11वीं का छात्र आतंकवादी या श्रीनगर मुठभेड़ फर्ज़ी?
जम्मू-कश्मीर में शोपियाँ मुठभेड़ के फ़र्जी पाए जाने और इस मामले में सेना के एक अधिकारी के शामिल होने की बात सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने के सिर्फ चार दिन बाद एक और मुठभेड़ हुई है, जिस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
श्रीनगर-बारामुला हाई वे पर कथित मुठभेड़ में तीन लोगों के मारे जाने के बाद मृतकों के परिजनों ने दावा किया कि मारे गए लोगों का आतंकवाद से कभी कोई संबंध नहीं रहा और वे पूरी तरह निर्दोष हैं। मृतकों में एक किशोर भी है जो एक पुलिस अधिकारी का बेटा है। सेना ने कहा है कि वह इस मामले पर जल्द ही पूरी जानकारी साझा करेगी।
क्या कहना है पुलिस का?
सेना की किलो फ़ोर्स के जनरल ऑफिसर कमान्डिंग एस. साही ने कहा, “हमें पिछले कई दिनों से यह ख़ुफ़िया जानकारी मिल रही थी कि श्रीनगर-बारामुला हाईवे पर आतंकवादियों की गतिविधियाँ हो रही हैं। कल हमें सूचना मिली कि हाईवे पर एक मकान में कुछ आंतकवादी छिपे हुए हैं। हमने उन्हें आत्मसमर्पण करने को कहा, पर उन्होंने जवाब में गोलियाँ चलाईं। हमने रात होने की वजह से कार्रवाई रोक दी। सुबह हमने उन्हें हथियार डालने को एक बार फिर कहा, पर उन्होंने फिर गोलीबारी की और हथगोले फेंके।”
पुलिस के बयान में कई तरह के विरोधाभास देखे जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजीपी विजय कुमार ने पत्रकारों से कहा कि शोपियां के ज़ुबैर अहमद, एजाज़ अहमद गनई और पुलवामा के अथर मुश्ताक ‘दुर्दान्त आतंकवादी’ थे, लेकिन उन्होंने यह भी माना है कि आतंकवादियों की सूची में इनके नाम नहीं हैं।
पुलिस ने पहले कहा था कि यह सेना, सीआरपीएफ़ और सेना का संयुक्त अभियान था, पर बाद में उसने कहा कि वह बाद में सीआरपीएफ़ के साथ शामिल हुई थी।
पुलिस ने बाद में एक दूसरा बयान जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि राष्ट्रीय राइफ़ल्स को आतंकवादियों के एक घर में छिपे होने की जानकारी मिलने पर राज्य पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप वहाँ गया।
क्या कहना है मृतकों के रिश्तेदारों का?
लेकिन मारे गए लोगों की कहानी बिल्कुल अलग है। श्रीनगर में पुलिस कंट्रोल रूम के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि इस कार्रवाई में मारे गए लोगों में एजाज़ अहमद 11वीं का छात्र था, उसके पिता पुलिस में हैं। फ़िलहाल गंदरबल में तैनात हैं।
परिजनों ने कहा, “एजाज़ ने मंगलवार की सुबह 10 बजे घर पर चाय पी और कहा कि वह बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन के दफ़्तर जा रहा है।”
एजाज के दादा बशीर अहमद गनई ने आरोप लगाया कि उनके पोते को गाड़ी से खींच कर बाहर निकाला गया और उसे गोली मार दी गई। उन्होंने कहा,
“
“मेरे बच्चे को क्यों मारा, उसने क्या किया था, हमें इसका जवाब चाहिए। हमें उसकी लाश दे दें, हमें उसकी लाश चाहिए।”
बशीर अहमद गनई, मृतक एजाज के दादा
‘हार्डकोर आंतकवादी’
आईजीपी विजय कुमार आतंकवादियों की सूची में एजाज़ का नाम नहीं होने की बात तो मानते हैं, पर अपनी बात पर अड़े हुए हैं। वे ज़ोर देकर कहते हैं कि वह ‘हार्डकोर आंतकवादी’ था।
उन्होंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा,
“
“अमूमन ऐसे युवाओं के माता-पिता को उनकी गतिविधियों की जानकारी नहीं होती है। उदाहरण के लिए श्रीनगर में कोचिंग पढ़ने वाले एक युवा को सीसीटीवी फ़ुटेज में हथगोला फेंकते हुए देखा गया। उसके माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं थी।”
विजय कुमार, आईजीपी, जम्मू-कश्मीर पलिस
पुलिस ने यह भी दावा किया है कि मारे गए लोगों में से एक हिज़बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी रईस किचरू का रिश्तेदार था। किचरू 2017 में मारा गया था।
जाँच की माँग
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस पूरे मामले की जाँच कराने की माँग की है।
One of them was son of J&K Police constable, another had 2 family members in police. Encounter took place in Srinagar's HMT area where the suspected militants were holed up, security forces said. https://t.co/PJnR4cU9bS via @ThePrintIndia
— J&K PDP (@jkpdp) December 30, 2020
शोपियाँ मुठभेड़ फ़र्जी
इस कांड के सिर्फ चार दिन पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अदालत में पेश चार्जशीट में यह माना था कि 18 जुलाई 2020 को शोपियाँ में हुई मुठभेड़ फ़र्जी थी और इसकी साजिश सेना के एक अफ़सर ने रची थी। इस मामले में तीन मज़दूर मारे गए थे, पुलिस ने पहले उन्हें भी हार्डकोर आतंकवादी ही कहा था।
