दिल्ली में आप-कांग्रेस साथ लड़ते तो क्या बीजेपी हार जाती? बीजेपी को वोट मिले 45.56 फ़ीसदी और आप को 43.57 फ़ीसदी। यानी फासला रहा सिर्फ़ दो फ़ीसदी का। कांग्रेस को वोट मिले 6.34 फ़ीसदी। गठबंधन में साथ होते तो इनका वोट फ़ीसदी बीजेपी से कहीं ज़्यादा होता। चुनाव से पहले आप और कांग्रेस के बीच बातचीत भी चली थी, लेकिन गठबंधन नहीं हो पाया। तो सवाल है कि आख़िर दोनों के बीच गठबंधन क्यों नहीं हो पाया? राहुल गांधी या अरविंद केजरीवाल की वजह से? चुनाव नतीजों के बाद दोनों दल एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो इसका सच क्या है?
दरअसल, संजय राउत ने दोनों दलों से अंदरुनी बातचीत के आधार पर जो दावा किया है, वो बेहद चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा है कि केजरीवाल की ओर से दावा किया गया है कि राहुल गांधी 'मोदी विरोधी केजरीवाल को हराना चाहते थे'। राउत ने शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में अरविंद केजरीवाल व आदित्य ठाकरे की बातचीत के आधार पर दावा किया है कि हरियाणा चुनाव से ही इसकी शुरुआत हो गई थी। तो सवाल है कि आख़िर हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी ने ऐसा कर दिया था कि इसकी टीस केजरीवाल को अब तक है और क्या इसका ही असर दिल्ली चुनाव में गठबंधन नहीं होने में दिखा?
कम से कम संजय राउत ने आदित्य ठाकरे और अरविंद केजरीवाल के बीच हुई बातचीत के आधार पर जो ज़िक्र किया है, उसका मतलब तो यही निकलता है। आदित्य ठाकरे ने कुछ दिन पहले ही अरविंद केजरीवाल से दिल्ली में मुलाक़ात की थी। राउत ने इस बातचीत को सामना के संपादकीय में लिखा है।
संजय राउत ने लिखा है कि "मुलाक़ात के दौरान आदित्य ठाकरे ने अरविंद केजरीवाल से पूछा- 'अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ होता तो बेहतर होता। केजरीवाल ने गठबंधन होने नहीं दिया, ऐसा आक्षेप है'। केजरीवाल बोले- 'नहीं, मैं पूरी तरह से कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के पक्ष में था'। 'तब क्या हो गया?'। केजरीवाल बोले-‘जब मैं जेल में था तब हरियाणा में चुनाव हुए थे। राघव चड्ढा हरियाणा का काम देख रहे थे। वे मुझसे जेल में मिलने आए थे। मैंने उनसे कहा, हमें कांग्रेस के साथ गठबंधन करना ही होगा। आप सीटों का बंटवारा तय करें'।"
संपादकीय में उन्होंने केजरीवाल के हवाले से लिखा है, "कांग्रेस ने हमसे एक सूची मांगी। हमने 14 निर्वाचन क्षेत्रों की सूची दी। राहुल गांधी ने कहा, हम ‘आप’ को छह सीटें देंगे। मैंने राघव से कहा, कोई बात नहीं, छह सीटें ले लो। हम दो कदम पीछे आ गए। राहुल ने कहा, के. सी. वेणुगोपाल से मिलें। राघव ने के. सी. वेणुगोपाल से मुलाकात की। उन्होंने कहा, 'छह सीटें संभव नहीं हैं, हम चार सीट देंगे। आप हमारे हरियाणा प्रभारी बावरिया से मिलें।' चड्ढा मुझसे जेल में मिलने आए। मैंने कहा, ठीक है- चार सीटें ले लो। चड्ढा बावरिया से मिलने गए। वे बोले, हम आपको दो ही सीटें देंगे। मैंने फिर चड्ढा को संदेश भेजा। ठीक है। दो सीटें ले लो। राहुल गांधी बॉस हैं और उनके वचन देने के बावजूद हमें छह सीटें नहीं मिलीं। चार से दो पर आ गए। उन दो सीटों के लिए चड्ढा ने आखिरकार भूपेंद्र हुड्डा से मुलाकात की। फिर उन्होंने भाजपा के गढ़ वाले इलाके में हमें दो सीटें ऑफर कीं। यह कांग्रेस की ‘गठबंधन’ धर्म की व्याख्या है। हम क्या करेंगे? ऐसा हुआ हरियाणा में। दिल्ली में भी कुछ अलग नहीं हुआ। वे भाजपा को हराना नहीं चाहते थे। वे मोदी विरोधी केजरीवाल को हराना चाहते थे।"
तो सवाल है कि क्या हरियाणा में राहुल गांधी और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं होने दिया? क्या सच में राहुल गांधी अरविंद केजरीवाल को हराना चाहते थे और वह भी बीजेपी की जीत की क़ीमत पर?
