क्या भारतीय अर्थव्यवस्था को ख़राब करना चाहता है अमेरिका?

06:45 pm Jun 01, 2019 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

अमेज़ॉन और वॉलमार्ट को रोकने की कोशिशों और भारत के बढ़ते आर्थिक आकार से चिढ़ कर अमेरिका ने इसे ड्यूटी-फ्री निर्यात की सुविधा अब और नहीं देने का संकेत दिया है। इससे भारतीय निर्यात तो प्रभावित होगा ही, दूसरे क्षेत्रों में भी असर पड़ सकता है। लेकिन यह मामला ठीक चुनाव के पहले उठा है, यह नरेंद्र मोदी सरकार और सत्तारूढ़ दल बीजेपी दोनों के लिए ही चिंता का सबब है। 

अमेरिकी प्रशासन ने कहा है कि वह भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफरेंसेज (जीएसपी) के तहत दी जाने प्रीफरेंशियल ट्रेड ट्रीटमेंट नहीं देगा। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया के 120 विकासशील देशों को अपने यहाँ बग़ैर किसी आयात शुल्क के सामान निर्यात करने की छूट देता है, जिसमें भारत भी है। यह सूची समय-समय पर बदलती रहती है। अमेरिका अब इस सूची से भारत को बाहर कर देगा। इसका मतलब यह है कि अब भारतीय निर्यातकों को अमेरिका में आयात शुल्क चुकाना होगा। इससे भारतीय उत्पाद महँगे हो जाएँगे। ज़ाहिर है, इससे भारतीय निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा। 

इसकी वजहें हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि भारत अमेरिका को अपने यहाँ बराबरी का मौका नहीं देता है और  व्यापार या निर्यात की राह में रोड़े अटकाता है। डोनल्ड ट्रंप ने कहा, 'मैंने यह क़दम उठाने का फ़ैसला किया है क्योंकि लंबी बातचीत के बाद भी भारत ने अमेरिका को यह आश्वस्त नहीं किया है कि वह उसे अपने यहाँ व्यापार में बराबरी का मौका देगा और उसे अपने बाज़ार में दाखिल होने का मौका देगा।' 

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (युनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव) ने कार्यालय ने अपनी वेबसाइट पर जानकारी देते हुए कहा है, 'भारत ने कई व्यापारिक अड़चनें लगाई हैं, जिनसे अमेरिका के व्यापार पर बुरा असर पड़ा है। लंबी बातचीत के बाद भी भारत जीपीएस की ज़रूरतें पूरी करने में नाकाम रहा है।' 

यूए ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव की वेबसाइट पर दी गई जानकारी

क्या है ट्रंप की व्यापार नीति?

पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमेरिका की यह पहल राष्ट्रपति ट्रंप की 'जैसे को तैसा' की नीति पर चलने का उदाहरण है। दरअसल ट्रंप की नीति यह है कि हर हाल में अमेरिकी व्यापार को आगे बढ़ाएँगे और इसके तहत पारंपरिक रिश्तों या पुराने संधियों का भी ख्याल न रखा जाए। वह इस नीति के तहत चीन जैसे ताक़तर देश से भिड़ने को तैयार हैं तो मेक्सिको जैसे पड़ोसी और छोटी व कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले देशों को भी परेशान करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पुरानी संधियों से पीछे हटने का उदाहरण उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार क्षेत्र (एनएएफ़टीए यानी नाफ़्टा) संधि को नकारना है। 

ई-व्यापार नीति से ख़फ़ा अमेरिका?

ट्रंप प्रशासन इसी नीति पर चलते हुए भारत को मिलने वाली रियायत के बदले उसके बाज़ार में बेरोकटोक पहुँच चाहता है, भले ही इससे भारत की अर्थव्यवस्था को नुक़सान ही क्यों न हो। पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन भारत की ई-व्यापार नीति से ख़फ़ा है। इसके अलावा वह भारत के दवा व्यापार और मेडिकल उपकरणों के बाज़ार पर भी अपना कब्जा चाहता है और कई तरह की रियायतों की माँग की है। 

पर दिल्ली अमेरिका की माँगें मान ले तो उसका अपना दवा उद्योग जो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है, पूरी तरह चौपट हो जाएगा। भारत में लाखों की तादाद में काम कर रहे छोटे व्यापारियों और कारोबारियों पर सीधा असर पड़ेगा और उससे जुड़े करोड़ों लोग बुरी तरह प्रभावित होंगे।

इसे समझने के लिए अमेज़ॉन और वॉलमार्ट के भारत में आने की कोशिशों से समझा जा सकता है। भारत ने अमेज़ॉन को अनुमति नहीं दी और वॉलमार्ट के नियंत्रण वाले फ़्लिपकार्ट के रास्ते में रोड़ा लगाया। इससे ट्रंप प्रशासन बहुत ही नाराज़ हुआ। 

अब क्या होगा?

