अनुच्छेद 370 में फेरबदल के बाद बनाए गए नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अब डिलिमिटेशन यानी परिसीमन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव से पहले निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर आंतरिक चर्चा शुरू कर दी है। इसके ज़रिए अब नए सिरे से जम्मू-कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र बाँटे जाएँगे। परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटों का इज़ाफा होगा। माना जा रहा है कि इसका फ़ायदा बीजेपी को मिल सकता है। विपक्षी पार्टियाँ आरोप लगाती रही हैं कि बीजेपी परिसीमन कर धार्मिक आधार पर बाँटने की कोशिश में जुटी है और इससे बीजेपी को सरकार बनाने का मौक़ा मिलेगा। इस मामले पर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला लगातार हमले करते रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए बीजेपी लंबे समय से प्रयासरत थी, लेकिन अब जाकर अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद इस रास्ता साफ़ हुआ है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में सीटों की संख्या 107 से बढ़कर 114 हो जाएगी। यह अधिनियम यह भी साफ़ करता है कि परिसीमन 2011 की जनगणना के आधार पर होगा और 2026 तक के लिए ऐसी ही व्यवस्था रहेगी।
बता दें कि किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र की परिसीमन प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है या नहीं। इसलिए इसे हर जनगणना के बाद प्रयोग में लाया जाता है। प्रत्येक जनगणना के बाद, संसद संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत परिसीमन अधिनियम लागू करती है। इसके बाद परिसीमन आयोग गठित किया जाता है, जो पूरी प्रक्रिया को पूरा करता है।
114 सीटें होंगी
इस पर परिसीमन आयोग के एक अधिकारी की भी प्रतिक्रिया आई है। अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ के अनुसार, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और परिसीमन आयोग के पदेन सदस्य एन. गोपालस्वामी ने कहा कि सीटों की संख्या में वृद्धि ‘संसद का एक राजनीतिक निर्णय का मुद्दा’ है और परिसीमन आयोग क़ानून के अनुसार प्रक्रिया शुरू करेगा।
उन्होंने कहा कि प्रति निर्वाचन क्षेत्र में औसत संख्या करने के लिए कुल आबादी को 114 सीटों से विभाजित किया जाएगा। निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय करते समय यह ध्यान रखा जाएगा कि प्रशासनिक इकाइयों को यथासंभव कम से कम छेड़ा जाए।
सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग को जल्द ही परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा जाएगा। बता दें कि चुनाव की तैयारियों के लिए बीजेपी ने अपनी राज्य इकाई को चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए कह दिया है। बीजेपी अनुसूचित जनजाति के गुर्जर-बकरवाल समुदायों का समर्थन पाने के लिए बड़े पैमाने पर उन तक पहुँचने के प्रयास में जुटी है।
महबूबा और उमर का विरोध
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला बीजेपी के परिसीमन के प्रस्ताव का विरोध करते रहे हैं। हालाँकि महबूबा और उमर, दोनों गिरफ़्तार हैं और इस पर उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पहले से ही वे इस फ़ैसले की आलोचना करते रहे हैं। अनुच्छेद 370 पर फ़ैसले से पहले परिसीमन आयोग के संभावित गठन को लेकर महबूबा मुफ़्ती ने चिंता जताई थी और ट्वीट किया था, ‘मैं उन ख़बरों को सुनकर परेशान हूँ जिनमें कहा गया है कि केंद्र सरकार विधानसभाओं का परिसीमन करने पर विचार कर रही है। जबरन परिसीमन राज्य को धार्मिक आधार पर बाँटने का भावनात्मक प्रयास होगा। पुराने जख़्मों को भरने की बजाय भारत सरकार कश्मीरियों के घावों को कुरेद रही है।’
उस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी ट्वीट कर लिखा था, ‘परिसीमन पर पूरे देश में साल 2026 तक रोक लगाई गई है। इसके विपरीत कुछ ग़लत जानकारी वाले टीवी चैनल इस पर भ्रम पैदा कर रहे हैं, यह केवल जम्मू-कश्मीर के संबंध में रोक नहीं है। अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाकर जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की बराबरी पर लाने की बात करने वाली बीजेपी अब इस संबंध में जम्मू कश्मीर के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार करना चाहती है।’
हालाँकि इन दोनों नेताओं के विरोध का परिसीमन प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि संविधान में संशोधन हो चुका है और इस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग चुकी है। यानी अब जो परिसीमन आयोग तय करेगा वही मान्य होगा। अब यह परिसीमन आयोग पर निर्भर करता है कि वह क्षेत्रों का परिसीमन किस रूप में करता है।