जम्मू-कश्मीर: पीएसए ख़तरनाक क़ानून, बिना मुक़दमे के दो साल जेल

08:37 pm Sep 16, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) के तहत नज़रबंद कर दिया गया है। उनके घर को जेल में तब्दील कर दिया गया है। 

पीएसए क्या है

राज्यपाल ने 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को मंजूरी दी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने इसे विधानसभा से पारित कराया था। इसके तहत 16 साल से अधिक की उम्र के किसी भी आदमी को गिरफ़्तार किया जा सकता है और बग़ैर मुक़दमा चलाए उसे दो साल तक जेल में रखा जा सकता है। बाद में 2018 में इसमें संशोधन किया गया, जिसके तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर भी किसी आदमी को पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया जा सकता है।

इस अधिनियम के तहत कोई व्यक्ति यदि ऐसा कोई काम करता है, जिससे सार्वजनिक क़ानून व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है तो उसे एक साल के लिए गिरफ़्तार किया जा सकता है। 

यदि कोई आदमी ऐसा कुछ करता है जिससे राज्य की सुरक्षा पर कोई संकट खड़ा होता है तो उसे दो साल के लिए जेल में रखा जा सकता है।

इस क़ानून में यह कहा गया है कि पीएसए के तहत गिरफ़्तारी का आदेश डिवीज़नल कमिश्नर या ज़िला मजिस्ट्रेट दे सकते हैं।

गिरफ़्तार करने वाले आदमी के लिए यह बताना ज़रूरी नहीं होगा कि वह क्यों गिरफ़्तार कर रहा है।

पीएसए की धारा 22 के तहत यह कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अच्छी मंशा से काम करने वाले के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। 

धारा 23 के तहत यह कहा गया है कि अधिनियम में बीच-बीच में बदलाव किए जा सकते हैं। 

एमनेस्टी की रिपोर्ट

मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़े संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2012 और 2018 के बीच 200 मामलों का अध्ययन किया। इस अध्ययन के मुताबिक़, तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने विधानसभा में यह कहा था कि 2016-2017 में पीएसए के तहत 2,400 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। लेकिन इसमें 58 प्रतिशत मामलों को अदालत ने खारिज कर दिया था।

शुरू में इस क़ानून का मक़सद लकड़ी की तस्करी रोकने के लिए तस्करों से कड़ाई से पेश आना था। इस क़ानून का बहुत ही अधिक दुरुपयोग हुआ और 1990 तक एक के बाद दूसरी तमाम सरकारों ने राजनीतिक विरोधियों से निपटने के लिए इसका इस्तेमाल किया। राज्य में उग्रवाद बढ़ने के बाद इस क़ानून का उपयोग अलगाववादियों से निपटने के लिए किया गया। 

साल 2016 में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी के सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया था।