जम्मू-कश्मीर के पूर्व सदर-ए-रियासत और राजा हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि राज्य के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं को रिहा किया जाए और उनसे बातचीत शुरू की जाए। इसके साथ ही उन्होंने अनुच्छेद 35 'ए' ख़त्म करने का समर्थन करते हुए कहा है कि इससे लैंगिक भेदभाव दूर होगा। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ को अलग-अलग केंद्र शासित राज्य बनाने का भी समर्थन किया है।
'कश्मीरी नेताओं को रिहा करो'
कर्ण सिंह ने एक बयान जारी कर कहा है कि राज्य के दो मुख्य राजनीतिक दलों को देशद्रोही कह कर खारिज कर देना ग़लत है। इन दलों के कार्यकर्ताओं ने बलिदान दिया है और इन पार्टियों ने केंद्र और राज्य में देश की प्रमुख पार्टियों के साथ गठबंधन भी किया है।
कर्ण सिंह ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को रिहा किया जाए और उनसे तुरन्त बातचीत शुरू की जाए। बदली हुई स्थिति में सिविल सोसाइटी को भी बातचीत में शामिल किया जाए।
कर्ण सिंह ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को जल्द ही राज्य का दर्जा वापस दे दिया जाए ताकि लोग देश के शेष हिस्से के लोगों की तरह ही राजनीतिक अधिकार पा सकें। उन्होंने लद्दाख़ को केंद्र शासित क्षेत्र बनाए जाने के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि 1965 में उन्होंने राज्य के पुनर्गठन की योजना बनाई थी, उस समय तक वे सदर-ए-रियासत थे।
कांग्रेस की बढ़ेगी मुसीबत!
ऐसे में कर्ण सिंह के बयान से यह साफ़ है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी इस मुद्दे पर एकमत नहीं है।
कर्ण सिंह ख़ुद सदर-ए-रियासत रह चुके हैं और भारत में शामिल होने का फ़ैसला उनके पिता राजा हरि सिंह ने ही किया था, उनके बयान को झटके में खारिज नहीं किया जा सकता है।
भले ही जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कर्ण सिंह की आज कोई बहुत अहम स्थान न हो, बदली हुई स्थिति में और अनुच्छेद 370 के मामले में उनकी राय महत्व रखती है। ऐसे में साफ़ है कि कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। राहुल गाँधी और ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं ने सरकार की आलोचना की है तो ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने सरकार का समर्थन कर सबको चौंका दिया। कर्ण सिंह के बयान के बाद कांग्रेस क्या करती है, यह देखना होगा।