कोई मुक़ाबला नहीं है 12,000 और 72,000 की योजनाओं में  

01:05 pm Apr 02, 2019 | संजय कुमार सिंह - सत्य हिन्दी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के प्रभाव में जनेऊ दिखाने, गोत्र बताने और मंदिर-मंदिर करने जैसे ग़ैर राजनीतिक जवाब देने के बाद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने अब एक ठोस राजनीतिक चाल चली है। हालांकि, इस योजना का नाम भी नरेन्द्र मोदी की ख़ास शैली से प्रभावित है, पर उनके नामों से बेहतर बन गया है। 

न्यूनतम ज़रूरी आय तय

इस योजना की सबसे ख़ास बात यह है कि इसके ज़रिए यह माना गया है कि पांच लोगों के परिवार के लिए देश में 6,000 रुपए महीने की न्यूनतम आय आवश्यक है। भले ही यह पर्याप्त न हो, पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के नाम पर हरेक तिमाही 2,000 रुपए नक़द के मुक़ाबले बहुत बेहतर है। कहां 6,000 रुपए साल की सम्मान निधि और कहां 6,000 रुपए महीने का न्याय - कोई मुक़ाबला ही नहीं है। इस तरह साफ़ है कि चुनावी लाभ के लिए ही सही, यह योजना और इसका नाम भी बेहतर है। यही नहीं, किसान सम्मान निधि सिर्फ किसानों के लिए है और न्याय सबके लिए। 

कई अन्य सरकारी योजनाओं की ही तरह राहुल गांधी ने भी अपनी इस योजना को दुनिया भर में बेजोड़ बताया और कहा कि सरकार (अगर सत्ता में आई तो) सुनिश्चित करेगी कि हरेक परिवार की आय 12,000 रुपए महीने हो। उन्होंने इस आधार को ख़ुद ही महत्वपूर्ण भी बताया। 12,000 रुपए महीना और अधिकतम 72,000 रुपए प्रति साल प्रति परिवार का यह आंकड़ा बहुतों को नहीं समझ में आया। हालांकि, इनमें ऐसे लोग ज़्यादा थे जो समझना नहीं चाहते थे या आदतन 'राहुल पप्पू है' के प्रचार से प्रभावित थे। वे यह मानकर चल रहे थे कि राहुल को इतना भर हिसाब नहीं आता है और वह देश भर के लिए योजना पेश कर रहे हैं। 3.6 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष के खर्च की बात कर रहे हैं। 

योजना यह है कि सरकार प्रत्येक परिवार की मासिक आय 12,000 रुपए होना सुनिश्चित करेगी। अगर कोई परिवार इससे कम कमाता है तो बाकी की राशि की भरपाई वह करेगी, पर वह राशि 72,000 रुपए प्रति वर्ष से ज़्यादा नहीं होगी।

ठोस, व्यवहारिक योजना

इस तरह साफ़ है कि सरकार समझती है कि 12,000 रुपए महीने की जरूरत है, पर न्यूनतम 6,000 रुपए महीने तो होना ही चाहिए। इसलिए वह कुछ नहीं कमाने वालों को 6,000 रुपए महीना और अधिकतम 72,000 रुपए देगी तथा 6,000 रुपए या उससे ज्यादा कमाने वालों को उतनी ही राशि देगी जिससे परिवार की मासिक आय 12,000 हो जाए। यह एक अच्छी, व्यावहारिक और ठोस योजना है, जो ज़रूरी भी है और चुनाव पूर्व तथा चुनावी वर्ष के अंतरिम बजट में की गई लोकलुभावन घोषणाओं के मुक़ाबले व्यावहारिक भी है।

पैसे की कमी नहीं है, देश में आपसे हर रोज़ चोरी की जा रही है। आपके पास कितना क्या है, सब डिटेल है। पीएम किसानों को साढ़े तीन रुपए रोज़ाना देकर गुमराह कर रहे हैं। यहीं निजी कंपनियों को लाखों करोड़ बाँटे जा रहे हैं।


राहुल गाँधी, अध्यक्ष, कांग्रेस

राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों को साढ़े तीन रुपए दिए, इस पर संसद में ताली बजी। हवाई-जहाज में उड़ने वाले अमीरों को लाखों करोड़ रुपए देते हैं। हम ग़रीबों के ख़ाते में पैसा डालेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि इस योजना से 5 करोड़ परिवार और 25 करोड़ लोगों को फ़ायदा मिलेगा।

