिति ख़राब हो सकती है।
डॉ. कफील का नाम तब चर्चा में आया था जब 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने लापरवाही बरतने, भ्रष्टाचार में शामिल होने सहित कई आरोप लगाकर डॉ. कफ़ील को निलंबित कर जेल भेज दिया था। लेकिन बाद में सरकारी रिपोर्ट में ही डॉ. कफ़ील बेदाग़ निकले थे और सरकार ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी।