अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से कश्मीर के हालात को लेकर सभी लोग चिंतित हैं। क्योंकि वहाँ कर्फ्यू लगे लगभग तीन हफ़्ते हो चुके हैं, ऐसे में घाटी में रोजमर्रा की चीजों को लेकर किस क़दर किल्लत होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे हालात में जब कर्फ्यू लगा हो, बाज़ार लगभग पूरी तरह बंद हों, किसी के घर में कोई बीमार हो जाये और दवाइयों की ज़रूरत हो तो वह शख़्स क्या करेगा। वह अपनी हिम्मत के हिसाब से हाथ-पैर मारेगा और पूछेगा कि सरकार के फ़ैसले की सजा आम आदमी को क्यों दी जा रही है। ऐसा ही कुछ हुआ कश्मीर में, जहाँ के साजिद अली को डायबिटीज से पीड़ित अपनी बीमार माँ के लिए दवाइयों की ज़रूरत थी।
न्यूज़ 18 के मुताबिक़, 30 साल का साजिद दवा का पर्चा लेकर मंगलवार को घाटी में दर्जन भर दवा की दुकानों में इस उम्मीद में गया कि उसे दवा मिल जाएगी। लेकिन जब लगभग तीन हफ़्ते से इलाक़े में कर्फ्यू लगा हो, टेलीफ़ोन सेवाएँ पूरी तरह बंद हों तो दवा की दुकानों में दवाएँ कहाँ से आएगी और यही हुआ, साजिद को बीमार माँ की दवा नहीं मिली।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के केंद्र के फ़ैसले के लगभग तीन हफ़्ते बाद भी घाटी में दवा की दुकानों को छोड़कर सभी दुकानें पूरी तरह बंद हैं, सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह ठप है और घाटी में जबरदस्त उदासी का माहौल है।
न्यूज़ 18 के मुताबिक़, साजिद की माँ, 65 साल की सुराया बेगम के पास सिर्फ़ दो दिन की दवा बची थी। आप हालात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कश्मीर में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद है और किसी भी शख़्स अगर उसे कहीं जाना हो तो वह कैसे जायेगा। लेकिन अली किसी तरह एक स्थानीय अस्पताल की एंबुलेंस में सवार होकर श्रीनगर पहुँचा। लेकिन अली की मुश्किलें शायद यहीं ख़त्म होने वाला नहीं थीं। उसने श्रीनगर में भी कई घंटों तक दवा खोजने की कोशिश की लेकिन दवा नहीं मिली। आप अंदाजा लगाकर देखिये कि साजिद उस वक्त किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा होगा। लेकिन माँ की तबीयत का सवाल था इसलिए अली श्रीनगर एयरपोर्ट गया और वहाँ से दिल्ली आया और दवा ख़रीदी।
अगले ही दिन अली ने दिल्ली से वापसी की फ़्लाइट ली और अपने घर पहुँचा। लेकिन घर पर उसके माता-पिता का चिंता के मारे बुरा हाल था क्योंकि टेलीफ़ोन सेवाएँ बंद हैं, ऐसे में साजिद की अपने घर पर भी बात नहीं हो सकी। साजिद ने जब अपनी माँ को यह सारी बातें बताईं कि वह किस तरह उनके लिए दवा लेकर आया तो वह रो पड़ीं।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि साजिद तो बिजनेसमैन हैं, उनकी जगह कोई आम शख़्स होता जिसके पास शायद इतने पैसे न होते कि वह दिल्ली से श्रीनगर फ़्लाइट से आ-जा सके तो क्या होता। साजिद ने भी इस बात को कहा, ‘मैंने तो किसी तरह दवा जुटा ली लेकिन ग़रीब लोग क्या करेंगे?’
घाटी में दवाओं की बिक्री करने वालों का कहना है कि उनके पास दवाएँ नहीं हैं। ग्रामीण इलाक़ों में पूरी तरह स्टॉक ख़त्म हो चुका है और आने वाले समय में हालात बेहद ख़राब हो सकते हैं।
उत्तरी कश्मीर के उरी में मलिक मेडिकल हॉल नाम से दवाओं की एक बड़ी दुकान है लेकिन इनके पास भी ज़रूरी दवाएँ नहीं हैं। न्यूज़ 18 के मुताबिक़, मलिक मेडिकल हॉल के सेल्समैन ने कहा, ‘हमारे पास स्टॉक ख़त्म हो चुका है और 5 अगस्त से अब तक हमें कोई भी नया माल नहीं मिला है। अब हमारे पास सिर्फ़ एंटीबॉयोटिक दवाएँ बची हैं।’ हर दिन दूर-दराज के इलाक़ों से कई लोग ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की दवा मिलने की आस में दुकान पर पहुँचते हैं लेकिन उन्हें निराशा ही मिलती है।
न्यूज़ 18 के मुताबिक़, उरी के नमाला गाँव के रहने वाले मोहम्मद इस्माइल का कहना है कि वह पिछले एक हफ़्ते से अपने पिता के लिए इंसुलिन आने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अब तक दवा नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि दवा न मिलने के कारण लोग बेहद नाराज हैं।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन यह दावा कर रहा है कि कश्मीर में खाने और ईंधन को लेकर कोई दिक़्क़त नहीं है लेकिन वह सबसे ज़रूरी चीज दवाओं के बारे में बात नहीं कर रहा है। इस्माइल ने सरकार के इस दावे पर नाराज होते हुए कहा, ‘दवाओं की ज़रूरत बाक़ी चीजों से पहले है। हम लोग बिना दवाओं के मर रहे हैं।’न्यूज़ 18 के मुताबिक़, श्रीनगर के बटमालू इलाक़े में दवाओं की सप्लाई करने वाले प्रमुख विक्रेता मंसूर अहमद ने कहा, ‘हमारे पास सिर्फ़ 30 फ़ीसदी स्टॉक बचा है और दिल्ली से हमें कोई भी नया स्टॉक नहीं मिला है।’ मंसूर ने कहा कि बंदिशों और टेलीफ़ोन सेवाओं के बंद होने से हम लोग जो दवाएँ बची हैं, उन्हें भी ग्रामीण इलाक़ों में नहीं पहुँचा पा रहे हैं।
मंसूर कहते हैं पिछले 30 सालों में दवाओं को लेकर कश्मीर में ऐसा संकट कभी नहीं आया। दवाओं की आपूर्ति करने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि यहाँ टेलीफ़ोन सेवाएँ बंद हैं और ऐसे में एक-दूसरे से संपर्क करना मुश्किल हो गया है।
घाटी में पिछली बार ऐसे हालात 2016 में बने थे जब कई महीने तक बंद के हालात थे लेकिन तब भी दवाओं को लेकर इतनी ख़राब स्थिति नहीं थी। न्यूज़ 18 के मुताबिक़, श्रीनगर के एक डॉक्टर ने अपनी पहचान न बताने की शर्त पर कहा कि यह बहुत ही ख़राब स्थिति है और लोग दवा न होने के कारण मर रहे हैं।
हालाँकि रविवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कहा कि श्रीनगर में 1,666 दवा की दुकानों में से 1,165 दुकानें खुली रहीं। प्रशासन ने यह भी कहा कि पिछले 20 दिनों में 23.81 करोड़ की दवाएँ दुकानों में पहुँचाई जा चुकी हैं।
सरकार ने ऐसे और भी दावे किये हैं लेकिन आख़िर ये दवाएँ लोगों तक क्यों नहीं पहुँच पा रही हैं, अगर पहुँचती तो क्या साजिद को दवाई लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ता।
हो सकता है कि घाटी में साज़िद जैसे कई और लोग हों जिनके घर पर लोग बीमार हों, दवाओं की ज़रूरत हो लेकिन न फ़ोन सेवा, न सार्वजनिक परिवहन, ऐसे में कोई क्या करेगा। जब कश्मीर से ऐसी तस्वीर सामने आती है तो केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के कश्मीर में हालात सामान्य होने के तमाम दावे अपने आप ही धराशायी हो जाते हैं और हालात के बेहद ख़राब होने की ओर इशारा करते हैं। साथ ही यह भी संदेश देते हैं कि केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन जल्द से जल्द इन हालतों को संभाले।