जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला को अब कैसे महसूस हुआ पीएसए लगने का दर्द

10:53 am Aug 29, 2020 | हारून रेशी - सत्य हिन्दी

उमर अब्दुल्ला ने दो दिन पहले अपने ट्विटर हैंडल पर एक साल पुरानी तसवीर साझा की।  तसवीर में वह अपनी फूफी सुरैया अब्दुल्ला और बहन सफिया अब्दुल्ला के साथ बेहद ख़ुश दिख रहे हैं। यह तसवीर पिछले साल 26 अगस्त को श्रीनगर के हरि निवास गेस्ट हाउस में ली गई थी, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री उमर को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत क़ैद किया गया था।

उमर अब्दुल्ला ने फोटो के बारे में अपने ट्वीट में लिखा, “पिछले साल मुझे उठाकर क़ैद किये जाने के बाद, आज के दिन ही बाहरी दुनिया के साथ मेरा पहला संपर्क हुआ था। हरि निवास में प्रवेश करने के तीन हफ्ते बाद, मेरी बहन और फूफी को मुझे देखने की अनुमति दी गई। मुझे याद है कि उन्हें देखना और उनके जरिये बाहर के हालात के बारे में पहली बार जानकारी लेना मेरे लिए कितनी ख़ुशी की बात थी।’’ 

गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला के ट्विटर प्रोफाइल पर बायो में लिखा है कि वह सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत क़ैद रह चुके हैं। अपने प्रोफाइल में उन्होंने खुद को "पूर्व पीएसए राजनीतिक क़ैदी, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व संसद सदस्य, पूर्व विधानसभा सदस्य और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस का उपाध्यक्ष" लिखा है।

हालांकि, यह ये नहीं बताता है कि पीएसए के तहत क़ैद होने पर उन्हें गर्व है या खेद है। या फिर पीएसए के तहत अपने जेल जाने की यात्रा को वह खुद के लिए सम्मान मानते हैं या फिर उनकी नज़र में क़ानून के तहत क़ैद करके उन्हें कोई सजा दी गई है।

पीएसए की पृष्ठभूमि

जम्मू और कश्मीर देश का एकमात्र क्षेत्र है जहां सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए लागू है। यह क़ानून पहली बार 1978 में जम्मू और कश्मीर में तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला द्वारा बनाया गया था। कश्मीर में, कुछ लोग इस क़ानून को 'काला क़ानून' कहते हैं। क्योंकि आम क़ानून के तहत, किसी भी नागरिक को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य होता है। लेकिन पीएसए के तहत एक नागरिक को गिरफ्तार करने के बाद, सरकार उस पर मुकदमा चलाए और उसे अदालत में पेश किये बिना दो साल तक क़ैद रख सकती है। 

इस क़ानून के तहत किसी को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने के लिए, सरकार को केवल यह कहने की जरूरत है कि आरोपी की हरकतें राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा हैं।

जब दिवंगत शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में इस क़ानून को लागू किया था, तो उन्होंने कहा था, “घाटी में वन तस्करी को इस क़ानून की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। क्योंकि वन तस्करों को सरकार द्वारा गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन उन्हें अदालतों से जमानत पर रिहा कर दिया जाता है। इस क़ानून के तहत, उन्हें अदालतों के सामने लाए बिना हिरासत में लिया जा सकता है और इस तरह से वन तस्करी को रोकना संभव होगा।”

राजनीतिक विरोधियों को चुप कराया 

हालांकि, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और संपादक ताहिर मुहीउद्दीन कहते हैं, “जम्मू और कश्मीर में पीएसए के लागू होने के बाद, शेख ने अपने राजनीतिक विरोधियों की आवाज़ को दबाने के लिए इस क़ानून का इस्तेमाल किया। वास्तव में, शेख़ के बाद आने वाली सरकारों ने भी पीएसए का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों की आवाज़ को दबाने के लिए एक हथियार के रूप में किया। यहां तक कि राज्यपाल शासन के दौरान, विरोधी राजनीतिक विचारधारा रखने वालों को इस क़ानून का उपयोग करके लंबी जेल यात्रा पर भेजा गया।”

आज, 42 साल बाद भी पीएसए का उपयोग राजनीतिक विरोधियों को क़ैद करने के लिए किया जा रहा है। विशेष रूप से पिछले 30 वर्षों के दौरान घाटी में पीएसए का अंधाधुंध उपयोग किया गया है।

हज़ारों लोगों को किया क़ैद 

2015 में, सरकार ने अपने स्वयं के आंकड़े प्रस्तुत किए, जिसमें कहा गया था कि 1988 से 2015 तक 27 वर्षों में पीएसए के तहत 16,329 लोगों को गिरफ्तार करके क़ैद किया गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 1995 से 2008 तक पीएसए के तहत 16 कश्मीरी महिलाओं को भी हिरासत में लिया गया था। उसके बाद भी, कई कश्मीरी महिलाओं को इस क़ानून के तहत क़ैद किया गया था।

पीएसए की जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य के डिफेंस  ऑफ़ इंडियन एक्ट से जाकर मिलती हैं। बाद में, 1946 में, ब्रिटिश शासकों ने इस एक्ट का नाम बदलकर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम कर दिया। इसके द्वारा महाराजा हरि सिंह के दौर में इसके जरिये "कश्मीर छोड़ो" आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया। 1978 में, शेख ने वन तस्करों को नियंत्रित करने के नाम पर इस क़ानून को लागू किया। 1987, 1990 और 2012 में, पीएसए में कुछ बदलाव किए गए थे। 