अमेरिका पहले भारत को प्रीफरेंशियल ट्रेड ट्रीटमेंट बंद करने की सूचना देगा। उसके बाद उसे कम से कम 60 दिन का समय देगा, यानी इस दौरान उसे ड्यूटी-फ्री व्यापार की सुविधा पहले की तरह ही मिलती रहेगी। इस दौरान भारत एक बार फिर बातचीत कर सकता है और जीएसपी में बने रहने के लिए ज़रूरी शर्तें पूरी कर सकता है या उसका आश्वासन दे सकता है। 

भारत-अमेरिका व्यापारऑफ़िस ऑफ द युनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रीप्रेजेंन्टेटिव की बेवसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2017 में भारत ने अमेरिका को 48.60 अरब डॉलर के उत्पादों का निर्यात किया और वहाँ से  25.70 अरब डॉलर के सामानों का आयात किया, यानी इस मामले में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है और क्योंकि भारत ने उसे 48.6 अरब डॉलर अधिक का सामान बेच दिया। यही बात अमेरिका के मौजूदा निज़ाम को बुरी  लगती है। 

ट्रंप प्रशासन को लगता है कि जब व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है और वह अधिक निर्यात अमेरिका को कर देता है तो उसे व्यापार में रियायत नहीं मिलनी चाहिए। यदि उसे यह रियायत चाहिए तो वह दूसरे क्षेत्रों में अमेरिका को रियायत दे जहाँ अमेरिका बेहतर व्यापार कर अधिक मुनाफ़ा कमा सकता है।

भारत अमेरिका को बहुमूल्य धातु, बेशकीमती  पत्थर, मशीनें, कपड़े और ईंधन का निर्यात मुख्य रूप से करता है। इसके अलावा भारत अमेरिका को चावल, मसाले, फल-सब्जियाँ, तेल वगैरह निर्यात करता है। दूसरी ओर वह अमेरिका से दूरसंचार और कंप्यूटर से जुड़े उपकरण का आयात करता है। 

क्या चाहता है अमेरिका?

लेकिन असली लड़ाई कहीं और है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसे ई-व्यापार और रीटेल के मामले में बेरोकटोक काम करने की छूट दे। ट्रंप प्रशासन अमेज़ॉन और वॉलमार्ट को तरजीह देना चाहता है क्योंकि ये अमेरिका की सबसे बड़ी ई-व्यापार और रीटेल व्यापार की कंपनियाँ हैं। प्रशासन को लगता है कि उसने देरी की तो चीनी कंपनी अलीबाबा तेज़ी से भारत में दाखिल हो कर यहाँ के व्यापार पर कब्जा जमा लेगा। दूसरे, इन दोनों क्षेत्रों में सालाना खरबों रुपये का कारोबार है। 

अमेरिकी ई-व्यापार और रीटेल बाज़ार मोटे तौर पर पूरा हो चुका है और उसे वहाँ और बढ़ने की बहुत गुजाइश नहीं है। भारत एशिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन सकता है क्योंकि इसके पास बहुत बड़ी जनसंख्या और काफ़ी तेज़ी से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग है, जिसके पास पैसे हैं। अमेरिकी ई-व्यापार कंपनियाँ इसका फ़ायदा उठाना चाहती हैं।

 भारत इसमें लगातार ना-नुकुर कर रहा है क्योंकि यहाँ अभी भी पारंपरिक दुकानों और बाज़ारों से काम होता है, जिनकी तादाद पूरे देश में लाखों में है और उनसे करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं। एक राजनीतिक कारण यह भी है कि चुनाव के साल मे मोदी सरकार इस तरह के किसी झमेले में नहीं पड़ना चाहती, जहाँ उसे बेमतलब के विवाद का सामना करना पड़ा। 

क्या असर पड़ेगा भारत पर?

व्यापार जगत अमेरिकी चेतावनी से चिंतित है, लेकिन लोगों का कहना है कि इससे बिल्कुल घबराहट में आने की ज़रूरत भी नहीं है। व्यापार से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इससे भारत के व्यापार पर सीमित असर ही पड़ेगा, बहुत बुरा असर नहीं होगा। वाणिज्य मंत्रालय के लोगों का कहना है कि जीएसपी का सांकेतिक महत्व ज़्यादा है, वास्तवकि कम, लिहाज़ा वास्तविक नुक़सान भी कम ही होगा। फ़डरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गनाइजेशन के अजय सहाय ने रॉयटर्स को बताया कि कपड़ा, कृषि उत्पाद, हस्त शिल्प और समुद्री उत्पाद जैसे क्षेत्रों मे काम करने वालों को दिक़्क़त होगी। 

क्या भारत पलटवार करेगा?

पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत इस पर ज़्यादा शोर मचाने के बजाय चुपचाप रास्ता निकालने की कोशिश करेगा। वह अमेरिका पर पलटवार कर बदले की कार्रवाई बिल्कुल नहीं करेगा। भारत नहीं चाहता कि वाणिज्य-व्यापार के मामले में अमेरिका से रिश्ते ख़राब हों क्योंकि अभी भी अमेरिकी लॉबी मजबूत है और भारत को दूसरे मामलों में दिक़्क़त हो सकती है। मसलन, निवेश पर असर पड़ सकता है, क्योंकि निवेश की तमाम संस्थाओं पर अमेरिका का दबदबा है, आख़िर उन संस्थाओं में सबसे अधिक पैसे भी वही देता है और उसके पास वोटिंग राइट्स भी ज़्यादा है। 

यह साफ़ है कि पहले से ही फ़िसल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बुरी ख़बर है। वाणिज्य मंत्रालय जो कहे, सच यह है कि निर्यातकों को दिक़्क़त होगी क्योंकि वे अमेरिकी सीमा शुल्क लगने के बाद कई दूसरे देशों से मुक़ाबला नहीं कर पाएँगे। भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन, फ़िलहाल यह सरकार कुछ नहीं करने जा रही है, न ही इसे करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि चुनाव के ठीक पहले मोदी सरकार को नीतिगत फ़ैसले लेने के बदले अगली सरकार पर यह मामला छोड़ देना चाहिए। वाणिज्य मंत्रालय के लोग तब तक अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत कर मामला लटकाए रख सकते हैं।