कोरोना वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के ख़िलाफ़ काफ़ी कम प्रभावी हैं और टीके की दोनों खुराक लिए हुए लोगों को बूस्टर खुराक की ज़रूरत पड़ सकती है। यह इंग्लैंड के एक शोध में सामने आया है। इस बीच भारत के चेन्नई में किए गए इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के एक अध्ययन में भी पाया गया है कि डेल्टा वैरिएंट में दोनों खुराक लगवाए लोगों को भी संक्रमित करने की क्षमता है। हालाँकि इसमें कहा गया है कि टीका लगाए लोगों में मृत्यु दर कम होती है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और इंग्लैंड के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किए गए सर्वे को गुरुवार को प्रकाशित किया गया है। संक्रमण पैटर्न की एक विस्तृत तस्वीर के लिए लोगों के रैंडम सैंपल के आधार पर 30 लाख से अधिक पीसीआर परीक्षणों का विश्लेषण किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि इस साल डेल्टा वैरिएंट काफ़ी तेज़ी से संक्रमण फैला रहा है।
फाइजर और बायोएनटेक एसई के मैसेंजर आरएनए वैक्सीन की दोनों खुराक लगाने के बाद पहले 90 दिनों में प्रभाव कम हो गया। हालाँकि एस्ट्राज़ेनेका की खुराक लगाए अधिकांश लोगों में प्रभाव उतनी तेज़ी से कम नहीं हुआ जितना फाइजर की वैक्सीन लगाए लोगों में हुआ।
शोध में यह भी सामने आया है कि जब टीका लगाए गए लोग डेल्टा से संक्रमित हो गए तो उनके शरीर में वायरस के समान स्तर थे, जितने कि उन लोगों में जिनको कोई टीका नहीं लगाया गया था। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार रीडिंग विश्वविद्यालय में सेलुलर माइक्रोबायोलॉजी में एक सहयोगी प्रोफेसर साइमन क्लार्क ने कहा, 'हम यहाँ क्लिनिकल ट्रायल के डाटा के बजाय वास्तविक दुनिया के डाटा देख रहे हैं कि दो टीके कैसे काम कर रहे हैं। और डेटा सेट दिखाते हैं कि डेल्टा वैरिएंट ने फाइजर और एस्ट्राज़ेनेका दोनों की प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित किया है।'
इन परिणामों से उस आशंका को और बल मिलता है जिसमें कहा गया है कि हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा आना मुश्किल लगता है।
हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा का सीधा मतलब यह है कि कोरोना संक्रमण से लड़ने की क्षमता इतने लोगों में हो जाना कि फिर वायरस को फैलने का मौक़ा ही नहीं मिले। यह हर्ड इम्युनिटी या तो कोरोना से ठीक हुए लोगों या फिर वैक्सीन के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडी से आती है। शुरुआत में कहा जा रहा था कि यदि किसी क्षेत्र में 70-80 फ़ीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी बन जाएगी तो हर्ड इम्युनिटी की स्थिति आ जाएगी।
लेकिन अब कोरोना से ठीक हुए लोगों और वैक्सीन की दोनों खुराक लिए हुए लोगों में भी संक्रमण के मामले आने के बाद इस पर सवाल उठने लगे हैं।
ऐसे संक्रमण के मामले तब और ज़्यादा आने लगे हैं जब से डेल्टा वैरिएंट आया है। डेल्टा वैरिएंट अब तक सबसे ज़्यादा तेज़ फैलने वाला और सबसे ज़्यादा घातक भी है। फ़ोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के वुहान में सबसे पहले मिले कोरोना संक्रमण से 50 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला अल्फा वैरिएंट था। यह वैरिएंट सबसे पहले इंग्लैंड में पाया गया था। इस अल्फा से भी 40-60 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट है। यह सबसे पहले भारत में मिला था और अब तक दुनिया के अधिकतर देशों में फैल चुका है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ताज़ा शोध के परिणाम से पूरी तरह से टीका लगाए लोगों को बूस्टर खुराक देने की मांग को बल मिलने की संभावना है। इस बीच अमेरिका ने कहा है कि जिन अमेरिकियों को फाइजर-बायोएनटेक या मॉडर्न की एमआरएनए वैक्सीन की दोनों खुराकें लगी हैं, वे आठ महीने के बाद तीसरा टीका लगवा सकेंगे। यू.के. के अधिकारी विचार कर रहे हैं कि बूस्टर खुराक कैसे दी जाए। इज़राइल में इस महीने फाइजर-बायोएनटेक की तीसरी खुराक दी जा रही है और प्रारंभिक परिणाम बताते हैं कि वे 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए 86 प्रतिशत प्रभावी रहे हैं।
लेकिन एक बड़ी चिंता यह है कि पूरी दुनिया में वैक्सीन की आपूर्ति उतनी नहीं है कि पूरी आबादी को एक भी टीका लगाया जा सके। दो खुराक की तो बात ही दूर है। भारत में भी वैसे ही हालात हैं। भारत में लक्ष्य रखा गया है कि इस साल के आख़िर तक पूरी व्यस्क आबादी को टीका लगा दिया जाएगा। जबकि हालात ऐसे हैं कि सरकार इस लक्ष्य से भी काफ़ी पीछे चल रही है। भारत में अब तक कुल 56 करोड़ टीके लगाए जा सके हैं। टीके की योग्य आबादी के क़रीब 9 फ़ीसदी लोगों को ही दोनों खुराक लगाई गई हैं। ऐसे में मौजूदा समय में तो भारत में बूस्टर खुराक देने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है!