उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 लोगों को निकालने के लिए जब अंतरराष्ट्रीय टनलिंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स को बुलाया गया तो उन्होंने अखबारों और टीवी चैनलों पर यह बताकर सुर्खियां बटोरीं कि क्रिसमस तक सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा। लेकिन अंत में भारत की वही देसी तकनीक काम आई जो यहां सदियों से गड्ढा बनाने, नींव खोदने, भूमिगत रास्ता बनाने के लिए वही मजदूर तबका करता रहा है। हालांकि इसे रैट होल माइनिंग कहा जाता है, जिसका मतलब है कि चूहे की तरह खुदाई करना और बिल बनाना लेकिन यहां इसका अर्थ है मैन्युअल खुदाई। यानी हाथ से खुदाई। ऑपरेशन 41 में इन्हीं रैट होल मइनर्स की सबसे बड़ी भूमिका है। और इसमें भी वो नाम सबसे प्रमुख है, जो शख्स सबसे पहले 41 मजदूरों तक सबसे पहले पहुंचा। मुन्ना कुरैशी का नाम मंगलवार को ऑपरेशन के पूरा होने के समय तमाम वीआईपी लोगों के नामों में खो गया था लेकिन मुन्ना कुरैशी इस कथा के सबसे बड़े नायक बन गए हैं।
मजदूरों को सफलतापूर्वक बचाने का ऑपरेशन पूरा होने पर पीएम मोदी ने अपने संदेश में बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को सलाम किया और कहा कि मिशन में शामिल सभी लोगों ने मानवता और टीम वर्क का अद्भुत उदाहरण पेश किया। कई सरकारी एजेंसियां अपनी विशाल सेना के साथ उत्तराखंड सुरंग के अप्रत्याशित इलाके में 24X7 तैनात रहीं।
29 साल के मुन्ना कुरेशी जो रैट होल माइनर हैं और दिल्ली की ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज कंपनी में काम करते हैं। यह कंपनी सीवर और पानी की लाइनों को साफ करने के ठेके लेती है। मुन्ना कुरैशी उन दर्जनों खुदाई करने वाले मजदूरों में से एक थे, जिन्हें आखिरी 12 मीटर का मलबा हटाने के लिए सोमवार को उत्तराखंड लाया गया था। अब सारा दारोमदार इन्हीं पर था।
अमेरिका निर्मित बरमा मशीन को लेकर काफी बड़े दावे किए गए थे। लेकिन जब यह सुरंगा का मलबा हटाने के रास्ते में खराब हो गई तो बड़े-बड़े टनलिंग विशेषज्ञों ने अपना माथा पकड़ लिया। कुछ पूजा करने बैठ गए। अंत में रास्ता यह मिला कि जिस तरह मजदूर कोयले की खानों में या मिट्टी के अंदर छोटे-छोटे गड्ढे खोदकर कोयला या मिट्टी निकालते हैं, उसी तरीके से इस काम को आगे बढ़ाया जाए। हालांकि यह तरीका अवैज्ञानिक होने के कारण 2014 में इसे कोयला निकालने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन जब आपको 41 जिन्दगियां बचानी हों तो सारे प्रतिबंध और नियम-कानून धरे रह जाते हैं।
मुन्ना कुरेशी ने बताया कि हम लोग धीरे-धीरे खुदाई करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मंगलवार शाम को जब मैंने आखिरी चट्टान हटाई तो 41 फंसे हुए मजदूर भाइयों ने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा। 17वें दिन वे किसी इंसान को अंदर अपने सामने देख रहे थे। मुन्ना क़ुरैशी ने कहा, "उन्होंने मुझे गले लगाया, तालियां बजाईं और मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।"
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मोनू कुमार, वकील खान, फ़िरोज़, परसादी लोधी और विपिन राजौत अन्य रैट होल माइनर थे जो अपने कठिन ऑपरेशन के बाद फंसे हुए लोगों तक पहुंचे। अंदर मौजूद लोग दूसरी तरफ से किसी सफलता का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे, खुशी से झूम उठे और उन्होंने उन सभी को गोदी में उठा लिया। खनिकों (माइनर) में से एक ने कहा, "उन्होंने मुझे बादाम दिए।" फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए एनडीआरएफ के आने से पहले खनिक मुन्ना कुरैशी और बाकी लोग अंदर ही आधे घंटे तक रुके रहे।
सोशल मीडिया पर मुन्ना कुरैशी, वकील खान और बाकी रैट होल माइनर्स के लिए हमदर्दी का सैलाब उमड़ आया है। कुल लोग इसे अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। कुछ लोग इसे भारत की असली ताकत यानी हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बता रहे हैं। कुछ ट्वीट को हम आपके लिए यहां पेश कर रहे हैं।
इस ट्वीट को भी देखिए-
ट्विटर पर इस मुद्दे पर दो लोगों के उद्गार देखिए-
इस ट्विटर यूजर ने तो इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट को भी अपने ट्वीट के जरिए घेर लिया-
इस ट्विटर यूजर ने कुछ इस तरह लिखा-
इनके अलावा भी मुन्ना कुरैशी और वकील खान पर असंख्य ट्वीट हैं। रात में ट्विटर पर इन दोनों के नाम ट्रेंड करने लगे थे। हालांकि टीवी मीडिया ने इन दो नामों को बहुत तवज्जो नहीं दी लेकिन तमाम यूट्यूबर्स ने इनके बारे में देश को बताया। बहरहाल, 41 जिन्दगियों को बचा लिया गया है। मुद्दा यह नहीं है कि किसने उन्हें बचाया, किसने सारी योजना बनाई, मुद्दा ये है कि पहाड़ को लेकर देश के योजनाकारों को सजग हो जाना चाहिए। विकास के नाम पर पहाड़ों को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। आज तो मुन्ना कुरैशी और वकील खान वहां फरिश्ता बनकर पहुंच गए, लेकिन कल हो सकता है कि ऐसे फरिश्ते भी कुछ न कर सकें।