पूर्व वित्त मंत्री और लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी के महत्वपूर्ण नेता रहे यशवंत सिन्हा का मानना है कि सरकार को कोरोना से लड़ाई में तुरन्त सेना को उतार देना चाहिए। सेना की मदद से प्रवासी मजदूरों को 24 घंटे के अंदर उनके घर पहुँचाया जा सकता है। इसी तरह उन्होंने यह सुझाव भी दे दिया कि सरकार को ग़रीबों की जेब में पैसे डालने चाहिए और इसके लिए करेंसी नोट छापने चाहिए।
सत्य हिन्दी के आशुतोष और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी से एक ख़ास बातचीत में यशवंत सिन्हा ने ज़ोर देकर कहा कि लॉकडाउन से लोगों को फौरी मदद की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि लाखों भूखे-प्यासे प्रवासी मज़दूर अपने गृह प्रदेश जाने की जद्दोजहद में सड़क पर पैदल चल रहे हैं, पुलिस उन्हें डंडों से पीटती है और जगह-जगह से भगाती है। सरकार चाहे जो दावे करे, पर किसी जगह ऐसा नहीं दिखा है कि सरकार ने घर जा रहे इन मज़दूरों के लिए सड़क किनारे खाने-पीने का इंतजाम किया हो।
'सेना की मदद ले सरकार'
यशवंत सिन्हा ने कहा कि सेना, अर्द्धसैनिक बलों और नागरिक प्रशासन की मदद से इन मज़दूरों को बसों-ट्रकों में भर कर 24 घंटे के अंदर उनके घर भेजा जा सकता है। सरकार को यह काम तुरन्त करना चाहिए।उन्होंने कहा कि इस तीसरे उपाय के तहत सरकार को फौरी तौर पर लोगों की मदद करनी चाहिए।
यशवंत सिन्हा ने कहा कि सरकार लॉकडाउन प्रभावित लोगों की मदद तो नहीं ही कर रही है, उल्टे उनके घावों पर नमक लगा रही है। सड़क पर मार खा रहे प्रवासी मज़दूरों की मदद करने के बजाय आर्थिक पैकेज में अंतरिक्ष सेक्टर को खोलने की बात कही जा रही है।
प्रवासी मज़दूर
इसी तरह प्रवासी मजदूरों की बात को आगे बढ़ाते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा कि किसी तरह की आर्थिक गतिविधि में इन मज़दूरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनके बग़ैर कोई उद्योग नहीं चल सकता। लिहाज़ा, जब उद्योगों को खोलने की बात कही जाती है तो इन प्रवासी मजदूरों की बात ज़रूरी की जानी चाहिए।आर्थिक पैकेज की धज्जियाँ उड़ाते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा कि अव्वल तो यह दावा ही ग़लत है कि यह 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज है। उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि इसमें पहले के पैकेज का पैसा जुड़ा हुआ है, रिज़र्व बैंक ने जो कुछ घोषणा की थी, वह जोड़ दिया गया है और चालू साल के बजट में जो प्रावधान था, वह जोड़ दिया गया है।
मदद या क़र्ज़
लेकिन सच यह है कि इसका बहुत ही छोटा हिस्सा ही सरकार अपनी जेब से देगी। वह लगभग चार लाख करोड़ रुपए के आसपास का होगा। सिन्हा ने कहा कि सरकार ने जो क़र्ज़ लेने की योजना बनाई है, वह भी लगभग चार लाख करोड़ रुपए का ही है।सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इस समय लॉकडाउन से प्रभावित लोगों को मदद की ज़रूरत है, लेकिन पैकेज का 90 प्रतिशत हिस्सा क़र्ज़ से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि क़र्ज़ लेना तो इस पर निर्भर करता है कि इससे फ़ायदा होता है या नहीं।
पूर्व वित्त मंत्री का सुझाव
पूर्व वित्त मंत्री ने मोदी सरकार को इस संकट से उबरने के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार बाज़ार से चार लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ ले लेगी तो भी उससे पूरा काम नहीं होगा। अभी ग़रीबों की जेब में पैसे डालने की ज़रूरत है, जो सरकार के पास नहीं है। इसलिए सरकार को नोट छापना चाहिए।
'सबको अनाज दे सरकार'
यशवंत सिन्हा ने सुझाव देते हुए कहा कि सबसे पहले तो सरकार सबको खाने-पीने का सामान मुहैया कराए। उन्होंने इसे विस्तार से बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के पास 10 करोड़ टन अनाज है। उसे चाहिए कि वह हर ज़रूरतमंद को अनाज दे और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी आदमी भूखा न रहे।मनरेगा से सबको काम
सिन्हा ने सरकार को यह सुझाव भी दिया है कि हर प्रवासी मज़दूर को घर पहुँचने के बाद काम मिलना चाहिए। यह काम मनरेगा के जरिए हो सकता है। उन्होंने मनेरगा के लिए पहले से अलॉट 60 हज़ार करोड़ रुपये के अलावा नए 40 हज़ार करोड़ रुपए को अच्छा बताया पर उसके साथ यह भी कहा कि मनरेगा की दिहाड़ी अधिक बढ़नी चाहिए थी।सरकार ने इसे 182 रुपए प्रति दिन से बढ़ा कर 202 रुपए प्रति दिन कर दिया है, पर सिन्हा का मानना है कि यह वृद्धि 20 रुपये नहीं, 50 रुपये की होनी चाहिए थी।
राज्यों की मदद
यशवंत सिन्हा ने यह भी कहा कि तमाम राज्य सरकारों की आर्थिक मदद की जानी चाहिए क्योंकि सारा काम तो राज्य सरकारों को ही करना है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकारों की शिकायत है कि उन्हें तो जीएसटी के अपने हिस्से का बकाया तक नही मिला है।पूर्व वित्त मंत्री ने राजस्व घाटे की बात भी कही और साफ़ शब्दों में कहा कि सरकार को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। इस राजस्व घाटे को बाद में ठीक किया जा सकता है।
रेटिंग एजेन्सियों की ख़राब रेटिंग की चिंता नहीं करने की सलाह देते हुए पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि जिस समय अमेरिका घनघोर संकट की ओर बढ़ रहा था, अंतरराष्ट्रीय एजेन्सियाँ उसे 'ट्रिपल ए' की रेटिंग दे रहे थे। इसलिए उनकी परवाह किए बग़ैर देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश की जानी चाहिए।
यशवंत सिन्हा ने आर्थिक सुधारों पर वित्त मंत्री की आलोचना करते हुए कहा कि बड़े सुधारों को यह सही समय नहीं है। पहले कोरोना संकट से देश को बाहर निकाला जाए, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाए, उसके बाद बड़े सुधार किए जा सकते हैं।