क्या फिर से 'भाषा युद्ध' का माहौल बन रहा है? कम से कम तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यही चेतावनी दी है। हिंदी थोपने के ख़िलाफ़ लगातार बोलते रहे स्टालिन ने कहा है कि यदि ज़रूरत पड़ी तो राज्य 'एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है'। जिस तरह से ताज़ा भाषा नीति का विरोध हो रहा है उसने तमिलनाडु में दशकों पहले शुरू हुए हिंदी विरोध की याद ताज़ा करा दी है।
स्टालिन की इस चेतावनी पर बीजेपी ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। स्टालिन ने क्या-क्या कहा है और इस पर तमिलनाडु में बीजेपी प्रमुख अन्नामलाई ने क्या जवाब दिया है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर स्टालिन ने अपनी चेतावनी में पहले के किस 'भाषा युद्ध' की याद दिलाई है।
तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन का इतिहास बहुत पुराना है। साल 1937 में जब मद्रास प्रान्त में इंडियन नेशनल कांग्रेस की सरकार बनी थी और सरकार के मुखिया चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की थी तब द्रविड़ आंदोलन के नेता 'पेरियार' के नेतृत्व में हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ था।
तब आंदोलन इतना बड़ा और प्रभावशाली था कि सरकार को झुकना पड़ा था। इसके बाद 50 और 60 के दशकों में भी जब कथित तौर पर हिंदी को थोपने की कोशिश की गयी तब भी जमकर आंदोलन हुआ। कई जगह हिंसा भी हुई। हिंसा में कुछ लोगों की जान भी गयी। तमिलनाडु ने हमेशा ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव का विरोध किया है।
माना जाता है कि तमिलनाडु में पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनने का कारण भी द्रविड़ आंदोलन ही था। तमिलनाडु की सभी द्रविड़ पार्टियाँ शुरू से ही हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश का विरोध करती रही हैं। पेरियार, अन्ना दुराई, एमजीआर, करुणानिधि, जयललिता जैसे सभी नेताओं ने तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य किये जाने का विरोध किया है। द्रविड़ पार्टियों का हिंदी विरोध इतना ज़्यादा है कि इन पार्टियों ने तमिलनाडु में राजमार्ग पर लगने वाले साइन बोर्ड या दिशा-निर्देश पट्टिकाओं पर हिंदी में लिखे जाने का विरोध किया है।
बहरहाल, केंद्र ने तीन-भाषा नीति की पैरवी की है और इसको लेकर तमिलनाडु की राजनीति में उबाल आया हुआ है। एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी डीएमके ने लगातार तीन-भाषा नीति का विरोध किया है।
डीएमके यह कहती रही है कि तमिलनाडु तमिल और अंग्रेजी को जारी रखेगा। इसने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर राज्य पर हिंदी थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया है।
स्टालिन सचिवालय में कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार जब स्टालिन से पूछा गया कि क्या केंद्र सरकार हिंदी थोपने के अपने कथित प्रयासों के ज़रिए 'एक और भाषा युद्ध के बीज बो रही है', तो स्टालिन ने जवाब दिया, 'हां, निश्चित रूप से। हम इसके लिए तैयार हैं।'
भाषा नीति लंबे समय से डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच विवाद का मुद्दा रही है। इस बीच, तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने स्टालिन की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए भाषा नीति के मामले में डीएमके पर डबल स्टैंडर्ड करने का आरोप लगाया। एक्स पर एक पोस्ट में अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि स्टालिन किसी भी भाषा का विरोध नहीं करने का दावा करते हैं, लेकिन तमिलनाडु में सरकारी स्कूल के छात्रों को सीबीएसई और मैट्रिकुलेशन वाले निजी स्कूलों की तर्ज पर तीसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं दिया जाता है।
अन्नामलाई ने सवाल किया, 'क्या श्री स्टालिन का मतलब यह है कि तीसरी भाषा सीखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन अगर आप इसे सीखना चाहते हैं, तो आपको अपने बच्चों को डीएमके के लोगों के सीबीएसई या मैट्रिकुलेशन स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहिए?' उन्होंने आगे दावा किया कि डीएमके के दोहरे मापदंड हैं, जिसमें अमीरों के लिए एक नियम और गरीबों के लिए दूसरा नियम है।
हिंदी थोपे जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे डीएमके कार्यकर्ताओं पर कटाक्ष करते हुए अन्नामलाई ने कहा, 'आपकी पार्टी के सदस्य, जो पेंट के डिब्बे लेकर घूम रहे हैं, अपने बयान में हिंदी और अंग्रेजी के बीच का अंतर करना भूल गए हैं।'
जब हिंदी में 'दही' लिखने पर विवाद हो गया...
तमिलनाडु में 'हिंदी थोपने' का विवाद लगातार उठता रहा है। एक साल पहले फिर से तब इस पर विवाद हो गया था जब दही के पैकेट पर हिंदी में 'दही' लिखे जाने का आदेश हुआ था। तब भारत के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण के हिंदी में लिखने के आदेश को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और दुग्ध उत्पादकों ने गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने के प्रयास के रूप में देखा था। तब स्टालिन ने इस आदेश को 'हिंदी थोपने' के रूप में इसे खारिज कर दिया और चेतावनी दी कि यह दक्षिण भारत के लोगों को अलग कर देगा। बाद में इस आदेश को वापस लेना पड़ा था।
2022 में भी हुआ था विवाद
तमिलनाडु में हिंदी को कथित तौर पर थोपने का विवाद 2022 में तब जोर शोर से उठा था जब अमित शाह ने नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कह दिया था कि सभी पूर्वोत्तर राज्य 10वीं कक्षा तक के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने पर सहमत हो गए हैं। इसके साथ ही गृह मंत्री ने यह भी कहा था कि जब अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग बात करें तो अंग्रेजी छोड़कर हिंदी में ही बात करें।
अमित शाह के बयान पर उत्तर पूर्व से तो प्रतिक्रिया हुई ही थी, तमिलनाडु बीजेपी के नेता ने भी प्रतिक्रिया दी थी। हालाँकि तब तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा था कि तमिलनाडु बीजेपी हिंदी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि 1965 में कांग्रेस ने एक क़ानून लाया कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, और 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से एक बार फिर हिंदी थोपने का प्रयास किया गया।
अन्नामलाई ने कहा था, 'इसका उपयोग करके एक 45 साल पुराना भ्रम पैदा किया गया था और बीजेपी द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति में प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदी थोपने की अनुमति नहीं दी थी और इसे एक वैकल्पिक भाषा में बदल दिया गया।'
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)