राजनीतिक विरोध

इस योजना पर भारतीय जनता पार्टी की प्रतिक्रिया बगैर तथ्यों के सिर्फ राजनीतिक है। यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी में रिवाज रहा है कि संबंधित मंत्री नहीं बोलता। आर्थिक मामलों पर वित्त मंत्री बोलें ऐसा कम ही हुआ है। लेकिन इस बार वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे धोखा (अंग्रेजी में 'ब्लफ') कहा है। कोई आंकड़ा नहीं दिया है, इसमें कोई तथ्यात्मक ग़लती नहीं बताई है। इतना भर कहा है कि कांग्रेस का इतिहास ही ऐसा रहा है और वह ग़रीबी दूर करने के नाम पर लोगों को ठगती रही है। इससे पता चलता है कि योजना में निन्दा करने लायक कुछ ख़ास नहीं है और वह इसलिए भी कि जेटली ने ही कहा है, 'मोदी सरकार दे रही है सालाना एक लाख से ज्यादा।' साफ़ है कि 72,000 रुपए दिए जा सकते हैं और यह राहुल गांधी की योजना में है कि जिसकी (परिवार की) आय 6,000 रुपए महीने से कम है, उसे अधिकतम 6,000 रुपए महीना और 12,000 रुपए महीने से जितना कम है उतनी राशि अधिकतम 72,000 तक दी जाएगी।        

यह ग़रीबों को न्यूनतम आय की गारंटी का टॉप अप देगी। यह क़र्ज़माफ़ी से बेहतर है। हालांकि इसमें दो समस्याएं हैं। पहला, गरीबों का आँकड़ा उपलब्ध नहीं है। दूसरा, ग्रामीण औऱ शहरी क्षेत्रों में इसका निर्धारण कैसे होगा कि किसकी आय कितनी है।


राधिका राय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फ़ाइनेंस एंड पॉलिसी की सदस्य

मेरा मानना है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो ये दोनों काम मुश्किल नहीं हैं। कम से कम किसान सम्मान राशि वाले आंकड़े का उपयोग करके योजना की शुरुआत तो हो ही सकती है। उसके बाद राहुल गांधी ने भी कहा कि इसे चरणों में लागू किया जाएगा। राहुल गांधी ने इसे ग़रीबी पर अंतिम हमला कहा है और इससे इस मामले में उनकी इच्छाशक्ति का पता चलता है।

पैसे की व्यवस्था

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि इस योजना पर खर्च होने वाला 3.60 लाख करोड़ जीडीपी का 1.8 फ़ीसद है। अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो अर्थव्यवस्था से इतना पैसा निकाला जा सकता है। उनका कहना था कि नोटबंदी और जीएसटी का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है और ग़रीबी बढ़ी है। 'न्याय' योजना के लिए पैसा कहां से आएगा, के जवाब में उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले यह रिपोर्ट आई थी कि देश के सबसे अमीर नौ लोगों के पास देश की संपदा का 55 फ़ीसद है। 

देश में आर्थिक असमानता लगातार बढ़ी है। सरकार चाहे तो वेल्थ टैक्स लगाकर इस योजना के लिए धन जुटा सकती है। टैक्स में छूट हमारी जीडीपी का छह फीसदी यानी 5-6 लाख करोड़ रुपए है। इसे कुछ कम करके एक लाख करोड़ रुपए जुटाए जा सकते हैं।

इस योजना की व्यवहारिकता के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में राहुल गांधी ने कहा, 'हम लोगों न बहुत सावधानी से इसकी जांच की है, बार-बार परखा है और पूरा रोडमैप तैयार कर लिया है। हमलोगों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून लागू किया है और यह ग़रीबी दूर करने के हमारे कार्यक्रम का दूसरा तथा अंतिम चरण होने वाला है।' कहने की ज़रूरत नहीं है कि 'न्याय' सरकार का नया खर्च नहीं हो सकता है बल्कि इसके लिए धन की व्यवस्था करनी होगी। देश का जीडीपी 2019-20 में 210 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है और न्याय का 3.60 लाख करोड़ का पूरा बजट इसका सिर्फ 1.7 प्रतिशत है। और भारत में सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 17 प्रतिशत टैक्स के रूप में वसूलता है जो बढ़ सकता है। यह योजना उन लोगों पर लागू नहीं होगी, जिन्हें दूसरी योजना का लाभ मिल रहा है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि दूसरी योजना के लाभ के रूप में मिल रही राशि इसमें से घट जाएगी। 

अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने इस योजना को बकवास और बुनियादी तौर पर दोषपूर्ण कहा है। दूसरी ओर पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने एक ट्वीट में इसे लागू करने योग्य बताया है और कहा है कि हम वित्तीय अनुशासन का पालन करेंगे। भाजपा की ओर से वित्त मंत्री मंत्री अरुण जेटली ने इसे 'चुनावी धोखा' कहा है।