प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे पर क्या किया था सुप्रीम कोर्ट ने?

05:55 pm Apr 23, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कोरोना मुद्दे से जुड़े अलग-अलग हाई कोर्टों में चल रहे तमाम मामलों को स्वत: संज्ञान लेकर अपने नियंत्रण में लेने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से कई सवाल उठ तो रहे हैं, पर यह काम सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भी किया था। उसने उस समय लॉकडाउन लगने के बाद प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर अलग-अलग हाई कोर्टों में चल रहे मामलों को खुद अपने पास ले लिया था।

लेकिन कोरोना मामलो में हाई कोर्टों ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर अपने अधीन ये मामले ले लिए, इससे सवाल उठने लगा है। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही किया था। क्या यह महज संयोग है, यह एक अहम सवाल है। 

क्या किया सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2020 में अलह-अलग हाई कोर्टों में चल रहे प्रवासी मजदूरों के मामलों को ले लिया था। उसने उसके बाद से अब तक छह बार सुनवाई की हैं। इन सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्य सरकारों से अब तक हलफ़नामा दायर करने को ही कहा है।

राज्यों को ये हलफ़नामे प्रवासी मज़दूरों की संख्या, उन्हें उनके गृह राज्य तक पहुँचाने की राज्य सरार की योजना, उनके पंजीकरण की प्रक्रिया, इन मुद्दों पर बस हलफ़नाम देने को ही अब तक कहा है। 

कुछ राज्यों ने कुछ मुद्दों पर अब तक हलफ़नामा दिया ही नहीं है। सितंबर 2020 के बाद से अब तक सुप्रीम कोर्ट में इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। 

सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों से मामले लिए तो खुद उसने क्या किया और सितंबर के बाद से अब तक यह मामला आगे क्यों नहीं बढ़ा है। दूसरा सवाल यह भी है कि यदि हाई कोर्टों के पास ही मामले छोड़ दिए गए होते तो क्या उसने भी अब तक ऐसा ही किया होता।

हाई कोर्टों की फटकार

इसके साथ ही जब कोरोना मामलों को हाई कोर्टों से लेने की स्थिति पर विचार करते हैं तो स्थिति ज़्यादा साफ हो जाती है। ये वे मामले हैं, जिनमें हाई कोर्टों ने केंद्र सरकार की आलोचना की है। 

इसे हम तीन उदाहरण से समझ सकते हैं। 

बंबई हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ऑक्सीजन आपूर्ति में कटौती करने के लिए केंद्र सरकार को लताड़ लगाते हुए आदेश दिया है कि वह पहले की तरह ही आपूर्ति सुनिश्चित करे। 

अदालत ने स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की 18 अप्रैल की उस चिट्ठी का हवाला दिया जिसमें केंद्र सरकार ने  महाराष्ट्र सरकार से कहा था कि भिलाई संयंत्र से उसे ऑक्सीजन की आपूर्ति 110 टन रोज़ाना से कम कर 60 टन कर दी जाएगी। 

जस्टिस सुनील सुकरे व जस्टिस एस. एम. मोदक के खंडपीठ ने इस पर केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए सवाल किया कि उसने ऐसा क्यों किया जबकि देश के 40 प्रतिशत कोरोना रोगी सिर्फ महाराष्ट्र में ही हैं। 

खंडपीठ ने कहा कि सबसे ज़्यादा कोरोना रोगी महाराष्ट्र में होने को देखते हुए केंद्र सरकार को ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ा कर 200-300 टन कर देना चाहिए था, लेकिन उसमें कटौती कर दी।

हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि महाराष्ट्र को पहले की तरह ही रोज़ाना 110 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दिया जाना चाहिए। 

क्या कहा नागपुर बेंच ने?

एक दूसरे मामले में बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने भी केंद्र सरकारी को फटकार लगाई। नागपुर बेंच ने रेमडिसिविर दवा की आपूर्ति में कटौती किए जाने के फैसले को भी निरस्त कर दिया था। अदालत ने आदेश दिया था कि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र को उसके हिस्से का 12,404 वायल रेमडिसिविर इंजेक्शन दिया जाना चाहिए। 

दिल्ली हाई कोर्ट की लताड़

इसके ठीक एक दिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि उसके लिए मानव जीवन की कोई कीमत नहीं है। अदालत ने बुधवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से कहा, 'भीख माँगो, किसी से उधार लो या चोरी करो, पर ऑक्सीजन दो।'

जस्टिस विपिन संघी और जस्टिस रेखा पल्ली के खंडपीठ ने इस पर सुनवाई करने के बाद ऑक्सीजन आपूर्ति करने का आदेश केंद्र सरकार को देते हुए बहुत ही तीखी टिप्पणी की। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा, 'हम यह देख कर दुखी और सदमे में हैं कि सरकार वास्तविकता नहीं देख रही है।' 

दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार से कहा, 'हमें लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी है और हम आदेश देते हैं कि आम भीख मांगें, उधार लें या चोरी करें, जो करना हो करें लेकिन आपको ऑक्सीजन देना है। हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते।' 

हालांकि संविधान की धारा 139 ए में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार किया दिया गया है कि वह हाई कोर्ट से कोई मामला स्वत: संज्ञान लेकर अपने पास ले सकता है, पर इस धारा का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है।

सुप्रीम कोर्ट इस धारा का इस्तेमाल कर हाई कोर्टों से मामले अपने हाथ में तब लेता है जब किसी विषय पर अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग राय हो। सुप्रीम कोर्ट मोटे तौर पर यह मानता रहा है कि स्थानीय मुद्दों को हाई कोर्ट बेहतर ढंग से निपटा सकते हैं। 

निजी कंपनियों, अस्पतालों वगैरह को आपात स्थिति को देखते हुए हाई कोर्ट जाना पड़ रहा है। अब इन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। 

बार एसोसिएशन ने किया विरोध

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कोरोना से जुड़े दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित मामलों के स्वत: संज्ञान लेकर अपने अधीन लेने के सुप्रीम कोर्ट के कदम का विरोध किया है। 

एसोसिएशन ने कहा है कि पहले से तैयारी नहीं होने के कारण स्थानीय स्तर पर दिक्क़तें हो रही हैं, हाई कोर्ट उन्हें सुलझाने की कोशिशें कर रहे हैं, ऐसे में इन मामलों को उन हाई कोर्ट के पास ही रहने देना चाहिए।

एसोसिएशन ने कहा, इस स्थिति से निपटने के लिए हाई कोर्ट सबसे ठीक है, ऐसे में उचित है कि स्थानीय मामलों को हाई कोर्ट को ही सुलझाने देना चाहिए।