भारत में साल में एक आदमी 50 किलो खाना फेंकता है

08:45 am Mar 06, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

भारत में जहाँ बड़ी संख्या में लोगों के भूखे रहने की नौबत आती है वहीं प्रति व्यक्ति एक साल में क़रीब 50 किलो पका-पकाया खाना कूड़े में फेंक दिया जाता है। देश की पूरी आबादी पर यह खाना काफ़ी ज़्यादा हो जाएगा है। पूरी दुनिया की यदि बात करें तो 93 करोड़ 10 लाख टन खाना बर्बाद होता है। दुनिया भर में उपलब्ध कुल खाने का यह 17 फ़ीसदी है। संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था ने एक आकलन के आधार पर यह रिपोर्ट दी है। यानी जितना खाना बर्बाद होता है उससे दुनिया की एक बड़ी आबादी की भूख मिट सकती है। 

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी द्वारा फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में जारी की गई है। यूएनईपी के साथ ही ब्रिटेन स्थित ग़ैर-सरकारी संगठन WRAP ने साझे रूप से यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कहा गया है कि जो ये भोजन बर्बाद हुए वह घरों से, खुदरा विक्रेताओं से, रेस्तराँ और अन्य खाद्य सेवा उपलब्ध कराने वालों से हुए।

पूरी दुनिया में औसत रूप से प्रति व्यक्ति प्रत्येक वर्ष 121 किलोग्राम पका-पकाया भोजन बर्बाद हो जाता है। हालाँकि, भारत में प्रति व्यक्ति यह बर्बादी प्रति वर्ष 50 किलो होती है। जबकि यह अफगानिस्तान में 82 किलोग्राम, नेपाल में 79 किलोग्राम, श्रीलंका में 76 किलोग्राम, पाकिस्तान में 74 किलोग्राम और बांग्लादेश में 65 किलोग्राम है। 

हालाँकि दुनिया की औसत बर्बादी और कई देशों के मुक़ाबले भारत में यह बर्बादी कम है, फिर भी यदि इसे रोक दिया जाए तो भारत की वैश्विक भूख सूचकांक में सुधार हो सकता है। यह एक वार्षिक रिपोर्ट है, जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से लोगों के भूखे रहने की स्थिति को दर्शाती है। 

वैश्विक भूख सूचकांक- 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। वर्ष 2019 में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था। इसके साथ भारत 'गंभीर' श्रेणी में है। कुल 107 देशों में से केवल 13 देश भारत से ख़राब स्थिति में हैं, जिनमें रवांडा (97वें), नाइजीरिया (98वें), अफगानिस्तान (99वें), लाइबेरिया (102वें), मोजाम्बिक (103वें), चाड (107वें) आदि देश शामिल हैं। वैश्विक भूख सूचकांक की वेबसाइट पर यह जानकारी दी गयी है।

वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 फ़ीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 थी जो कुपोषण के कारण नहीं बढ़ पाते।

वेस्ट फूड इंडेक्स की रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का ज़िक्र किया गया है जो अनुमान लगाता है कि 2019 में 69 करोड़ लोग भूखे थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना के दौरान और बाद में इस संख्या में तेज़ी से वृद्धि होने की आशंका है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘क़रीब 3 अरब लोग स्वस्थ आहार लेने में सक्षम नहीं हैं। इस रिपोर्ट का संदेश साफ़ है: नागरिकों को घर पर भोजन की बर्बादी को कम करने की जरूरत है।’ 

रिपोर्ट में इस पर जोर दिया गया है कि खाने की बर्बादी केवल समृद्ध देशों तक सीमित नहीं है। इसमें कहा गया है कि क़रीब-क़रीब सभी आय वर्ग के देशों में घरों में खाना की बर्बादी समान रूप से की जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि खाने की बर्बादी से पर्यावरण को भी बड़ा नुक़सान पहुँच रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8-10% उस भोजन से जुड़ा होता है जिसको खाया नहीं जाता है। यानी इसका मतलब साफ़ है कि यदि भोजन की बर्बादी को रोक दिया जाए तो पर्यावरण भी संरक्षित किया जा सकता है। भूखे पेट रहने वालों का तो पेट भरा ही जा सकता है। यदि समाज में यह जागरूकता आ जाए तो फिर क्या कहने!