जानिए, आख़िर है क्या कोरोना से बैखौफ कार्यक्रम करने वाली तब्लीग़ी जमात?

04:08 pm Apr 02, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

तब्लीग़ी जमात आख़िर क्या है कौन लोग हैं इसमें और यह काम क्या करती है तब्लीग़ी जमात यानी मौलानाओं का एक समूह। इसकी शुरुआत 1926 में मेवात क्षेत्र में हुई थी। इसलाम के जानकार मौलाना मुहम्मद इलियास ने इसके शुरू किया था। 

कहा जाता है कि तब्लीग़ी जमात एक ऐसा बदलावकारी आंदोलन है जिसका उद्देश्य ग़ैर-मुसलिमों को परिवर्तित करना नहीं है। इसका उन आम मुसलमानों में यह विश्वास जगाना है कि वे मुसलिम हैं और इसी विश्वास को पुनर्जीवित करना है। हालाँकि, कोई आधिकारिक आँकड़ा तो नहीं है, लेकिन प्यू रिसर्च सेंटर के रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ़ प्रोजेक्ट में कहा गया है कि उनकी संख्या 12 से 80 मिलियन तक है, जो 150 से अधिक देशों में फैली हुई है।

पैगंबर मुहम्मद के समय में जिस तरह से मुसलमान रहते थे, जमात उसे दोहराने की कोशिश करती है। वे उस तरह से कपड़े पहनते हैं, जैसा कि मुसलमान तब करते थे- पुरुष एक निश्चित लंबाई की दाढ़ी रखते हैं, और वे टूथब्रश के बजाय मिसवाक (दांतों की सफ़ाई करने वाली टहनी) का उपयोग करते हैं। इसमें वैसा कुछ भी नहीं है जो देवबंदी प्रेरित आंदोलन इसलाम में नहीं पढ़ाया जाता है, लेकिन यह आंदोलन सिर्फ़ धर्म के उन हिस्सों के रूप में चयनात्मक होता है जिस पर कि इसे फ़ोकस करना होता है।

वास्तव में, इसे 'कट्टरपंथ का विरोधाभासी' और 'वर्चस्ववादी आंदोलन' कहा जाता है जो अलगाववाद को बढ़ावा देता है। यह ज़्यादातर इसलिए क्योंकि संगठन का कोई संविधान या औपचारिक पंजीकरण नहीं है। इसका साफ़ मतलब यह है कोई भी यह नहीं जानता है कि इसमें कौन आता है या उससे बाहर कौन जाता है। किसी भी सदस्य के अतीत या भविष्य का हिसाब नहीं रखा जाता है।

तब्लीग़ी जमात हाल ही में इसलिए चर्चा में रही थी क्योंकि उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और कज़खिस्तान ने इस पर पाबंदी लगा दी है। यह पाबंदी ख़ासकर इसलिए लगाई गई क्योंकि वे देश इसके इसलाम के प्रति 'मूल की ओर लौटो' के इसके नज़रिये को कट्टरवाद मानते हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 में विकीलीक्स के डॉक्यूमेंट में दावा किया गया था कि आतंकी संगठन अल क़ायदा के साज़िशकर्ताओं ने दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात के हेडक्वार्टर का छुपने और यात्रा के काग़जात बनवाने के लिए इस्तेमाल किया था। 

कुछ लोगों का मानना है कि तब्लीग़ी जमात कट्टरवादियों के लिए ज़मीन तैयार करती है। कई ऐसे लोगों के आतंकी संगठनों में शामिल होने की रिपोर्ट आती रही है जो तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे। हालाँकि जमात से किसी आतंकी के सीधे जुड़े होने के प्रमाण नहीं हैं। 

आतंकवाद रोधी गतिविधियों से जुड़े रहे विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत सरकार इस संगठन को एक धार्मिक संगठन मानती है जिसका आतंकवाद से कोई सीधा संपर्क नहीं है। संगठन में कई चीजें गुप्त होने के आरोप लगते रहे हैं। 'लाइव मिंट' के अनुसार, खुफिया एजेंसी में रहे अजीत डोभाल भी कहते हैं कि कई चीजें गुप्त होने के कारण इस पर संदेह होता है। 

मेवात क्षेत्र में हुई थी शुरुआत

शैक्षणिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर मेवात के मेव किसानों के बीच 1926 में तब्लीग़ी जमात अस्तित्व में आयी थी। मेव के बारे में कहा जाता है कि वे कई हिंदू रीति-रिवाजों को मानते थे। शादी में फेरी लेने की रस्में करते थे, ईद की तरह होली भी मनाते थे और गोत्र-व्यवस्था में विश्वास करते थे। कहा जाता है कि ऐसा इसलिए था कि मुसलिमों के हिंदू में धर्मांतरण से रोकने में मदद मिलने की उम्मीद थी। 

तब्लीग़ी जमात का काम करने का एक नेटवर्क है। एक आमीर होते हैं जिनकी सलाह सब मानते हैं। कुछ फ़ुल टाइम मेंबर होते हैं जो सामान्य रूप से उम्रदराज लोग होते हैं। युवा सदस्य बाहर जाते हैं और उसका प्रचार करते हैं जो उन्होंने सीखा होता है। इसके सदस्यों के धार्मिक जीवन की प्लानिंग के लिए मसजिद में हर रोज़ मशूरा यानी एक बैठक होती है। 

तब्लीग़ी जमात अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर ऐसे कार्यक्रम करती रहती है जिसमें देश-दुनिया के मौलान व स्थानीय लोग शामिल होते हैं। ऐसा ही कार्यक्रम क़रीब एक पखवाड़ा पहले निज़ामुद्दीन में भी हुआ था जिसमें बड़े स्तर पर कोरोना वायरस के फैलने की आशंका है।