कोरोना वायरस के लिए डॉक्टर पति-पत्नी को ड्यूटी लगाने पर झारखंड में अजीब मामला सामने आया है। कोरोना के डर से सरकारी अस्पताल में काम करने वाली दंपती ने इस्तीफ़ा दे दिया है। अब अस्पताल प्रशासन ने दोनों को चेतावनी भेजी है कि 24 घंटे में वे ड्यूटी ज्वाइन करें नहीं तो एफ़आईआर दर्ज करने जैसी सख़्त कार्रवाई होगी। यह अजीब मामला इसलिए है कि डॉक्टरों पर लोगों की जान बचाने की ज़िम्मेदारी होती है और इसी कारण उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। उनका समाज में विशेष सम्मान है। डॉक्टरों पर ऐसे ही भरोसे के कारण मरीज अपना उपचार कराने के लिए अपनी ज़िंदगी उनके भरोसे छोड़ देते हैं। लेकिन यदि संकट के समय में कुछ लोग ऐसा व्यवहार करने लग जाएँ तो उस भरोसे का क्या होगा?
भले ही कोरोना वायरस बहुत तेज़ी से फैलता है, लेकिन सावधानी बरतने पर इससे पूरी तरह से बचा जा सकता है। यह घातक भी उन लोगों के लिए है जो किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं या फिर ज़्यादा बुजुर्ग हैं। क़रीब 97 फ़ीसदी लोग स्वस्थ हो जा रहे हैं। 80 फ़ीसदी लोगों के हॉस्पिटल में भर्ती होने की ज़रूरत भी नहीं पड़ रही है। ऐसे में डॉक्टरों के लिए ज़्यादा डरने की वजह नहीं होनी चाहिए। फिर भी झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले के उस सरकारी अस्पताल के डॉक्टर पति-पत्नी के इस्तीफ़े की वजह समझ से परे है। उन्होंने इस्तीफ़ा भी भेजा तो एक बार नहीं दो-दो बार। पहले वाट्सएप से और फिर ई-मेल से भी। यानी वे इत्मीनान हो जाना चाहते थे कि उनका इस्तीफ़ा तुरंत पहुँचे और मंजूर भी हो।
'हिंदुस्तान' की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम सिंहभूम के सिविल सर्जन डॉ. मंजू दुबे ने मंगलवार को कहा कि राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी के निर्देश पर उन्होंने 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि डॉ. आलोक टिर्की ड्यूटी ज्वाइन कर लें। उन्होंने कहा, 'स्वास्थ्य सचिव के निर्देश के अनुसार, मैंने डॉ. टिर्की से 24 घंटे में ड्यूटी ज्वाइन करने को कहा है, नहीं तो झारखंड महामारी रोग (कोविड -19) विनियमन -2020 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की जाएगी। यदि वह तुरंत वापस ड्यूटी पर नहीं आते हैं तो उन्हें अपने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पंजीकरण के रद्द किए जाने की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है।'
हालाँकि इस पर डॉ. टिर्की ने सफ़ाई भी दी है। रिपोर्ट के अनुसार, वह कार्यालय की राजनीति का शिकार हैं। उन्होंने कहा, 'मेरी पत्नी और बहन इम्यूनोसप्रेस्सिव अवस्था में हैं और उन्हें संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा है। इसलिए, हमने अपने पदों से इस्तीफ़ा दिया है। मेरी बहन का हाल ही में गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था।'
इस बीच उसी हॉस्पिटल के 23 अन्य डॉक्टर ऐसे हैं जिन्होंने छुट्टी के लिए भी आवेदन नहीं किया है और मरीजों का इलाज करने को तत्पर हैं। यानी वे लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने की अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी समझते हैं। डॉक्टरों में ऐसा ही जज्बा लोगों में उम्मीद की रौशनी फैलाता है।