गुरुवार को संसद में पेश आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को 2025 तक सालाना 8 फ़ीसदी जीडीपी वृद्धि दर बनाए रखना होगा। सरकार की इन बातों को सही भी मान लें तो एक सवाल खड़ा होता है की जीडीपी दर बढ़ेगी कैसे सरकार ने जो आर्थिक सर्वे पेश किया है उसमें रोज़गार पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया है।
मोदी सरकार ने 2014 में हर साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार देने की बात कह कर चुनाव जीता था। जब 2019 के चुनाव आये तो एनएसओ के आँकड़ों तक पर पहरा बिठा दिया गया ताकि रोज़गार के सही आँकड़ें बाहर नहीं आ सकें। यदि सरकार कहती है कि जीडीपी वृद्धि दर बढ़ेगी तो उसे यह भी कहना पड़ेगा कि रोज़गार बढेंगें। हालाँकि सरकार ने सर्वे में वह कहा भी है, लेकिन रोज़गार कैसे देंगे, इस पर वह बचाव मुद्रा में नज़र आती है। ना तो कोई आंकड़ा पेश किया और ना ही यह बताया गया है की देश से युवाओं को नौकरी कैसे और कितनी देंगे।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का सबसे अहम घटक नौकरी या रोज़गार होता है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2019 में निर्मला सीतारमण ने रोज़गार को लेकर कोई ठोस आँकड़ा पेश नहीं किया है।
‘मुद्रा’ कर्ज़ योजना
सर्वेक्षण में ‘मुद्रा’ कर्ज़ योजना को आगे बढ़ाने, उसके लिए बजट में पैसे आवंटित करने की बात कही गयी है। यानी, सरकार यह संकेत दे रही है की रोज़गार के लिए हमारी तरफ मत देखिये, मुद्रा योजना के तहत कर्ज़ लें और अपना धंधा-पानी ख़ुद शुरू करने का प्रयास करें। यानी सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में साफ़ कर दिया है कि वह सरकारी नौकरियाँ देने में सक्षम नहीं है। अब मुद्रा योजना के तहत किस तरह का कर्ज़ दिया जाता है और उसमें से कितने लोग स्वरोज़गार हासिल करने में सफल हो पाएँ हैं, यह तो इस योजना के डिफॉल्टर्स की संख्या से अंदाजा लगाया जा सकता है।निवेश
इसके अलावा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का जो दूसरा महत्वपूर्ण घटक होता है, वह है निवेश। सरकार ने यह कहा है की वह निवेश के जरिए नौकरियाँ बढ़ायेगी। देश में नई-नई कंपनियाँ आएँगी और नौकरियाँ बढेंगी। लेकिन यह बात तो पिछले 5 साल से हर बजट में सरकार कहती आयी है। पर बीते 5 सालों में कितने लोगों को नौकरियाँ मिली हैं, इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है। साथ ही एनएसएसओ की रिपोर्ट रोज़गार के मामले में सरकार की विफलता को साफ़ बयान करती है।हमारी सरकार रोज़गार को लेकर कितनी गंभीर है, यह एअर इंडिया, बीएसएनएल और एमटीएनएल के मामलों को देखकर साफ़ पता चलता है। सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वह अब एअर इंडिया का बोझ नहीं उठा सकती है। ऐसे में वो अपना 76 फ़ीसदी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को दे देगी। इस बयान के बाद एअर इंडिया में काम कर रहे हजारों कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। एअर इंडिया में 20 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। यही हाल दूरसंचार की सरकारी कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल का है। दोनों ही कम्पनियाँ भारी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही हैं। दोनों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है। सरकार अब अपने कर्मचारियों को अच्छे पैकेज के साथ वीआरएस देने की बात कर रही है ताकि सरकारी कर्मचारियों की संख्या में कमी की जा सके। आपको बता दें कि दोनों टेलीकॉम कंपनियों को मिलाकर दो लाख से ज़्यादा सरकारी कर्मचारी काम कर रहे हैं। रोज़गार संकट की कहानी यहीं नहीं थम रही है।
मोदी 2.0 सरकार ने देश की 19 सरकारी कंपनियों को बंद करने की भी घोषणा कर दी है। घाटे के नाम पर बंद की जाने वाली इन कंपनियों में लाखों कर्मचारी काम करते हैं।
ऐसे में उनकी नौकरी पर संकट आ खड़ा हुआ है। ये पेट्रोलियम, पर्यावरण, रेल, रसायन, कपड़ा और वाणिज्य मंत्रालयों के तहत चलने वाली कंपनियाँ हैं। मतलब साफ़ है कि देश की सरकार सरकारी नौकरियों को खत्म करने का मूड बना चुकी है। ताकि उससे देश की जनता रोज़गार से संबंधित सवाल ना पूछ सके। देश में रोज़गार बढ़ेगा तो लोगों की प्रति व्यक्ति आय में इजाफ़ा होगा। देश के लोगों में खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी और इससे देश में उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन बढने से अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में आएगी। लेकिन सरकार 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थ व्यवस्था का ख़्वाब तो दिखा रही रोज़गार सृजन कैसे होगा, यह नहीं बता रही है।