लगता है कि अब केंद्र सरकार भी इस बात को समझ रही है कि जम्मू-कश्मीर में हालात को पटरी पर लाने के लिए उसे बातचीत के रास्ते पर आना ही होगा। इसलिए वह जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती से बातचीत करने की कोशिश कर रही है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, केंद्र सरकार ने उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती से बातचीत करने की कोशिश की है। ऐसा करके वह यह संदेश देना चाहती है कि वह घाटी में हालात सामान्य करने को लेकर गंभीर है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से पहले से ही (4 अगस्त को) केंद्र सरकार ने उमर और महबूबा को हिरासत में ले लिया था। उमर को हरि निवास पैलेस में रखा गया है जबकि महबूबा को श्रीनगर के चश्माशाही के वन विभाग में रखा गया है। अख़बार के मुताबिक़, नाम ना उजागर करने की शर्त पर एक सूत्र ने बताया कि जाँच एजेंसियों के कुछ अधिकारी इन नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य में हमेशा के लिए राजनीतिक बंदी नहीं की जा सकती।
ख़बर के मुताबिक़, सरकार की चिंता बस यही है कि प्रतिबंधों को ख़त्म कर दिये जाने के बाद उमर और महबूबा घाटी के लोगों को क्या राजनीतिक संदेश देंगे। इसलिए सरकार इस बारे में पूरी सावधानी रख रही है।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती से केंद्र सरकार किस मुँह से बातचीत करेगी। क्योंकि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से ही बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व देश भर में घूम-घूमकर, रैलियों, सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से कह रहा है कि अब्दुल्ला परिवार और मुफ़्ती परिवार ने जम्मू-कश्मीर को लूटा है और अनुच्छेद 370 के हटने से इन्हें लूट का मौक़ा नहीं मिल पायेगा, इसीलिए ही ये लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से सबसे ज़्यादा परेशान हैं।
इतना ही नहीं, बीजेपी अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवारों के साथ सरकार भी बना चुकी है। उमर अब्दुल्ला अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं और महबूबा मुफ़्ती ने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में 40 महीने तक सरकार चलाई थी।
बीजेपी ने पहले इन दोनों परिवारों के नेताओं को कश्मीरियों और देशभर की नज़र में खलनायक बनाने की भरपूर कोशिश की और अब जब अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के तीन हफ़्ते बाद भी कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हुए हैं तो उसे यह समझ आ गया है कि राज्य के इन प्रमुख नेताओं से बात किये बिना वह स्थिति को नहीं सभाल सकती है। क्योंकि घाटी में अब तक हालात सामान्य नहीं हो सके हैं।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, राज्य के लोगों में अनुच्छेद 370 को हटाये जाने को लेकर बहुत ग़ुस्सा है और प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के बाद भी लोग घाटी में दुकान खोल रहे हैं और सड़कों से वाहन भी ग़ायब हैं। ख़बर के मुताबिक़, पूरी कश्मीर घाटी में सन्नाटे का माहौल है और ऐसा तब है जब किसी भी अलगाववादी संगठन की ओर से बंद नहीं बुलाया गया है। ख़बर में कश्मीर के कई लोगों के हवाले से कहा गया है कि यह बंद उनके यानी स्थानीय लोगों के द्वारा बुलाया गया है और वे इसे लंबा खींचना चाहते हैं ताकि वे कश्मीर के हालात के बारे में दुनिया को बता सकें। बता दें कि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से पहले सरकार ने घाटी में बड़ी संख्या में जवानों की तैनाती कर दी थी क्योंकि सरकार को यह डर था कि उसके इस क़दम से कश्मीर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो सकते हैं।
इसके अलावा केंद्र सरकार राज्य में हालात सामान्य होने के भले ही लाखों दावे करे लेकिन वह राज्य की वास्तविक हालत को सामने नहीं आने देना चाहती है, वरना राज्यपाल सत्यपाल मलिक के कश्मीर दौरे को स्वीकारने के बाद भी आख़िर क्यों जम्मू-कश्मीर प्रशासन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और अन्य विपक्षी नेताओं को राज्य में नहीं आने दे रहा है।
यानी सचमुच हालात ख़राब हैं और अब सरकार को लगता है कि उसे अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवारों के साथ बातचीत करनी चाहिए लेकिन क्या उन्हें देश भर में और उनके ही राज्य में बदनाम करने के बाद वे लोग सरकार पर भरोसा कर पाएँगे या बातचीत के लिए आगे आ पाएँगे और क्या जिस तरह की नाराज़गी कश्मीर में केंद्र सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है, क्या वह उनकी नाराज़गी को दूर कर पाएगी, इसके लिए हमें इंतजार करना होगा।