आर्थिक संकट बरक़रार, आईएमएफ़ ने की अनुमानित जीडीपी दर में कटौती

05:09 pm Oct 16, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस दिन यह ज़ोर देकर कहा कि अर्थव्यवस्था बिल्कुल ठीक है और सरकार की नीतियों और फ़ैसलों से समाज के बड़े तबके को फ़ायदा मिला है, उसके अगले ही दिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कटौती कर दी है।आईएमएफ़ ने 2019 के अनुमानित जीडीपी में 1.2 प्रतिशत अंक की कटौती कर इसे 6.1 प्रतिशत कर दिया है। कोष ने इसके अगले साल यानी 2020 के लिए इससे ज़्यादा यानी 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। 

आईएमएफ़ ने अपने ताजा वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में यह अनुमान लगाया है। इसके पहले यानी 2018 में भारत का सकल घरेल उत्पाद 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा है कि ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के ख़राब कामकाज और बैंकों से कम कर्ज देने की वजह से ऐसा हुआ है। बैंक ने उपभोक्ता और लघु व मझोले उद्यम के क्षेत्रों को पहले से कम क़र्ज़ दिए हैं। 

हम यह मान कर चलते हैं कि भारत अर्थ जगत में मौजूद दिक्क़तों को दूर करने में कामयाब होगा। यदि ऐसा हुआ तो भारत का जीडीपी 2020 में 7 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है।


गीता गोपीनाथ, मुख्य अर्थशास्त्री, आईएमएफ़

इसके साथ ही आईएमएफ़ ने भारत के बढ़ते वित्तीय घाटे पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत की राजस्व उगाही का अनुमान उत्साहवर्द्धक है, पर यह साफ़ नहीं है कि वह वित्तीय घाटे को कैसे रोकेगा। 

मुद्रा कोष के शोध विभाग की उप-निदेशक जियान मारिया मिलेसी फ़ेरेती ने भारत की तारीफ करते हुए कहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था के देखते हुए भारत की स्थिति मजबूत है। उन्होंने कहा : 

बहुत बड़ी जनसंख्या को देखते हुए भारत के लिए 6 प्रतिशत की वृद्धि दर बहुत ही अहम और ध्यान देने लायक है। हमारा अनुमान है कि अगले साल वृद्धि दर और ज़्यादा होगी, कॉरपोरेट जगत में करों में कटौती का भी फ़ायदा मिलेगा।


जियान मारिया मिलेसी फ़ेरेती, आईएमएफ़ के शोध विभाग की उप-निदेशक

विश्व बैंक ने क्या कहा था?

इसके पहले विश्व बैंक ने कहा था कि 2019 में भारत की विकास दर 6% रह सकती है। पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में भारत की विकास दर 6.9% थी। विश्व बैंक ने यह भी कहा था कि भारत 2021 में 6.9% और 2022 में 7.2% की विकास दर हासिल कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक़, मैन्युफ़ैक्चरिंग और निर्माण गतिविधियों के कारण औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर बढ़कर 6.9 प्रतिशत हो गयी, जबकि कृषि और सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर क्रमशः 2.9 और 7.5 प्रतिशत रही। 

मूडीज़ का कैसा है मू़ड?

इसके पहले पिछले हफ़्ते अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ ने साल 2019-2020 के लिए भारत के सकल घरेल उत्पाद की अनुमानित वृद्धि दर घटा कर 5.8 प्रतिशत कर दी थी, पहले यह 6.2 प्रतिशत थी। इसकी वजहें निवेश और माँग में कमी, ग्रामीण इलाक़ों में मंदी और रोज़गार के मौके बनाने में नाकामी हैं। 

मूडीज़ ने यह भी कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें सुधार हो सकता है और वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत तक पहुँच सकती है। मूडीज ने साफ़ शब्दों में कहा था कि 8 प्रतिशत वृद्धि दर की संभावना बहुत ही कम है। मूडीज़ का कहना है कि जीडीपी गिरने की कई वजहें हैं, लेकिन ज़्यादातर वजहें घरेलू हैं। ये कारण लंबे समय तक बने रहेंगे। 

बीते हफ़्ते रिज़र्व बैंक ने भी कहा था कि जीडीपी में वृद्धि पहले के अनुमान से कम होगी। आरबीआई ने इसे 6.9 प्रतिशत से कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया था।

इसके साथ ही उसने उस ब्याज दर को कम कर दिया, जिस पर वह वाणिज्यिक बैंकों को पैसे देता है। इसका अर्थ यह है कि लोगों को जिस दर पर ब्याज चुकाना होता है, वह भी कम होगी। इसका मतलब यह है कि आपका ईएमआई अब कम हो जाएगा। 

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कटौती की घोषणा महत्वपूर्ण इसलिए है कि सरकार इस बात से लगातार इनकार करती रही है कि देश की अर्थव्यवस्था धीमी हो चुकी है। सरकार यह दावा करती रही है कि अर्थव्यवस्था बिल्कुल दुरुस्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाने वालों को 'प्रोफ़ेशलन पेसीमिस्ट' क़रार दिया है।  

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर ने 'द हिन्दू' में एक लेख लिख कर सरकार की आर्थिक नीतियों की ज़म कर आलोचना करते हुए कहा कि दरअसल बीजेपी की कोई अर्थनीति है ही नहीं। उन्होंने बीजेपी को सलाह दे डाली कि वह मनमोहन सिंह को अपनी अर्थनीति का रोल मॉडल बना ले और उनकी नीतियों को लागू कर ले। निर्मला सीतारमण ने इस पर पलटवार करते हुए कहा था कि सिर्फ़ उज्ज्वला योजना से ही 8 लाख महिलाओं को फ़ायदा हुआ है। उन्होंने इसके अलावा और कई तर्क दिए। लेकिन सवाल यह है कि यदि सबकुछ ठीक ही है तो आईएमएफ़, विश्व बैंक, मूडीज़ और ख़ुद रिज़र्व बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित क्यों है?