सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अयोध्या विवाद पर हुई मध्यस्थता के नतीजों की रिपोर्ट पर विचार करेगा। मध्यस्थता कमेटी ने बृहस्पतिवार को रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत को सौंप दी थी। राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद का निपटारा आपसी बातचीत से करने के लिए इस कमेटी का गठन किया गया था।
पाँच जजों के संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कमेटी से कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट 1 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट को सौंप दे ताकि उसके बाद रोज-रोज की सुनवाई शुरू की जा सके। इसके पहले मध्यस्थता कमेटी ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए संविधान पीठ से और समय देने की माँग की, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया। कमेटी की रिपोर्ट को देखने के बाद संविधान पीठ ने मध्यस्थता कमेटी का कार्यकाल 15 अगस्त तक बढ़ा दिया था। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई की थी।
क्या है अयोध्या मध्यस्थता कमेटी?
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में समाधान के लिए मध्यस्थों की एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस एफ़. एम. कलीफ़ुल्ला (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाँचू को भी शामिल किया गया था। समिति ने मामले की मध्यस्थता को लेकर रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी। समिति ने सभी पक्षों से कहा था कि वे इसकी गोपनीयता को बनाये रखें।
मध्यस्थता और बातचीत के ज़रिए अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिशें पहले भी कई बार हुईं हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 3 अगस्त, 2010 को सुनवाई के बाद सभी पक्षों के वकीलों को बुला कर यह प्रस्ताव रखा था कि बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की जाए। लेकिन हिन्दू पक्ष ने बातचीत से मामला सुलझाने की पेशकश को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2017 में मंदिर विवाद को कोर्ट के बाहर ही सुलझाने की सलाह दी थी। कोर्ट ने कहा था कि यह विवाद धर्म और आस्था से जुड़ा है, इसमें दोनों पक्ष आपस में बातचीत करके मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करें। कोर्ट ने तब कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो कोर्ट मध्यस्थता के लिए तैयार है।
मध्यस्थता चल रही थी, लेकिन बाद में विवाद के मूल पक्षकारों में से एक गोपाल सिंह विशारद के वंशजों ने संविधान पीठ से कहा था कि मध्यस्थता की प्रक्रिया की कोई ख़ास प्रगति नहीं है, लिहाज़ा सुनवाई के ज़रिए ही इस मामले का निपटारा किया जाए। इसके बाद संविधान पीठ ने कमेटी से कहा था कि वह मध्यस्थता के नतीजों की रिपोर्ट दे दे ताकि उस पर विचार किया जा सके और उसके बाद ज़रूरत पड़ने पर सुनवाई शुरू की जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर रोज़ाना सुनवाई 2 अगस्त से शुरू की जाएगी।