कैप्टन की साजिश
चार्जशीट के अनुसार, सेना के कैप्टन ने कार की व्यवस्था की, आतंकवादी साबित करने के लिए अवैध हथियार सहित दूसरी अवैध सामग्रियों का इंतज़ाम किया और तीनों युवकों के शव ऐसे रखे जैसे वे आतंकवादी साबित किए जा सकें।
पुलिस ने सेना के जवानों सहित कई गवाहों और मोबाइल कॉल डिटेल से इस बात को साबित करने की कोशिश की है। चार्जशीट के मुताबिक़, इनाम पाने के लिए तीन मज़दूरों को आतंकवादी साबित किया गया।
बाद में राजौरी के परिवारों ने तीनों मृतक युवकों की पहचान 17 वर्षीय इबरार, 25 वर्षीय इम्तियाज़ और 20 वर्षीय अबरार अहमद के रूप में की। उन्होंने दावा किया था कि वे शोपियाँ में मज़दूरी करने गए थे और उनका आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं था।
माछिल फर्ज़ी मुठभेड़
जम्मू-कश्मीर पुलिस और वहाँ तैनात सेना के लोगों पर फ़र्जी मुठभेड़ के आरोप इसके पहले भी लग चुके हैं, कुछ मामलों में आरोप सही साबित हुए हैं और दोषियों को सज़ा भी दी गई है।
माछिल कांड मशहूर है। 30 अप्रैल, 2010, को कुपवाड़ा ज़िले के माछिल में एक कथित मुठभेड़ में शहज़ाद अहमद ख़ान, मुहम्मद शफ़ी लोन और रियाज़ अहमद लोन को मार दिया गया था और उन्हें आतंकवादी बताया गया था।
2016 में राजपूत रेजिमेंट के तत्कालीन कमांडिंग अफ़सर कर्नल दिनेश पठानिया, कैप्टन उपेंद्र सिंह, हवलदार दविंदर, लान्य नायक लक्ष्मी और लान्स नायक अरुण कुमार को संक्षिप्त कोर्ट मार्शल के बाद आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी।
ईनाम के लिए हत्या?
यह साबित हुआ था कि उन्होंने तीन मज़दूरों को काम दिलाने का लोभ देकर कुपवाड़ा बुलाया था और उनकी हत्या कर दी थी ताकि उन्हें आतंकवादी बता कर पुरस्कार और प्रमोशन हासिल किया जा सके।
I hope that we never see such #Machil fake encounter type of incidents ever again & let this serve as a warning to those tempted to try 3/3
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 13, 2014
मानवाधिकार संगठनों के आरोप
मानवाधिकार संगठनों ने यह आरोप लगाया था कि 6 अगस्त, 2011 को सेना ने राजौरी से मानसिक रूप से विक्षिप्त भिखारी अशोक कुमार को पकड़ा और उसे पुंछ के सूरनकोट में मार डाला, बाद में उसे लश्कर-ए-तैयबा का डिविज़नल कमान्डर अबू उसमान क़रार दिया।
सेना पर यह आरोप भी है कि फरवरी 2006 में कुपवाड़ा के दुधियापोरा में क्रिकेट खेल रहे चार बच्चों को मार दिया गया।
एक दूसरा आरोप यह है कि सेना ने सोपोर के बमई इलाक़े में मार्च 2009 को दो निर्दोष नागरिकों को मार दिया था।
क्यों होता है ऐसा?
पर्यवेक्षकों का कहना है कई बार पुलिस या सेना के जवान से पहचान में ग़लती हुई या या उन्हें ग़लत ख़ुफ़िया जानकारी दी गई है, यानी उनका मक़सद फ़र्जी मुठभेड़ नहीं था। पर कई मामलों में ईनाम पाने के लिए जानबूझ कर इस तरह के मुठभेड़ किए गए हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह जम्मू-कश्मीर में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ स्पेशनल पार्वस एक्ट (एएफएसपीए) यानी अफ़्सपा का होना है। इस राज्य के अलावा यह क़ानून नागालैंड, मणिपुर और असम में भी है।
अफ़्सपा
इसके तहत पुलिस व सेना के जवानों को विशेष अधिकार हासिल हैं। मसलन, इस क़ानून की धारा 4 (ए) में कहा गया है कि यदि क़ानून व्यवस्था बिगड़ी हुई हो और संबंधित अधिकारी को ज़रूरी लगे तो वह किसी को भी गोली मारने का आदेश दे सकता है, भले ही उससे किसी की मौत ही क्यों न हो जाए।
इसी तरह अफ़्सपा में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा बल के जवान बग़ैर सर्च वारंट के भी किसी के घर की तलाशी ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें किसी वरिष्ठ अधिकारी से पूर्व अनुमति की ज़रूरत नहीं है।
इस क़ानून की धारा 7 में यह प्रावधान है कि अफ़्सपा के तहत की गई कार्रवाइयों के लिए सुरक्षा बल के किसी जवान पर किसी न्यायालय में मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर में ताज़ा कथित मुठभेड़ की वारदात ऐसे समय हुई है जब वहां एक राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की गई है, ज़िला विकास परिषद के चुनाव हुए हैं और राज्य की सभी पार्टियों ने इसमें शिरकत की है।
इन चुनावों को इस रूप में देखा जा रहा है कि आम जनता व्यवस्था में विश्वास जता रही है। ऐसे में इस तरह के कांडों से आम जनता का विश्वास टूटेगा।