UGC के नए नियम: क्या सरकार बढ़ा रही है जातिगत भेदभाव?

04:22 pm Mar 10, 2025 | सत्य ब्यूरो

भारत का संविधान किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ़ है पर क्या इस संविधान के तहत काम करने वाली देश की कोई सरकारी संस्था खुद भेदभाव फैला सकती है? देश में उच्च शिक्षा की देखभाल करने वाली संस्था UGC पर एक ऐसा ही आरोप लगा है।

2019 में रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मृत्यु हुई थी। दोनों की मृत्यु खुदकुशी से हुई थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी खुदकुशी की वजह जातिगत भेदभाव था। उनकी मृत्यु के बाद रोहित की माँ राधिका वेमुला और पायल की मां आबेदा सलीम तड़वी ने यूजीसी के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में संस्थाओं में भेदभाव को लेकर एक याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि संस्थानों में भेदभाव हटाने के यूजीसी के नियम लागू हों।

इस मामले की छः सालों में केवल दूसरी सुनवाई जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट में हुई। उस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी को फटकार लगाई कि उन्होंने अब तक मामले को लेकर अपनी बात क्यों  नहीं रखी।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद UGC ने कोई संज्ञान लिया या नहीं, बाद की बात है। एक नया कोर्स करेक्शन जरूर किया है।

यूजीसी ने हाल ही में 2025 के नए नियमों का ड्राफ्ट जारी किया है, जो पुराने 2012 के नियमों की जगह लेंगे। इन नियमों को यूजीसी ने ‘उच्च शिक्षा संस्थानों में समानता संवर्धन विनियम, 2025’ यानी कि Promotion of Equity in Higher Education Institutions Regulations, 2025 के तहत सामने रखा है।

ये नए नियम आने के साथ ही सवालों के घेरे में हैं। इन नियमों के साथ सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार वाकई जातिगत भेदभाव खत्म करना चाहती है, या इसे और अस्पष्ट बना रही है? गौरतलब है कि संस्थानों में हर तरह के भेदभाव को रोकने के लिए 2012 में UGC ने सख्त नियम बनाए थे। 2025 में लाए गाउए नये नियम पुराने नियमों की जगह लेंगे। 

इसी पर पूरा मामला है। जानकारों का कहना है कि नये नियम  पुराने नियमों को कमज़ोर कर रहे हैं। कैसे? इसे जानने के 2012 के नियमों को देखना होगा।  2012 के नियमों में जातिगत भेदभाव को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया था। इनमें यह साफ तौर पर बताया गया था कि:

• जाति के आधार पर एडमिशन में भेदभाव नहीं किया जा सकता• परीक्षा में नंबर काटना, रिजल्ट में देरी करना—सख्त प्रतिबंधित था• छात्रावास, मेस, लाइब्रेरी में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए• शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, जाति का सार्वजनिक रूप से उल्लेख करना—सभी अपराध माने गए थे

अब 2025 के नए नियमों में क्या बदला?UGC के 2025 में जारी किये गये नये नियमों के साथ कई विवाद जुड़ गये हैं। इस पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि नये नियमों में भेदभाव की परिभाषाएं ही कमजोर कर दी गई हैं। मामले पर बात करते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एन. सुकुमार ने ये कहाः 

2012 के नियमों में जातिगत भेदभाव को बहुत ही स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया था। हर तरह के भेदभाव के उदाहरण दिए गए थे। लेकिन 2025 के ड्राफ्ट में सब कुछ बहुत ही ढीला और अस्पष्ट कर दिया गया है। इससे जातिगत अन्याय को रोकना और मुश्किल हो जाएगा।


- प्रोफेसर एन. सुकुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय

सवाल यह है कि क्या UGC ने जानबूझकर ऐसा किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी से नहीं कहा था कि वह कोई नये नियम बनाए। याचिका भी पहले से मौजूद नियमों को पालन करने और उसकी खामियों को दूर कर अधिक प्रभावी बनाने की थी। फिर क्यों किया यूजीसी ने ऐसा?

यहाँ फिर से यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि रोहित और पायल की मां ने जो याचिका दायर की थी उसमें साफ तौर पर 2012 के नियमों में कुछ खामियों की ओर इशारा किया था। साथ ही उन्हीं नियमों में सुधार कर लागू करने की मांग की थी। 

2012 के UGC नियमों में कई ऐसे महत्वपूर्ण प्रावधान थे, जो जातिगत भेदभाव को सही तरीके से परिभाषित करते थे। लेकिन 2025 के मसौदे में ऐसा खास कुछ भी नहीं था । कई शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार भेदभाव रोकने के लिए नहीं, बल्कि नियमों को कमजोर करने के लिए ये बदलाव कर रही है। 

अब सवाल यह उठता है: क्या इन नये नियमों से जातिगत भेदभाव और नहीं बढ़ जाएंगे? क्या सरकार ने जानबूझकर भेदभाव की परिभाषा को कमजोर किया है? सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में क्या हस्तक्षेप होगा? हाल ही में यूजीसी के नये नियमों के विरोध में न सिर्फ शिक्षक संगठन उतरे, बल्कि कई विपक्षी शासित राज्य भी यूजीसी की नई गाइडलाइंस का विरोध कर रहे हैं। इनमें तमिलनाडु प्रमुख है। 

(रिपोर्टः अणु शक्ति सिंह, संपादनः यूसुफ किरमानी)