मोदी सरकार के परिसीमन से दक्षिण के राज्यों में संदेह क्यों हो रहा है? क्या यह परिसीमन दक्षिण के राज्यों की आवाज़ दबाने के लिए किया जा रहा है? तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने ऐसा ही आरोप लगाया है। उन्होंने तर्क दिया है कि इस तरह से परिसीमन से तमिलनाडु की आवाज़ दब जाएगी।
स्टालिन ने यह संदेह इसलिए जताया है कि इस बार लोकसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होना है और ऐसे में तमिलनाडु में सीटें कम हो जाएँगी। स्टालिन को आशंका है कि राज्य को आठ सीटों का नुक़सान हो सकता है। हालाँकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के इस दावे को खारिज कर दिया है कि अगर जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाता है तो राज्य को आठ लोकसभा सीटों का नुक़सान होगा।
इस मसले पर तमिलनाडु के सभी राजनीतिक दलों का समर्थन जुटाने के लिए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने 5 मार्च को बैठक करने की घोषणा की है। इसमें 2026 में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के केंद्र सरकार के प्रस्तावित परिसीमन पर चर्चा की जाएगी। स्टालिन ने कहा है कि यह मुद्दा दक्षिणी राज्यों पर तलवार की तरह लटक रहा है। स्टालिन बार-बार यह कह रहे हैं कि तमिलनाडु के परिवार नियोजन उपायों के कारण संसदीय सीटें कम हो सकती हैं। उन्होंने दो दिन पहले ही इस मुद्दे को उठाया था।
स्टालिन ने पिछले साल अक्टूबर महीने में परिसीमन का ज़िक्र करते हुए दक्षिण के राज्यों में लोगों के अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की थी। स्टालिन ने कहा था कि 'जब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में कमी आ रही है तो कम बच्चे पैदा करने तक सीमित क्यों रहें? हमें 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों नहीं रखना चाहिए?' उन्होंने कहा था, 'तमिल में एक पुरानी कहावत है, 'पधिनारुम पेत्रु पेरु वझवु वझगा', जिसका अर्थ है कि लोगों के पास 16 अलग-अलग प्रकार की संपत्ति होनी चाहिए।'
इससे पहले आँध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने दो से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए एक योजना शुरू करने की बात कही थी। नायडू ने कहा था, 'हम अधिक बच्चों वाले परिवारों को प्रोत्साहन देने और दंपतियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के बारे में सोच रहे हैं।'
दोनों मुख्यमंत्रियों की ऐसी टिप्पणियाँ उन रिपोर्टों के बाद आईं जिनमें कहा गया था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्गठन करने की योजना बना रही है।
यानी अब जो निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्सीमन होगा, इसके लिए जनसंख्या को काफ़ी हद तक आधार बनाया जा सकता है। जैसी चिंता अब दक्षिण के नेता जता रहे हैं, उसके अनुसार जनसंख्या कम होने का मतलब होगा कि लोकसभा निर्वाचन सीटों की संख्या अपेक्षाकृत कम हो जाएगी।
पीएम ने कांग्रेस पर क्यों हमला किया?
दक्षिण के नेताओं की यह आशंका तब है जब खुद बीजेपी दक्षिण के राज्यों को कांग्रेस की ऐसी नीति का डर दिखाती रही है। अक्टूबर 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनावों के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के 'जितनी आबादी, उतना हक' नारे पर हमला किया था और इसे परिसीमन से जोड़ दिया था। पीएम मोदी ने कहा था, 'देश अब अगले परिसीमन के बारे में बात कर रहा है। इसका मतलब यह होगा कि जहां आबादी कम है, वहां लोकसभा की सीटें कम होंगी और जहां आबादी ज़्यादा है, वहाँ सीटें बढ़ेंगी... दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, लेकिन अगर जनसंख्या के अनुपात में अधिकारों के कांग्रेस के नए विचार को लागू किया गया तो उन्हें भारी नुक़सान होगा। दक्षिण भारत को 100 लोकसभा सीटों का नुक़सान होगा।'
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के इस दावे को खारिज कर दिया है कि अगर जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाता है तो राज्य को आठ लोकसभा सीटों का नुक़सान होगा। शाह ने इस प्रक्रिया के संभावित प्रभाव पर चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि तमिलनाडु को एक भी संसदीय सीट का नुकसान नहीं होगा। विवाद को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन के बाद भी दक्षिण के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी।'
परिसीमन के लिए नियम क्या है?
परिसीमन का चुनाव क्षेत्रों से लेनादेना है इसलिए इसको चुनाव आयोग तैयार करता है। आयोग सबसे हालिया जनगणना में जनसंख्या के आधार पर सभी निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करता है। संविधान के अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना पूरी होने के बाद प्रत्येक राज्य को लोकसभा सीटों का आवंटन जनसंख्या बदलाव के आधार पर समायोजित किया जाना चाहिए। वहीं, अनुच्छेद 81 में कहा गया है कि लोकसभा में 550 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते। इसमें 530 राज्यों से और 20 केंद्र शासित प्रदेशों से। इसमें यह भी कहा गया है कि सीटों की संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात, जहाँ तक संभव हो, सभी राज्यों के लिए समान हो। इसलिए देश भर में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आदर्श रूप से समान जनसंख्या होनी चाहिए।
परिसीमन के लिए राष्ट्रपति द्वारा एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग नियुक्त किया जाता है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं। आयोग निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने या नए निर्वाचन क्षेत्र बनाने के लिए जनसंख्या में परिवर्तन की जाँच करता है। जनता की प्रतिक्रिया लेने के बाद, आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित करता है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक परिसीमन चार बार हुआ है। पहली बार 1952 में और फिर 1963, 1973 और फिर 2002 में। लेकिन मौजूदा दिक्कत यह है कि 2021 की जनगणना नहीं हो पाई है। स्वतंत्रता के बाद पहली जनगणना 1951 से हर दस साल में किया जाता रहा है। हालाँकि, 2021 में जब जनगणना निर्धारित की गई थी तो मोदी सरकार ने कोविड की वजह से इसे स्थगित कर दिया था। तब से जनगणना को लगातार स्थगित किया जा रहा है।
तो अगली जनगणना कब होगी, यह तय नहीं है। संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान, सरकार ने कहा था कि जनगणना पर काम 2024 के लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद शुरू होगा। हालाँकि, यह शुरू नहीं हुआ है, पूरी जनगणना प्रक्रिया को पूरा होने में दो साल तक का समय लग सकता है।
अब यदि परिसीमन होता है तो जनसंख्या के अनुसार सीटें उत्तर भारत के राज्यों में सीटें बढ़ेंगी, जबकि दक्षिण के राज्यों में कम होंगी।
द इंडियन एक्सप्रेस ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के जनसंख्या अनुमानों के आधार पर संभावित रूप से सीटें बढ़ने और घटने की एक रिपोर्ट दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जनसंख्या के अनुपात में सबसे ज़्यादा यूपी में 14 सीटें बढ़ सकती हैं। इसके बाद बिहार में 11 सीटें, राजस्थान में 7, मध्य प्रदेश में 5, हरियाणा व महाराष्ट्र में 2-2 सीटें बढ़ सकती हैं। जबकि दक्षिण के राज्यों में सबसे ज़्यादा तमिलनाडु में 9 सीटें कम हो सकती हैं। इसके अलावा गुजरात-केरल में 6-6 सीटें, आंध्र प्रदेश में 5 सीटें, ओडिशा व पश्चिम बंगाल में 3-3 सीटें और कर्नाटक व तेलंगाना में 2 सीटें कम हो सकती हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)