नरेंद्र मोदी ने बढ़ाया चीन से आर्थिक सम्बन्ध

07:15 pm Mar 14, 2019 | - सत्य हिन्दी

यह नरेंद्र मोदी ही थे, जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप मे चीन से आर्थिक रिश्ते मजबूत करने की ज़ोरदार वकालत की थी, कम्युनिस्ट चीन का दौरा कर वहाँ की सरकारी कंपनियों को न्योता था और उनके मनमाफ़िक वातावरण बनाने के लिए नियम-क़ानूनों में बदलाव किया था। चीनी कंपनियों ने गुजरात में अरबो रुपयों का निवेश किया था और हज़ारो लोगों को रोज़गार मिले थे। लेकिन अब मोदी की भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी साइबर सेना चीन को निशाने पर ले रही है, उसके उत्पादों का बॉयकॉट करने की अपील कर रही है और उससे आर्थिक रिश्ते तोड़ने की बात कर रही है। 

अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में अड़चन डालने की वजह से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की साइबर सेना चीन पर टूट पड़ी है। उससे जुड़े लोगों का कहना है कि बीजिंग के साथ किसी तरह का आार्थिक रिश्ता न रखा जाए। भारत-चीन आर्थिक सहयोग इतना आगे बढ़ चुका है और दोनों देश एक-दूसरे पर इस तरह निर्भर हैं किआर्थिक रिश्ते तोड़ने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 

बीजेपी की साइबर सेना भले ही चीनी उत्पादों का विरोध कर रही हो, पर सच यह है कि नरेंद्र मोदी दो बार चीन की व्यापारिक यात्रा पर गए थे, चीनी कंपनियों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की थी। मोदी ने सिर्फ़ चीन को ध्यान में रख कर विशेष निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र बनवाए थे।

मोदी के चीन के साथ रिश्ते को इस तरह समझ सकते हैं कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आने पर सबसे पहले गुजरात ही गए थे, जहाँ साबरमती के तट पर मोदी के साथ उनकी तसवीरें खूब चर्चित हुई थीं।

जटिल आार्थिक रिश्ता

भारत-चीन जटिल आर्थिक रिश्ते को समझने के लिए पहले दोतरफा व्यापार पर नज़र डालते हैं। भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है और साल 2017 में डोकलाम विवाद के बावजूद दोनों देशों के बीच 88.44 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। साल 2018 में यह 14 प्रतिशत बढ़ा और 99 अरब डॉलर के पास पहुँच गया। चीन ने भारत को 76.4 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत चीन को सिर्फ़ 13.4 अरब डालर का ही निर्यात कर सका। यह साफ़ है कि भारत चीनी उत्पादों का बड़ा बाज़ार बन चुका है, बीजिंग भारत की अनदेखी नहीं कर सकता, क्योंकि उसका हित सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। 

चीनी निवेश

लेकिन यह इस जटिल आर्थिक नीति का एक पहलू है। दूसरा पहलू निवेश का है जो पूरी तरह भारत के पक्ष में है। चीनी अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से पाँच गुनी बड़ी है, वह इतना आगे बढ़ चुकी है कि अब अपने देश में उसके लिए ज़्यादा संभावनाएँ नहीं बची हैं, ज़रूरत से ज़्यादा उसकी क्षमता बढ़ चुकी है। उसे बाहर निकलना है, भारत पर उसकी नज़र है और वह यहाँ निर्माण, मोटर पार्ट्स, बिजली उपकरण, बिजली से चलने वाली गाड़ी, दूरसंचार उपकरण, खुदरा व्यापार, ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में अरबों डॉलर निवेश करने को तैयार है।

प्रतिष्ठित वाणिज्य पत्रिका फ़ोर्ब्स का कहना है कि चीन ख़ुद को भारत में दस सबसे बड़े निवेशकों में एक के रूप में स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है। वह अब तक 8 अरब डालर का निवेश कर चुका है और अगले पाँच साल में 20 अरब डॉलर का निवेश करना चाहता है।

ई-कॉमर्स, स्टार्ट अप में चीनी दिलचस्पी

ई-कॉमर्स के उदाहरण से चीनी दिलचस्पी को समझने में सहूलियत होगी। चीनी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा ने साल 2015 में स्नैपडील में 50 करोड़ डॉलर और पेटीएम में 70 करोड़ डॉलर का निवेश किया। टेनसेन्ट ने मैसेजिंग ऐप हाइक में 15 करोड़ डॉलर का निवेश किया। चीन की कई कंपनियों के एक समूह ने मीडिया नेट में 90 करोड़ डॉलर का निवेश किया। अलीबाबा ने साल 2017 में 2 अरब डालर का निवेश किया, इनमें पेटीएम, ज़ोमैटो, बिग बास्केट और फ़र्स्टक्राइ प्रमुख हैं। टेनसेन्ट ने इस साल ओला, फ़्लिपकार्ट और प्रैक्टो में 1 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया। चीन की दूरसंचार कंपनियों शियोमी, ह्वाबे और ओप्पो ने भारत में उत्पादन केंद्र खोल रखे हैं।

इंडियास्पेंड के आँकड़ों के मुताबिक़, सिर्फ़ मैन्युफ़्कचरिंग क्षेत्र में 2017-18 में चीन ने भारत में लगभग 4 अरब डॉलर का निवेश किया। ये निवेश अक्षय ऊर्जा, मोटर पार्ट्स, स्टील, दवा, उपभोक्ता वस्तु, रियल इस्टेट और इलेक्ट्रानिक्स उद्योग में हुए हैं।

मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि भारत का ई-कॉमर्स व्यापार 13 गुना बढ़ेगा और साल 2026 तक 200 अरब डॉलर पर पहुँच जाएगा। इसी तरह डिजिटल भुगतान व्यापार तेज़ी से बढ़ेगा और साल 2027 तक 37 प्रतिशत भुगतान डिजिटल होगा।

चीन ई-कॉमर्स, डिजिटल पेमेंट, दवा, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक, बिजली, उपभोक्ता वस्तु जैसे क्षेत्रों में भारत में  निवेश कर इसे अपने लिए उत्पादन केंद्र यानी मैन्युुफ़ैक्चरिंग हब के रूप में विकसित करना चाहता है। सस्ता श्रम, अंग्रेज़ी की जानकारी, क़ानून व्यवस्था और साफ़ सुुथरी प्रणाली की वजह से चीनी कंपनियाँ भारत में माल तैयार कर यूरोप के बाज़ारों में बेचना चाहती हैं। इसके अलावा भारत का अपना बहुत बड़ा बाज़ार और तेज़ी से फैलता मध्यवर्ग तो है ही, जिसके पास क्रय शक्ति है। चीन यह भी चाहता है कि सूचना प्रौद्योगिकी, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग और नॉलेज प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग में भारत उसकी मदद करे और चीन में सस्ती सेवाएँ दे। इससे दोनो देशो के बीच व्यापारिक-आर्थिक रिश्तों के और मजबूत होने के आसार हैं।