प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ह्यूस्टन के 'हाऊडी मोडी' कार्यक्रम के पहले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से मुलाक़ात करेंग, जिसमें उद्योग-व्यापार पर प्रमुखता से बातचीत होगी। लेकिन किसी समझौते की घोषणा होने की संभावना नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि दोनों दे्शों के बीच व्यापार पर कई मुद्दों पर जबरदस्त विरोध हैं और पहले से चल रहे गतिरोध के तुरन्त दूर होने की संभावना फ़िलहाल नहीं है।
'अमेरिका फ़र्स्ट'
डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान 'अमेरिका फ़र्स्ट' का नारा दिया था और कहा था कि विदेशी कंपनियों की वजह से उनके देश को नुक़सान होता है। उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद इसे और बढ़ाया, इसमें राष्ट्रवाद का छौंका लगाया और ज़ोर देकर कहा कि कई देशों के साथ दोतरफ़ा व्यापार में अमेरिका को घाटा होता है, इसे दुरुस्त किया जाएगा और इस पूरे मामले को अमेरिका के पक्ष में लाया जाएगा, जो देश सहयोग नहीं करेंगे, उनके साथ कड़ाई की जाएगी। उन्होंने चीन को अपने निशाने पर लिया और अब दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है, जिसमें दोनों को ही नुक़सान हो रहा है, लेकिन कोई झुकने को तैयार नहीं है।ट्रंप ने 'अमेरिका फ़र्स्ट' के तहत भारत को यह कह कर निशाने पर लिया कि दिल्ली की वजह से उसे लगातार नुक़सान हो रहा है। वाशिंगटन का कहना है कि भारत अब उसके साथ व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा में है, उसे लगातार टक्कर दे रहा है, वह अब विकासशील देश से आगे निकल चुका है, उसकी अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत हो चुकी है।
ट्रंप प्रशासन की नीति यह है कि भारत को अमेरिका से आर्थिक मदद तो नहीं ही मिलनी चाहिए, उसे किसी तरह की रियायत भी नहीं दी जानी चाहिए। वह अमेरिका से रियायतें लेकर अमेरिका को ही चुनौती देता है।
भारत जीएसपी से बाहर
ट्रंप प्रशासन ने इस नीति के तहत भारत को जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफ़रेंसेज़ की सूची से बाहर कर दिया। इस सूची में विकासशील देशों को शामिल किया गया था, उनके आयात पर शुल्क नहीं था या बहुत ही कम था। उन्हें अधिक उत्पादों के निर्यात की छूट दी गई थी। वाशिंगटन ने यह सुविधा वापस ले ली। इससे भारतीय आयात पर बढ़ा हुआ आयात शुल्क लग गया, जिससे इसके उत्पाद प्रतिस्पर्द्धा से बाहर होने लगे।भारत ने पलटवार करते हुए कुछ अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया। इससे दोनों देशों के बीच तनातनी की नौबत आ गई और तनाव बढ़ा। दोनों देशों के व्यापार प्रतिनिधियों ने तनाव कम करने की कोशिश की। जी-7 की बैठक में भाग लेने फ्रांस गए मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाक़ात की और दोनों तनाव कम करने पर राज़ी हुए।
कोई रियायत नहींं
मोदी अपने अमेरिका दौरे में ट्रंप से एक बार फिर बात करेंगे। इस बातचीत की तैयारियाँ हो चुकी हैं, दोनों देशों के व्यापार से जुड़े लोगों ने अपनी-अपनी बातें रखी हैं। पर किसी विषय पर अंतिम सहमति नहीं बनी है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन अभी भी भारत को जीपीएस बहाल करने पर राज़ी नहीं है। अमेरिका के 44 सांसदों ने एक ख़त लिख कर ट्रंप से कहा है कि भारत को जीपीएस के तहत फिर लाया जाए। इस चिट्ठी पर दस्तख़त करने वालों में ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन के सांसद भी हैं। ज़ाहिर है, ट्रंप पर दबाव बढ़ा है कि वह भारत को जीपीएस की सुविधा दें।
डोनल्ड ट्रंप ने व्यापार को जोड़ कर जो छद्म राष्ट्रवाद खड़ा किया है, उसके तहत उन्हें भारत समेत किसी देश को किसी तरह की मदद नहीं ही करनी चाहिए, जो उसे चुनौती देता हो। कुछ महीनों बाद ही राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया के शुरू में होने वाली प्राइमरी होगी। ऐसे में वह इस राष्ट्रवाद को किसी सूरत में ढीला नहीं होने देंगे।
ह्यूस्टन शहर में होने वाले हाऊडी मोडी कार्यक्रम मे सैकड़ों उद्योगपतियों के भाग लेने की संभावना है। एक कोशिश यह हो सकती है कि उन उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित किया जाए। लेकिन इसमें दिक़्क़त यह है कि भारत मंदी के दौर से गुजर रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिर रही है, तमाम इन्डीकेटर यह बता रहे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह मंदी जिस किस्म की है, उसके तहत भारत के वहाँ से तुरन्त निकलने की उम्मीद भी नहीं है। ऐसे में यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि अमेरिकी उद्योगपति भारत की ओर लपकेंगे।
इसे इससे समझा जा सकता है कि जून- अगस्त तिमाही में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 4.50 अरब डॉलर भारतीय पूंजी बाज़ार से निकाल लिए। इनमें से ज़्यादातर अमेरिकी कंपनियाँ हैं। ये वही कंपनियाँ हैं, जिन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 45 अरब डॉलर का निवेश किया था। ज़ाहिर है, उनका मोदी से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। वे इस स्थिति में भारत में निवेश करेंगे, यह उम्मीद करना ज़्यादती होगी।
मोदी की इस यात्रा से ट्रंप को राजनीतिक फ़ायदा हो सकता है, वह भारतीय मूल के अमेरिकियों के बीच संदेश दे सकते हैं कि वे उनके साथ हैं। अमेरिका में बसे करोड़ों भारतीय ट्रंप के साथ जुड़ें, उनके प्रचार टीम में शामिल हो जाएँ या उनके लिए करोड़ रुपये का चंदा एकत्रित कर लें, यह भी मुमकिन है। पर यह मुमकिन नहीं लगता कि उस छोटे से वोटर समुदाय के लिए ट्रंप अमेरिका फ़र्स्ट की नीति छोड़ दें, जिसके बल पर वह अपने पूरे प्रचार का खाका तैयार कर सकते हैं। इसलिए मोदी-ट्रंप मुलाक़ात पर नज़र रखने वाले लोग भी उससे बहुत उम्मीद नही कर रहे हैं।