धारा 370 पर सुप्रीम फैसला आजः केंद्र के कई निर्णय प्रभावित होंगे

08:24 am Dec 11, 2023 | सत्य ब्यूरो

क्या केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का निर्णय संवैधानिक रूप से वैध था? सुप्रीम कोर्ट इसी मुद्दे पर सरकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार, 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाने के लिए तैयार है। सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद 5 सितंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। 

अदालत के फैसले से पिछले चार वर्षों में केंद्र द्वारा लिए गए कई बड़े फैसलों पर इसका असर पड़ने की संभावना है। जानिए वो फैसले क्या-क्या हो सकते हैं जिन पर असर पड़ेगाः

विशेष दर्जा बहाल हो जाएगा

संविधान के अनुच्छेद 370 ने भारतीय संघ में जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था और राज्य के संबंध में केंद्र की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर दिया। इसने राज्य विधायिका को वित्त, रक्षा, विदेशी मामले और संचार को छोड़कर सभी मामलों में अपना कानून बनाने का अधिकार दिया था। अगर अदालत ने सरकार के फैसले को रद्द किया तो राज्य का विशेष दर्जा बहाल हो जाएगा।

धारा 35ए की बहालीः सरकार ने सबसे पहले धारा 35 ए को रद्द किया था। संविधान की धारा 370 के तहत अनुच्छेद 35ए को क्षेत्रीय नियमों के पुराने प्रावधानों को जारी रखने के लिए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए पेश किया गया था। इसने बाहरी लोगों को क्षेत्र में स्थायी रूप से बसने, जमीन खरीदने, स्थानीय सरकारी नौकरियां पाने आदि से रोक दिया था। इसके निरस्त होने पर दूसरे राज्य के लोग यहां जमीन खरीद सकते थे और नौकरियां पा सकते थे। अगर 35 ए को बहाल किया गया तो केंद्र के कई फैसले इससे प्रभावित होंगे। धारा 35 ए को स्थायी निवासी कानून भी कहा जाता है। इसके जरिए जम्मू-कश्मीर की महिलाओं को उस स्थिति में संपत्ति के अधिकार से रोकता है, अगर उन्होंने राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी की हो।

जम्मू-कश्मीर फिर से राज्य बन जाएगा

धारा 370 को रद्द करने केबाद केंद्र ने जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - लद्दाख और जम्मू और कश्मीर में पुनर्गठित किया था। लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा रखी गई थी। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपालों द्वारा किया जा रहा है क्योंकि 5 अगस्त, 2019 के बाद से जम्मू और कश्मीर में कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ है। लेकिन अगर धारा 370 बहाल हुई तो जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा फिर से बहाल हो जाएगा।

परिसीमन भी प्रभावित होगा?: सरकार ने लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन कराया और मई 2022 में, जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग ने नई सीमाओं, नामों और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को अधिसूचित किया। इससे केंद्र शासित प्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव का रास्ता खुला। लेकिन राज्य का दर्जा बहाल होते ही पुराना परिसीमन वापस आ जाएगा। लोकसभा और विधानसभा के पुराने क्षेत्र फिर से बहाल हो जाएंगे।

हालांकि परिसीमन आयोग ने अपने आदेश में उल्लेख नहीं किया था। लेकिन एक बयान में उसने कहा कि केंद्र को विधानसभा में कम से कम दो "कश्मीरी प्रवासियों" को नामित करने का अधिकार हो। जिनके पास पुडुचेरी विधानसभा के नामित सदस्यों की तरह पावर होगी। इसके तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों को "कुछ प्रतिनिधित्व" देना शामिल है। एक सूत्र ने कहा कि यह एक “प्रस्ताव” है जिस पर केंद्र फैसला करेगा।

फरवरी 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने नए केंद्र शासित प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से समायोजित करने के लिए जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग के गठन की चुनौती को खारिज कर दिया था।

पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को वोट का अधिकार छिनेगा?

सरकार ने जम्मू और कश्मीर के चुनाव में "बाहरी लोगों" को वोट डालने का रास्ता खोल दिया था। इसमें ऐसे लोग थे जो 5 अगस्त, 2019 से पहले जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं थे। अब कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य की विधानसभा, पंचायत और नगरपालिका में मतदान करने या चुनाव लड़ने के लिए पात्र हो सकता है। लेकिन उसे यूटी के "सामान्य निवासी" होने की शर्त को पूरा करना होगा। सरकार ने गैर-मूल निवासियों के लिए दरवाजे खोले जाने के साथ-साथ पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी, जो 70 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं,उन्हें भी मतदान का अधिकार दे दिया था।

गृह मंत्रालय के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश में पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के 5,746 परिवार हैं, जिनमें से अधिकांश कठुआ, सांबा और जम्मू के तीन जिलों में रहते हैं। हालाँकि, समुदाय के नेताओं का दावा है कि परिवारों की संख्या 20,000 हो गई है।