सीमा पर शांति बहाली के बिना चीन से व्यापारिक रिश्ते पहले जैसे नहीं रहेंगेः चीन

12:18 pm Mar 20, 2022 | सत्य ब्यूरो

भारत ने चीन से कहा है कि जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के लद्दाख सेक्टर में दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध का हल नहीं निकलता और बॉर्डर एरिया में शांति नहीं लौटती, तब तक चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते पहले जैसे नहीं रहेंगे। भारत का यह बयान शनिवार को तमाम नए घटनाक्रमों के बीच आया है। विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने कहा कि पीएम मोदी और जापानी पीएम फुमियो किशिदा के बीच शिखर सम्मेलन के दौरान एलएसी पर गतिरोध पर भारतीय पक्ष की स्थिति से जापानी पक्ष को अवगत कराया गया था।उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि दोनों प्रधानमंत्रियों की चर्चा में चीन का मुद्दा आया था। दोनों देशों ने एक दूसरे को अपने नजरिये से अवगत कराया। भारत ने जापान को "लद्दाख की स्थिति के बारे में... सैनिकों को जमा करने के प्रयासों, कई उल्लंघनों के प्रयासों और इस तथ्य के बारे में सूचित किया कि हम सीमा से संबंधित मुद्दों और हाल के मुद्दों पर चीन के साथ बातचीत कर रहे थे।

विदेश सचिव ने कहा, हमने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मुद्दों का समाधान नहीं होगा और सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं आती, हमारे व्यापारिक रिश्ते पहले जैसे नहीं रह जाएंगे। रिश्ते में प्रगति सामान्यतः उन मुद्दों पर निर्भर करेगी जिन पर हम चर्चा कर रहे हैं। भारत-चीन गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ। गलवान घाटी में एक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे। तब से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं। भारत ने कहा कि चीन ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि उसने एलएसी पर सैनिकों को जमा करके और यथास्थिति को बदलने के लिए एकतरफा प्रयास करके सीमा प्रबंधन पर कई समझौतों और प्रोटोकॉल का उल्लंघन क्यों किया।  

कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य बातचीत के बावजूद, भारत और चीन केवल पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर और गोगरा में सीमावर्ती सैनिकों को हटाने पर सहमत हुए हैं। लद्दाख सेक्टर में दोनों पक्षों के सैनिक कई अन्य बिंदुओं पर बने हुए हैं, और भारत ने व्यापार जैसे अन्य क्षेत्रों में संबंधों को आगे बढ़ाने से गतिरोध को दूर करने के लिए चीन के बार-बार आह्वान को खारिज कर दिया है।

भारत-जापान शिखर सम्मेलन के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख शक्तियों के रूप में दोनों देशों की समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा और सुरक्षा, नौवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता, अबाधित वैध वाणिज्य और “शांतिपूर्ण समाधान” में साझा रुचि थी। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार कानूनी और कूटनीतिक प्रक्रियाओं के जरिए पूर्ण सम्मान के साथ विवादों का समाधान हो।