भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव 4 जुलाई 2023 को होंगे। भारतीय ओलंपिक संघ ने सोमवार को इसकी घोषणा की है। चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश महेश मित्तल कुमार को रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया गया है।
चुनाव भारतीय कुश्ती महासंघ की विशेष आम बैठक में कराए जाने हैं जो चार जुलाई को बुलाई गई है और इसी के अनुसार चुनाव का कार्यक्रम तैयार होगा।
पहलवानों के साथ हुई मीटिंग में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने 30 जून तक चुनाव कराने का भरोसा दिया था। लेकिन तकनीकी कारणों से इस तिथि को चुनाव संभव नहीं है, इसलिए अब 4 जुलाई को चुनाव होंगे।
महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह यह चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। वे लगातार तीन बार इसमें अध्यक्ष रहे हैं। इसलिए फेडरेशन के नियमों के अनुसार वे किसी भी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
डब्ल्यएफआई की 25 मान्यता प्राप्त इकाइयां हैं
भारतीय कुश्ती महासंघ या डब्ल्यूएफआई की 25 मान्यता प्राप्त इकाइयां हैं। इसके चुनाव में प्रत्येक राज्य दो प्रतिनिधि भेज सकता है और प्रत्येक प्रतिनिधि का एक वोट होता है।
इस तरह डब्ल्यूएफआई की निर्वाचन सूची में कुल 50 वोट होंगे। इसके संविधान के अनुसार राज्य इकाइयां सिर्फ उन्हीं प्रतिनिधियों को नामित कर सकती है जो उनकी कार्यकारी समितियों का हिस्सा हैं। अब यह देखना होगा कि चुनाव में क्या बृजभूषण शरण सिंह से जुड़ा कोई पात्र व्यक्ति चुनाव के लिए नामांकन दायर करता है कि नहीं।
15 जून को दायर हो सकती है चार्जशीट
भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और पहलवानों के विवाद में पहलवान विनेश फोगाट ने कहा है कि हम 15 जून को दिल्ली पुलिस के द्वारा चार्जशीट दायर करने का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद आंदोलन को लेकर बड़ा ऐलान करेंगे। ध्यान रहे कि खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कुछ दिन पहले ही पहलवानों से बात की थी। जिसमें भरोसा दिया था कि 15 जून को केस की चार्जशीट पेश होगी।
वहीं एक इंटरव्यू में विनेश ने कहा है कि मैं पहलवान आंदोलन पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से दुखी हूं। उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग कैंप और टूर्नामेंट में बृजभूषण शरण सिंह युवा महिला पहलवानों को अकेला पाकर छूने के लिए विभिन्न तरीके का इस्तेमाल करते थे। ऐसा बार-बार होता था।वह ताकतवर आदमी हैं। वह तो हर जगह घूम रहे हैं लेकिन हमें घर बैठने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
विनेश ने कहा है कि जब हमारी बात कोई सुन ही नहीं रहा था तब मजबूर होकर हमें सार्वजनिक रूप से धरना - प्रदर्शन करना पड़ा है। ताकि देश को पता चले कि शीर्ष महिला पहलवानों के साथ कैसा व्यवहार होता है।