जम्मू-कश्मीर में संदिग्ध आतंकवादियों ने रविवार को दो बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी। एक मजदूर घायल हो गया।
यह वारदात कुलगाम के विनपोह में हुई है।
मारे गए बिहारी मजदूरों की पहचान राजा ऋषिदेव और जोगिन्द्र ऋषिदेव के रूप में की गई है। वहीं घायल आदमी की पहचान चुनचुन ऋषिदेव के तौर पर हुई है।
कश्मीर पुलिस ने इस वारदात की पुष्टि कर दी है। उसने कहा है कि "आतंकवादियों ने कुलगाम के वनपोह में अंधाधुंध गोलीबारी कर दो ग़ैर-स्थानीय लोगों को मार डाला है, एक को ज़ख़्मी कर दिया है। सुरक्षा बलों ने इलाक़े की घेराबंदी कर दी है।"
इससे साफ है कि संदिग्ध आतकंवादी सोची समझी रणनीति के तहत आम नागरिकों को चुन- चुन कर निशाना बना रहे हैं।
कुलगाम की इस वारदात में मारे गए लोगों के साथ ही बीते दो हफ़्तों में जम्मू-कश्मीर में मरने वाले आम नागरिकों की संख्या 11 हो गई है।
निशाने पर बाहरी लोग
संदिग्ध आतंकवादियों ने जिन 11 आम नागरिकों को निशाने पर लिया है, उनमें से पाँच दूसरे राज्यों से आए हुए लोग हैं। ये लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में यहाँ आए हुए थे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि आतंकवादी गुटों की रणनीति भारत के सुरक्षा बलों को तो चुनौती देना है ही, वे राज्य के बाहर के लोगों को भगाना भी चाहते हैं। वे चाहते हैं कि यह संकेत जाए कि जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग न जाएं।
निशाने पर आम नागरिक क्यों?
मारे गए लोगों में बिहार के गोल- गप्पा बेचने वाले अरविंद कुमार साह, भागलपुर के स्ट्रेट वेंडर विरेंदर पासवान, उत्तर प्रदेश के बढ़ई सगीर अहमद हैं।
इसके अलावा श्रीनगर में दवा दुकान के मालिक माखन लाल बिंदरू, शिक्षक दीपक चंद व सुपुंदर कौर, स्थानीय टैक्सी ड्राइवर मुहम्मद शफी लोन भी हैं।
ये सभी हत्याएं सोची समझी रणनीति के तहत चुन कर निशाना बना कर की गई हैं, ताकि लोगों खास कर अल्पसंख्यकों के मन में डर समा जाए और वे अपना घर- बार छोड़ कर चले जाएं।
जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि आतंकवादियों को लगता है कि ये लोग यहां बस जाएंगे और इस तरह जनसंख्या अनुपात असंतुलित हो जाएगा।
लोगों का कहना है कि यह 1990 के दशक जैसी स्थिति बनाने की कोशिश है जब बड़ी तादाद में कश्मीरी हिन्दुओं घर छोड़ कर पलायन कर गए थे।