लोकसभा की आचार समिति द्वारा महुआ मोइत्रा के निष्कासन की सिफारिश किए जाने से क्या अब तय हो गया है कि उनको निष्कासित ही किया जाएगा? आख़िर आचार समिति की रिपोर्ट के बाद अब आगे क्या होगा और महुआ मोइत्रा के पास अब क्या विकल्प हैं? इन सभी सवालों का जवाब समिति के नियमों में मिलता है। समझा जाता है कि उस प्रक्रिया से गुज़रने के बाद ही अब इस सिफारिश पर फ़ैसला लिया जाएगा।
आचार समिति के नियमों में क्या लिखा है और आगे की प्रक्रिया क्या होगी, यह जानने से पहले यह जान लें कि आचार समिति ने किस तरह से फ़ैसला लिया। महुआ मोइत्रा के खिलाफ बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे द्वारा लगाए गए 'सवाल के बदले पैसे लेने' के आरोपों के मामले में लोकसभा की आचार समिति ने शिकायतकर्ता और आरोपी पक्ष से पूछताछ की। इसके बाद समिति ने एक मसौदा तैयार किया और गुरुवार को उस मसौदे को अपना लिया गया। समिति के 6 सदस्य पक्ष में रहे और 4 विरोध में। अपनाए गए मसौदे की रिपोर्ट में उन्हें सदन से निष्कासित करने की सिफारिश की गई है।
अब सबसे पहले तो आचार समिति की यह रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष के पास जाएगी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार आचार समिति की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले नियम बताते हैं कि समिति की सिफारिशें एक रिपोर्ट के रूप में होंगी और इसे अध्यक्ष को पेश किया जाएगा। अध्यक्ष इसे सदन में पेश करने का निर्देश दे सकता है। नियम कहते हैं कि रिपोर्ट में 'समिति द्वारा की गई सिफारिशों को प्रभावी करने के लिए सदन द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया भी बताई जा सकती है'।
नियम 316 ई में रिपोर्ट पर विचार करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया बताई गई है। इसमें लिखा है, "रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद, अध्यक्ष या समिति का कोई सदस्य या कोई अन्य सदस्य यह प्रस्ताव कर सकता है कि रिपोर्ट पर विचार किया जाए, इसके बाद अध्यक्ष सदन में प्रश्न रख सकता है।' सदन में प्रश्न रखने से पहले, नियम कहते हैं कि अध्यक्ष प्रस्ताव पर बहस की अनुमति दे सकता है, लेकिन आधे घंटे से ज़्यादा नहीं। अध्यक्ष या समिति का कोई सदस्य, या कोई अन्य सदस्य यह प्रस्ताव रख सकता है कि सदन रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों से सहमत या असहमत है, या संशोधनों से सहमत है।
आचार समिति पर सवाल क्यों उठे?
तृणमूल मामले में लोकसभा की आचार समिति पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने गुरुवार को कहा, 'आचार समिति ने कहा है कि उनके खिलाफ जांच होनी चाहिए। यदि आपके पास महुआ के खिलाफ कुछ भी नहीं है तो यह जांच का विषय है कि निष्कासन की सिफारिश क्यों की गई है?'
वैसे, आचार समिति पर पिछली बैठक में भी कई आरोप लगे थे। लोकसभा की एथिक्स कमेटी ने क़रीब एक हफ्ते पहले महुआ मोइत्रा से पूछताछ की थी। लेकिन इस पूछताछ में एथिक्स कमेटी पर ही अनएथिकल होने का आरोप लग गया था।
दो नवंबर को हुए घटनाक्रम में लोकसभा की आचार समिति की बैठक में ही हंगामा हो गया था। आरोपों का जवाब देने के लिए आचार समिति यानी इथिक्स पैनल के सामने महुआ पेश तो हुई थीं, लेकिन कुछ देर बाद ही वह बैठक से तमतमाई हुई बाहर निकल गईं। महुआ और पैनल में शामिल विपक्षी दलों के सदस्यों ने व्यक्तिगत और अनैतिक सवाल पूछने के आरोप लगाए थे।
क्या प्रक्रियाएँ अपनाई जानी चाहिए?
क्या होगा यदि किसी सदस्य को निष्कासित करने के लिए आचार समिति की सिफारिश को मंजूरी देने का प्रस्ताव लोकसभा द्वारा बहुमत से अपनाया जाता है? इस सवाल पर पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'जिस वक़्त ऐसा प्रस्ताव आता है और सदन द्वारा अपनाया जाता है, उसी समय सदस्य को निष्कासित कर दिया जाता है।'
आचार समिति द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं के बारे में आचार्य ने कहा, 'शिकायतकर्ताओं और जिस सदस्य के खिलाफ शिकायत की गई है, उन्हें जांच और जिरह के लिए समिति के समक्ष बुलाया जाता है। यही प्रक्रिया है लेकिन मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि इस मामले में क्या हुआ है।' बता दें कि महुआ मोइत्रा भी लगातार समिति के सामने जिरह यानी क्रॉस-क्वेश्चनिंग की मांग करती रही थीं। समझा जाता है कि इस मामले में जिरह नहीं हो पाई है।