कई क्षेत्रों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता साफ़

03:16 pm Jul 05, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

बजट 2019 की एक बड़ी खूबी यह है कि सरकार ने कई सेक्टरों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता साफ़ कर दिया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए यह साफ़ कर दिया कि मीडिया, उड्डयन, बीमा और सिंगल ब्रांड रीटेल में एफ़डीआई को बढ़ावा दिया जाएगा। 

सीतारमण ने कहा कि ज़्यादा से ज़्यादा एफ़डीआई आकर्षित करने के लिए उपाय किए जाएँगे और सुधार किए जाएंगे। उन्होंने साफ़ किया कि उड्डयन, मीडिया, एनीमेशन के क्षेत्र में एफ़डीआई को  प्रोत्साहित किया जाएगा। 

सीतारमण ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 64.37 अरब डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ।

बीजेपी ने किया था विरोध

बजट में यह  स्पष्ट कर दिया गया है कि बीमा इंटरमीडियरीज़ में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी जाएगी। इसके साथ ही सिंगल ब्रांड रीटेल सेक्टर में स्थानीय स्तर पर सामान लेने के नियमों को उदार बनाया जएगा। यह कदम महत्वपूर्ण इसलिए है कि सिंगल ब्रांड रीटेल पर काफ़ी बवाल हो चुका है। इस दिशा में पहली कोशिश मनमोहन सिंह सरकार ने की थी, लेकिन उस समय विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया था। बीजेपी का यह तर्क था कि इससे स्थानीय कंपनियों और दुकानदारों को नुक़सान होगा, गाँवों घरों में काम कर रहे लाखों दुकानदार बुरी तरह प्रभावित होंगे। 

उड्डयन के क्षेत्र में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आसान बनाने का मक़सद यह है कि अधिक से अधिक एफ़डीआई आकर्षित किया जाए। इसकी मुख्य वजह यह समझी जाती है कि यह क्षेत्र काफ़ी तेजी से फैल सकता है और इसमें प्रचुर संभावना है। ऐसे में यूरोप और अमेरिका की कई कंपनियाँ यहाँ पैसे लगाने में दिलचस्पी ले सकती हैं। 

मोदी सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अपने पहले कार्यकाल के दौरान बुरी तरह नाकाम रही है। यह एफ़डीआई के लिए देश की अर्थव्यवस्था को या तो अच्छा नहीं बना पाई या लाल फीताशाही और नियम क़ानूनों के उलझन से बाहर नहीं निकाल सकी। नतीजा यह हुआ कि बीते साल न्यूनतम स्तर पर विदेशी निवेश आया। खु़द सरकार ने माना है कि सिर्फ़ 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। दूसरी बात यह ह ैकि अर्थव्यवस्था बुरी हालत में होने के कारण भी लोगों की दिलचस्पी कम हो गई है। कई विदेशी कंपनियों को लगता है कि जिस देश में खपत और माँग कम होने लगी हो, वहां निवेश क्यों किया जाए। वे इंतजार कर रही हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार हो तो वे यहाँ पैसे लगाएं।