सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'मोदी सरनेम' टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल जज ने मामले में अधिकतम दो साल की सजा सुनाई है, अगर सजा एक दिन कम होती तो अयोग्यता नहीं होती।
इसी दो साल की सजा की वजह से राहुल गांधी को मौजूदा लोकसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। और इसी सजा की वजह से आगामी 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने की उनकी योग्यता पर सवालिया निशान लगा दिया था। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की यह रोक उनकी अपील पर अंतिम फैसला आने तक लंबित है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अधिकतम 2 साल कैद की सजा देने का कोई कारण नहीं बताया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला तब आया है जब राहुल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनके खिलाफ मानहानि मामले में शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल उपनाम मोदी नहीं है और वह (पूर्णेश) मोध वणिका समाज से हैं। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'सबसे पहले, पूर्णेश मोदी का मूल उपनाम मोदी नहीं है... उन्होंने अपना उपनाम बदल लिया... राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें से एक ने भी मुकदमा नहीं किया है। दिलचस्प बात यह है कि 13 करोड़ के इस 'छोटे' समुदाय में जो भी लोग पीड़ित हैं, मुकदमा करने वाले केवल भाजपा पदाधिकारी हैं।'
हालाँकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बयान अच्छा नहीं है, सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की उम्मीद की जाती है। इस अदालत ने अवमानना याचिका में उनके हलफनामे को स्वीकार करते हुए कहा कि उन्हें अधिक सावधान रहना चाहिए था।
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मानहानि मामले में कांग्रेस नेता की सजा को बरकरार रखने के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राहुल की याचिका पर सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को राहत देते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश के प्रभाव व्यापक हैं। इसने कहा कि इससे न केवल राहुल का सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि उन्हें चुनने वाले मतदाताओं का अधिकार भी प्रभावित हुआ।
राहुल गांधी ने अप्रैल में सूरत की सत्र अदालत से कहा था कि मानहानि मामले में मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा उनकी सजा गलत और साफ़ तौर पर विकृत थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें इस तरह से सजा सुनाई गई थी ताकि संसद सदस्य के रूप में अयोग्यता के दायरे में लाया जा सके। उन्होंने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने उनके साथ कठोर व्यवहार किया था, जो एक सांसद के रूप में उनकी स्टेटस से 'अत्यधिक प्रभावित' था।
राहुल गांधी के वकील ने तर्क दिया कि कांग्रेस नेता के लिए संसद में भाग लेने और चुनाव लड़ने के लिए बरी होने का यह आखिरी मौका है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने 66 दिनों के लिए अपना फैसला सुरक्षित रखा था, और मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण राहुल गांधी पहले ही संसद के दो सत्र से दूर रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुकदमा पूरा हो चुका है और राहुल गांधी को दोषी भी ठहराया जा चुका है, फिर भी अभी तक कोई सबूत नहीं है।
न्यायमूर्ति गवई ने सुनवाई की शुरुआत में कहा था कि राहुल गांधी को दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए एक असाधारण मामला बनाना होगा, जिस पर सिंघवी ने कहा कि वह आज दोषसिद्धि पर बहस नहीं कर रहे हैं। सिंघवी ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल उपनाम मोदी नहीं है और उन्होंने इसे बदल दिया है। उन्होंने तर्क दिया, 'शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी ने खुद कहा कि उनका मूल उपनाम मोदी नहीं है। वह मोध वनिका समाज से हैं।' उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें से एक ने भी उन पर मुकदमा नहीं किया है।
बता दें कि सूरत के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने 23 मार्च को राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 499 और 500 तहत आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी। राहुल ने वह टिप्पणी कर्नाटक में एक चुनावी रैली में की थी। चुनावी रैलियों और सभाओं में अक्सर नेता विरोधी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ कई बार विवादित टिप्पणी कर बैठते हैं या फिर सीमा को लांघ जाते हैं।
राहुल ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कह दिया था, 'क्यों सभी चोरों का समान सरनेम मोदी ही होता है? चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी? सारे चोरों के नाम में मोदी क्यों जुड़ा हुआ है।'
राहुल के इस बयान का बीजेपी समर्थकों ने काफ़ी विरोध किया था। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने याचिका दायर की थी। इसी पर सत्र न्यायालय ने सजा दी थी। राहुल गांधी को झटका देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने 7 जुलाई को दोषसिद्धि पर रोक लगाने की उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि 'राजनीति में शुद्धता' समय की ज़रूरत है। इसके बाद राहुल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।