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जजों की नियुक्ति में 'सरकारी हस्तक्षेप' पर इजराइल में बवाल

जजों की नियुक्ति में 'सरकारी हस्तक्षेप' पर इजराइल में बवाल

क्या शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति में या फिर न्यायपालिका में सरकार का हस्तक्षेप होना चाहिए? ये सवाल भारत में लगातार उठता रहा है और इजराइल में भी। लेकिन इजराइल में लोग सड़कों पर क्यों उतर गए?

इजराइल में बवाल मचा है। हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे हैं। वे सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा जाहिर कर रहे हैं। वे देश की क़ानूनी प्रणाली में आमूलचूल बदलाव करने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। उस आमूलचूल बदलाव में बेंजामिन नेतन्याहू सरकार का वह फ़ैसला भी शामिल है जिसमें वह जजों की नियुक्ति में हस्तक्षेप करना चाहती है।

बेंजामिन नेतन्याहू सरकार के क़ानून मंत्री यारिव लेविन ने जो न्याय प्रणाली में बदलाव की योजना तैयार की है उसमें चार बड़े बदलाव शामिल हैं। सबसे पहले सरकार चाहती है कि 120 सदस्यीय संसद में 61 वोटों के साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फ़ैसले को ओवरराइड कर सके, जब तक कि वे निर्णय एकमत न हों।

दूसरा, यह कि सरकार तर्कसंगतता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कार्यपालिका के फ़ैसले को खारिज करने की प्रथा को ख़त्म करना चाहती है। इसके अलावा, लेविन ने एक ऐसे कानून का प्रस्ताव रखा जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति में सांसदों को बड़ी भूमिका देगा। अभी तक, पेशेवरों, न्यायाधीशों और क़ानूनविदों की एक समिति न्यायाधीशों को शीर्ष अदालत में पदोन्नत करती है।

वैसे, भारत में भी क़ानून मंत्री किरण रिजिजू काफ़ी कुछ ऐसा ही विचार रखते रहे हैं। रिजिजू ने हाल ही में कहा था कि 'मैंने समाचार में देखा कि उच्चतम न्यायालय ने चेतावनी दी है। लेकिन इस देश के मालिक इस देश के लोग हैं। हम लोग सेवक हैं। अगर कोई मालिक है, तो यह जनता है। यदि कोई मार्गदर्शक है, तो वह संविधान है। संविधान के मुताबिक़ जनता की सोच से यह देश चलेगा। आप किसी को चेतावनी नहीं दे सकते।' एक बार रिजिजू ने यह कहकर न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल खड़े किये थे कि जजों को चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता। 

रिजिजू ने कहा था कि 1947 के बाद से कई बदलाव हुए हैं, इसलिए यह सोचना गलत होगा कि मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी और इस पर कभी सवाल नहीं उठाया जाएगा।

कानून मंत्री रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा था जिसमें मांग की गई कि जजों की नियुक्ति के मसले पर बनने वाली समिति में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल किया जाना चाहिए। जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र और संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधि को शामिल किया जाए।

पत्र में लिखा गया कि यह पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही के लिए ज़रूरी है। रिजिजू संसद द्वारा पारित क़ानून की सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा पर भी सवाल उठाते रहे हैं।

लेकिन ऐसा ही मामला जब इजराइल में आया तो लोग सड़कों पर उतर गए। सोमवार को वहाँ हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर जमा हो गए। कहा जा रहा है कि यह इज़राइल की न्यायपालिका के भविष्य को लेकर लड़ाई है। कई लोगों इसे इज़राइल के लोकतंत्र की आत्मा के लिए लड़ाई के रूप में मान रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यही वजह है कि देश भर के लगभग 100,000 प्रदर्शनकारियों ने यरूशलेम में संसद के बाहर सड़कों पर प्रदर्शन किया।

प्रदर्शनकारी इजराइल की प्रस्तावित न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव का विरोध करने के लिए एकत्र हुए। इस प्रस्ताव ने इजराइलियों को विभाजित किया है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा किए गए परिवर्तन, संसद में पारित कानूनों को रद्द करने की सर्वोच्च न्यायालय की क्षमता को कम कर देंगे और सरकार को न्यायाधीश बनने के लिए अधिक प्रभाव प्रदान करेंगे।

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