“झारखण्ड के वीर शहीदों और आंदोलनकारियों का सपना हुआ साकार। 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता तथा एसटी-28%, पिछड़ा-27% और एससी-12% आरक्षण विधेयक माननीय विधानसभा के विशेष सत्र से हुआ पारित। जो कहते हैं, वो करते हैं। झारखण्ड के वीर शहीद अमर रहें! जय झारखण्ड!”
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस ट्वीट के माध्यम से सूचना दी कि राज्य में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर वंचित तबके को उनकी अनुमानित आबादी और इन तबकों की मांग के मुताबिक आरक्षण का प्रावधान कर दिया है। ट्विटर पर यह सूचना आते ही आरक्षण के लाभार्थी समुदाय के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी। इन मांगों को लेकर लंबे समय से संघर्षरत लोगों ने चौराहों पर आकर जश्न मनाए और फैसले के चंद घंटों में इस तरह के तमाम वीडियोज, फोटोग्राफ सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
सरकार ने तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की सभी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया है। 1932 के खतियान में जिन लोगों का नाम होगा, उन्हें स्थानीय माना जाएगा। साथ ही ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया है। एसटी आरक्षण भी 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत कर दिया गया है। एससी का आरक्षण 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया है। इस तरह से राज्य में आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया गया है।
इन दोनों विधेयकों को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव भी पारित कराया गया है। अगर केंद्र इसे नवीं अनुसूची में शामिल करा देता है तो ये दोनों विधेयक कानून का रूप ले लेंगे।
इन संशोधनों को झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार के पास भेजा है। झारखंड में मुख्य विपक्ष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है। राज्य में किसी भी दल ने इस विधेयक का विरोध नहीं किया है और सबकी सहमति से विशेष सत्र में विधेयक पारित हुआ है।
अब केंद्र के पास केवल एक ही विकल्प बचता है कि वह राष्ट्रपति के पास विधेयक को मंजूरी के लिए भेजे। झारखंड भाजपा ने इस विधेयक का समर्थन किया है, इसका सीधा विरोध नहीं किया है कि आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए।
ध्वनि मत से विधेयक पारित हो गया है। राज्य के अपने नेताओं की भावना समझते हुए केंद्र को इस विधेयक को कानून बनाने में मदद देना चाहिए।
हालांकि केंद्र सरकार वंचित तबके की मांग को लेकर केंद्र सरकार कई बार नकारात्मक रुख़ दिखा चुकी है। बिहार विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी जाति जनगणना का समर्थन करती है। सर्वसम्मति से विधेयक पारित कर केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है, उसके बाद बिहार के ही पिछड़े वर्ग से आने वाले यादव नेता नित्यानंद राय संसद में कहते हैं कि सरकार जाति जनगणना नहीं कराएगी। भाजपा इस तरह का काम कर चुकी है कि राज्य इकाई की भावना को खारिज कर दिया जाए।
इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण को मंजूरी दे दी, जिसे केंद्र की भाजपा सरकार ने कानून बनाया था। न्यायालय हर तरह के आरक्षण यह कहकर खारिज करती रही है कि इस आरक्षण से अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण देने की सीमा टूट जाएगी, लेकिन वह ईडब्ल्यूएस आरक्षण में सीमा तोड़ चुकी है। ऐसे में उच्चतम न्यायालय को भी यह कहने का नैतिक अधिकार नहीं रह जाता कि वह इस आधार पर झारखंड सरकार का प्रस्ताव खारिज कर दे कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा हो रहा है।
न्यायालय ने आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा कर देने का रास्ता खोल दिया है। झारखंड पहला राज्य बन गया है जिसने शीर्ष न्यायालय के फैसले के बाद आरक्षण बढ़ा देने का फैसला किया है। इसके अलावा तेलंगाना में कापू आरक्षण, महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण, गुजरात में पाटीदार आरक्षण, हरियाणा में जाट आरक्षण ऐसे मसले रहे हैं, जिसके चलते इन राज्यों में लंबे वक्त तक हंगामा चल चुका है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला भी सर उठाएगा। ऐसे में उच्चतम न्यायालय द्वारा आरक्षण के 1991 से चल रहे विवाद को नए सिरे से खोलने के बाद राज्यों की ओर से एक के बाद एक बवाल के झोंके आने स्वाभाविक हैं। झारखंड ने इसकी शुरुआत कर दी है।