सरकार के हाथ में फ़ैसला 

पीएसए क़ानून के वर्तमान स्वरूप के अनुसार  किसी व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी के चार सप्ताह के भीतर सरकारी अधिकारियों के सलाहकार बोर्ड के सामने अपना मामला प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि बोर्ड यह तय कर सके कि उसे हिरासत में रखा जाए या रिहा किया जाए। लेकिन सलाहकार बोर्ड के सदस्य सरकारी अधिकारी हैं। यानी फैसला सरकार के हाथ में ही होता है। सरकार इस क़ानून के तहत गिरफ्तार किसी को भी बिना मुकदमा चलाए दो साल तक हिरासत में रख सकती है।

पीएसए में अंतिम संशोधन अगस्त, 2018 में किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप इस क़ानून के तहत कश्मीर में गिरफ्तार किए गए नागरिकों को अन्य राज्यों की जेलों में भी स्थानांतरित किया जा सकता है।

2010 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट में कहा कि जम्मू-कश्मीर में पीएसए लागू होने के बाद से 10,000 से 20,000 लोगों को क़ैद किया जा चुका है। पिछले साल 5 अगस्त को, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के राज्य और विशेष संवैधानिक दर्जे को समाप्त करने के साथ सार्वजनिक प्रतिरोध को दबाने के लिए इस क़ानून के तहत हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। 

पीएसए के तहत हिरासत में लिए गए हजारों लोगों में  शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूक़ अब्दुल्ला और पोते उमर अब्दुल्ला (दोनों पूर्व मुख्यमंत्री) थे, जबकि एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अभी भी पीएसए के तहत क़ैद हैं।

जाहिर है, जब 42 साल पहले शेख अब्दुल्ला ने अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के इरादे से इस क़ानून को लागू किया था, तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसा दौर भी आएगा जब खुद उनके बेटे फारूक़ और पोते उमर को भी इसी क़ानून के तहत क़ैद किया जाएगा।

उमर के ट्वीट पर प्रतिक्रिया

उमर के अपनी फूफी और बहन के साथ एक फोटो ट्वीट करने पर उनके फालोअर्स ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। उनमें से कई ने उन पर व्यंग्य भी किया। उदाहरण के लिए, वसीम वानी नाम के एक ट्विटर यूजर ने उमर अब्दुल्ला के ट्वीट के नीचे लिखा, "आप भाग्यशाली हैं कि अपनी क़ैद और परिवार से मुलाक़ात की ख़बर को शेयर कर रहे हैं। आपके द्वारा क़ैद किए गए अनगिनत लोग इतने भाग्यशाली नहीं हैं। आप अपने विवेक पर इस दाग के साथ रात में कैसे सो पाते हैं"

एक अन्य फ़ॉलोअर ने कहा, "किसी को भी अपने प्रियजनों से अलग करने के लिए यह एक दर्दनाक प्रक्रिया है, संयुक्त राष्ट्र के क़ानून के तहत, जिन पर आतंकवादी का लेबल लगाया जाता है, वे आतंकवादी नहीं हैं। राजनीतिक क़ैदियों के लिए पीएसए लागू करना अवैध है।”

वाणी इरशाद ने कहा, "कोई भी दूसरों की पीड़ा को उस वक़्त तक नहीं समझता है जब तक कि वह स्वयं इस पीड़ा से नहीं गुज़रे, आपके साथ जो हुआ है, वह पीएसए की वजह से आम लोगों को होने वाली पीड़ा का पांच प्रतिशत भी नहीं है। ”

अन्य ट्विटर यूजर तजम्मुल इसलाम ने लिखा, "अब उन सैकड़ों माता-पिता और बहनों की दुर्दशा की कल्पना करें, जिन्हें आपके पिता और दादा ने क़ैद किया था। आपको एक बड़े होटल में रखा गया लेकिन उन्हें काल कोठरियों में धकेल दिया गया था। कर्म फिर से आपके पास लौट कर आएगा।”

अयान मलिक नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा, "अब अनुमान लगाओ कि उन परिवारों पर क्या बीती होगी जो पीएसए के तहत क़ैद थे और जब आप और आपके पिता सत्ता में थे।" नासिर मीर ने लिखा, "जो बोया था, वही काटा।" जावेद ख़ालिक़ नाम के एक नागरिक ने उमर के ट्वीट के जवाब में लिखा, "अब कम से कम आपने खुद पीएसए की दवा का स्वाद चख लिया।"

दिलचस्प बात है कि जनवरी, 2019 में, उमर अब्दुल्ला ने एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए लोगों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार अगले चुनावों में सत्ता में आती है, तो वह पीएसए को खत्म कर देंगे।

अब जबकि जम्मू और कश्मीर ने अपनी विशेष संवैधानिक स्थिति और विशेष राज्य का दर्जा खो दिया है और क़ानूनों को लागू करने या निरस्त करने की पूरी शक्ति केंद्र सरकार के हाथों में है, तो यह अनुमान लगाना असंभव है कि जम्मू-कश्मीर में पीएसए जैसे क़ानून कब तक लागू रहेंगे।