प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत नवंबर तक ग़रीबों को मुफ़्त में जो अनाज दिया जाएगा उसपर वास्तविक ख़र्च कितना आएगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कहा है कि इस बढ़ाए गए समय में 90 हज़ार करोड़ रुपये का ख़र्च आएगा। अप्रैल से लेकर जून तक इस पर क़रीब 60 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए जा चुके हैं। यानी कुल मिला कर अप्रैल से लेकर नवंबर तक यह ख़र्च 1.5 लाख करोड़ रुपये हो जाता है। क्या सच में इतना ख़र्च आएगा या फिर इसको बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया है
आइए, इसका आकलन करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देश के संबोधन में कहा कि आने वाले समय में त्योहारों को देखते हुए प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार नवंबर तक के लिए कर दिया गया है। इसके तहत ग़रीब परिवारों को 5 किलोग्राम चावल या गेहूँ और 1 किलो दाल भी मुफ़्त में दी जाती है। मोदी सरकार का दावा है कि इस योजना से 80 करोड़ ग़रीबों को लाभ मिलेगा।
मई के लिए खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के फूडग्रेन बुलेटिन डाटा के विश्लेषण से बहुत कम ख़र्च आने का पता चलता है। अब इसे ऐसे समझिए। 5 किलोग्राम अनाज 80 करोड़ लोगों को अप्रैल से जून तक देने पर क़रीब 12 मिलियन टन होता है। नवंबर तक इस योजना के बढ़ा देने से अतिरिक्त 20 मिलियन टन की ज़रूरत होगी।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फूडग्रेन बुलेटिन डाटा के अनुसार फूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया का अनुमान है कि 2020-21 में ख़रीद से लेकर बाँटने तक में प्रति किलो चावल पर 37.27 रुपये और गेहूँ पर 26.84 रुपये ख़र्च होंगे।
अप्रैल-जून के बीच जो 12 मिलियन टन अनाज बाँटे गए उसमें 10.44 मिलियन टन चावल और 1.56 मिलियन टन गेहूँ थे। इस हिसाब से इस पर कुल ख़र्च क़रीब 43100 करोड़ रुपये का आया होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, इस ख़र्च में वह शामिल नहीं है जो इन अनाजों को गोदाम में रखने और दूसरे रखरखाव पर अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ते। 'कैरिइंग कोस्ट' के तौर पर माने जाने वाले स्टोरेज जैसे चार्ज चालू वित्त वर्ष में 5.40 रुपये प्रति किलोग्राम है। दूसरी बात यह कि गोदाम भी भरे हुए हैं। एक अप्रैल तक रिजर्व के लिए जितनी ज़रूरत होती है उससे क़रीब साढ़े तीन गुना ज़्यादा चावल और गेहूँ- क़रीब 74 मिलियन टन जमा थे। गेहूँ की नयी ख़रीद के बाद यह 97 मिलियन टन से ज़्यादा हो गया था।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, अब 12 मिलियन टन अनाज जो अप्रैल से जून के बीच बाँटा गया, यदि यह गोदाम में पड़ा रहता तो क़रीब 6480 करोड़ रुपये सरकार को ख़र्च करने पड़ते। यानी ये रुपये सरकार के बच गए। अब 20 करोड़ परिवारों को 1 किलोग्राम दाल प्रति महीने देने से क़रीब 3900 करोड़ रुपये सरकार को ख़र्च करने पड़े। इस हिसाब से देखें तो सरकार का ख़र्च तीन महीने में अनाज बाँटने पर क़रीब 40500 करोड़ रुपये आए, न कि 60 हज़ार करोड़ रुपये।
रिपोर्ट में कहा गया गया है कि अब इसी तरह जुलाई से नवंबर तक 20 मिलियन टन अनाज (10-10 मिलियन टन चावल और गेहूँ) देने से ख़र्च क़रीब 64100 करोड़ रुपये आएगा। 5.40 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से रख रखाव पर आने वाली कैरिइंग कोस्ट अब सरकार की बचत होगी। यानी 20 मिलियन टन पर कैरिइंग कोस्ट के 10800 करोड़ रुपये सरकार के बचेंगे। अब एक मिलियन टन दाल पर क़रीब 65 रुपये के ख़र्च के हिसाब से 6500 करोड़ रुपये सरकार व्यय करेगी। यानी कुल मिलाकर जुलाई से नवंबर तक अनाज बाँटने में सरकार को 60 हज़ार करोड़ रुपये से भी कम ख़र्च आएँगे।
अब यदि अप्रैल से जून तक के कुल ख़र्च 40500 करोड़ को जोड़ दिया जाए तो अप्रैल से लेकर नवंबर तक सरकार पर ख़र्च 1.05 लाख करोड़ रुपये का आएगा, न कि 1.50 करोड़ रुपये का।