कांग्रेस ने इसका जोरदार खंडन किया है। संजय राउत ने ही कांग्रेस नेता अजय माकन का बयान भी दिया है। सामना के अनुसार माकन ने कहा है, "हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने पहल की और ‘आप’ के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बातचीत शुरू की। हम उन्हें चार सीटें दे रहे थे। उन्होंने छह सीटें मांगीं। सवाल चार या छह सीटों का नहीं था। वह मसला बातचीत से ही हल हो जाता, लेकिन इसी बीच केजरीवाल जमानत पर रिहा हो गए। वे जेल से बाहर आ गए और अगले ही दिन उन्होंने घोषणा कर दी कि हम हरियाणा की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। तब इसकी शुरुआत राहुल गांधी ने नहीं की। इसकी शुरुआत केजरीवाल ने हरियाणा चुनाव से की। यह सही नहीं था।"
रिपोर्ट के अनुसार माकन ने आगे कहा, ' लोकसभा में हम एक साथ थे, लेकिन जैसे ही लोकसभा चुनाव ख़त्म हुए, गोपाल राय ने सबसे पहले यह घोषणा की कि अब कांग्रेस से हमारा गठबंधन टूट गया है। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर हम अकेले लड़ेंगे। इसके बाद आप का हर नेता यही बोलने लगा। आप कांग्रेस को दोष क्यों देते हैं? कांग्रेस बातचीत को तैयार थी। हरियाणा में भी और दिल्ली में भी।'
कांग्रेस गठबंधन विरोधी?
कांग्रेस के इस बयान के बाद राहुल गांधी या कांग्रेस को ही गठबंधन नहीं होने के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन हरियाणा को लेकर केजरीवाल ने जो दावा किया है उससे गठबंधन को लेकर कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठता है। राउत का भी मानना है कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच बातचीत ख़त्म हो गई है और कांग्रेस नेतृत्व नई बातचीत के मूड में नहीं है।
'इंडिया' का भविष्य क्या?
वैसे, इंडिया गठबंधन को लेकर सवाल महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद उठे थे। तब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इंडिया गठबंधन को ख़त्म करने की बात कह दी थी।
उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही था तो इसे ख़त्म कर देना चाहिए क्योंकि इसके पास न कोई एजेंडा है और न ही कोई नेतृत्व। उमर के बयान के बाद इंडिया गठबंधन की घटक शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि अगर ये गठबंधन एक बार टूट गया तो दोबारा नहीं बनेगा। राउत ने आगे कहा था कि तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला, ममता बनर्जी सबका यह कहना है कि इंडिया गठबंधन का कोई वजूद नहीं रहा।
तो क्या सच में ऐसा है? क्या इंडिया गठबंधन का वजूद नहीं रहा? कम से कम अखिलेश यादव को इस पर संदेह नहीं है।
अखिलेश यादव ने अपनी एकजुटता के बारे में आत्मविश्वास से बात करते हुए कहा कि इंडिया गठबंधन बरकरार है। उन्होंने कहा था, 'इंडिया गठबंधन का गठन भाजपा के खिलाफ क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने के लिए किया गया था। समाजवादी पार्टी इस गठबंधन को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है और बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ने वाले दलों के साथ मजबूती से खड़ी है।'
इंडिया गठबंधन का मक़सद क्या?
क्या इंडिया गठबंधन का मक़सद सिर्फ़ लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का था? दरअसल, विपक्षी दल तब एकजुट होने शुरू हुए थे जब उनको एहसास हुआ कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को हराना मुश्किल है। इन दलों को यह भी लग रहा था कि बीजेपी हर क्षेत्रीय दल को ख़त्म करना चाहती है और इसी के तहत उनके नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही थी और उनको गिरफ़्तार भी किया जा रहा था।
इसी बीच विपक्षी दलों के नेता बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एकजुट हुए। इसको भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन यानी 'इंडिया' गठबंधन नाम दिया गया। इसमें कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी, जेडीयू, एनसीपी समेत कई पार्टियां शामिल थीं। इंडिया गठबंधन को बनाने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे बड़ी भूमिका रही। उन्होंने सभी क्षेत्रीय पार्टियों को इकट्ठा करने का जिम्मा उठाया और 2 जून 2023 को बिहार के पटना में इंडिया गठबंधन की नींव डाली।
देश में मोदी सरकार के लगभग एक दशक में अर्थव्यवस्था में दिक्कतें, बेरोजगारी में वृद्धि, विपक्षी नेताओं पर हमले, देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हिंदू राष्ट्रवादियों के हमले और असहमति और स्वतंत्र मीडिया के लिए सिकुड़ती जगह देखी गई है। 26 दलों के गठबंधन ने इन मुद्दों को लगातार उठाया है। गठबंधन लगातार कहता रहा है कि दांव पर भारत के बहुदलीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष नींव का भविष्य है। गठबंधन के घटक दलों के नेता लगातार कहते रहे हैं कि देश में 'लोकतंत्र को बहाल करने' के लिए संयुक्त मोर्चा बनाया गया है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)