अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों के साथ झड़प ने गलवान संघर्ष की याद ताज़ा कर दी है। गलवान संघर्ष के बाद हाल तक दोनों सेनाओं के बीच डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया चली। और अब तवांग का संघर्ष सामने है। तब भी आर्थिक बहिष्कार की मांग उठी थी और अब भी उठ रही है। खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इसकी पैरवी कर रहे हैं पूछ रहे हैं कि हम चीन से अपना व्यापार बंद क्यों नहीं करते?
उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि इससे चीन को सबक़ मिलेगा।
तो सवाल है कि क्या ऐसा सबक़ भारत चीन को दे रहा है? यदि ऐसा है तो चीन से भारत में आयात बेहद तेज़ी से क्यों बढ़ रहा है? और चीन आख़िर ऐसा करने से बाज क्यों नहीं आ रहा है? क्या गलवान संघर्ष के बाद जिस तरह से चीन पर आर्थिक चोट करने की बात की जा रही थी उसका असर नहीं हुआ? आख़िर गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक मोर्चे पर क्या हुआ?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर गलवान में दो साल पहले हुआ क्या था। गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है। यहाँ पर एलएसी अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। जून 2020 में इसी गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी जब 20 भारतीय सैनिक देश के लिए शहीद हो गए थे और 40 से अधिक चीनी सैनिकों के मारे जाने या घायल होने के दावे कई मीडिया रिपोर्टों में किए गए थे।
उस घटना के मद्देनज़र ही चीन के साथ व्यापार संबंधों को ख़त्म करने की मांग उठी थी। बीजेपी के कई नेताओं और समर्थकों ने चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चलाई थी और उसे राष्ट्रवाद से जोड़ दिया था। सोशल मीडिया पर चीनी मोबाइल फ़ोन, टेलीविज़न, दूरसंचार उपकरण और दूसरे उपकरणों के बहिष्कार की अपील की गई थी।
चीन विवाद के बाद सबसे पहले बड़े नेताओं में उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्वदेशी की बात की थी। तब सरकारी खरीद पोर्टल पर यह बताना अनिवार्य किया गया कि उत्पाद किस देश का बना है। भारत सरकार ने चीन के ऐप पर प्रतिबंध लगाने के साथ बिजली उपकरणों की बगैर पूर्व अनुमति आयात प्रतिबंधित कर दिया था। बिजली मीटरों के ठेके रद्द कर दिए गए थे। स्मार्ट टीवी के आयात पर रोक लगा दी गई थी।
गलवान संघर्ष के बाद पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता जॉय बनर्जी ने लोगों से अपील की थी कि वे चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें। बनर्जी ने कहा था कि जो लोग इनका इस्तेमाल जारी रखते हैं, उनकी टांगें तोड़ दी जानी चाहिए और उनके घरों में तुरंत तोड़फोड़ की जानी चाहिए।
उसी बीच सरकार ने कई चीनी ऐप को प्रतिबंधित कर दिया था और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश क़ानून में संशोधन कर चीनी प्रत्यक्ष निवेश पर एक तरह से रोक लगा दी थी। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ? क्या व्यापार कम भी हुआ?
आयात कैसे बढ़ा?
इस मामले में एक दिन पहले ही सरकार ने आँकड़े बताए हैं। राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल द्वारा पेश किए गए आँकड़ों के मुतबिक़, गलवान संघर्ष वाले वर्ष के दौरान भारत में 2020-21 में चीन से कुल आयात 65.21 बिलियन डॉलर का था जो कि 2021-22 में यह बढ़कर 94.57 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
मोटे तौर पर कहें तो एक साल में आयात 45% तक बढ़ गया। आयात से मतलब है कि चीन में बने हुए सामान भारत में मंगाये जा रहे हैं। तो फिर चीनी सामानों के बहिष्कार का क्या हुआ?
बहिष्कार की बात छोड़ भी दें तो आयात और निर्यात के बीच खाई को देखिए। ऐसा लगता है कि मानो चीन ने भारत के सामानों का बहिष्कार कर रखा हो! अब इस साल के आँकड़े को ही देख लें। अप्रैल से अक्टूबर, 2022 के बीच चीन से कुल आयात 60.27 बिलियन डॉलर का था। जबकि अप्रैल से अक्टूबर, 2022 के बीच भारत से चीन को निर्यात सिर्फ 8.77 बिलियन डॉलर का हो पाया। कहीं चीन ने तो आर्थिक बहिष्कार नहीं कर रखा है?
अब यदि व्यापार की बात की जाए तो भी बहिष्कार की स्थिति नहीं दिखती है। भारत-चीन के बीच कुल व्यापार 2020-21 में 86.39 बिलियन डॉलर था जो 2021-22 में बढ़कर 115.83 बिलियन डॉलर हो गया। यानी दोनों देशों के बीच व्यापार में 34.07 प्रतिशत का इजाफा हुआ। फिर बहिष्कार कहाँ है?
फिर सवाल है कि तवांग संघर्ष के बाद चीन के साथ व्यापार संबंधों को ख़त्म करने की ताजा मांग का क्या मतलब है? क्या बहिष्कार एक तरह से बच्चों के हाथ में झुनझुना पकड़ाने जैसा नहीं है? क्या बहिष्कार सोशल मीडिया पर 'उग्र राष्ट्रवादियों' के हाथ में पकड़ाने वाला सिर्फ़ एक हथियार नहीं है जिससे कि वे सोशल मीडिया पर ही लड़ते रहें और मुद्दा शांत होते ही बहिष्कार का 'भूत' भी उतर जाए?
क्या यह संभव है कि जो भारतीय उद्योग चीनी सामान पर निर्भर हों, उस सामान का आयात बंद कर दिया जाए? भारत चीन से खिलौने, बिजली की लैंप, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, कंप्यूटर के पार्ट्स, मोटर गाड़ी और मोटर साइकिल के कल पुर्जे, उर्वरक, एंटीबायोटिक्स, दवाएं, व मोबाइल फ़ोन खरीदता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, मोटर कार, मोटर साइकिल, मोबाइल फ़ोन, उवर्रक व दवा उद्योग पूरी तरह चीनी आयात पर निर्भर है। चीन से भारत इंटरमीडिएट प्रोडक्ट्स लेता है, यानी वे उत्पाद जिनके आधार पर कोई दूसरा उत्पाद तैयार होता है। इनमें दवा व वाहन प्रमुख हैं।
इसके अलावा मोबाइल और कंप्यूटर उद्योग तो मोटे तौर पर चीनी कल-पुर्जों को जोड़ कर नया उत्पाद बनाने तक सीमित है। इन चीनी कल-पुर्जों के बिना इन उद्योगों को चलाना बेहद मुश्किल होगा।
इसके बाद सवाल यह उठता है कि क्या भारत नियमानुसार चीनी उत्पादों पर नियंत्रण लगा सकता है? विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार युद्ध की स्थिति और कूटनयिक संबंध नहीं होने पर भी किसी देश के आयात को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
भारत चीनी उत्पादों पर अतिरिक्त आयात कर, एंटी-डंपिंग टैक्स जैसे कर लगा सकता है। लेकिन ऐसा करने पर चीन उसे डब्ल्यूटीओ में चुनौती दे सकता है। सिर्फ़ अतिरिक्त आयात कर ही ऐसी चीज़ है जो भारत किसी बहाने लाद सकता है। लेकिन ऐसा होने पर चीन भारतीय उत्पादों पर भी ऐसा ही कर लाद सकता है।