सुप्रीम कोर्ट ने बिना ट्रायल के ही लोगों को लगातार जेल में रखने के लिए ईडी से कड़े सवाल किए हैं। किसी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार करने और ऐसे व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक जेल में रखने के लिए पूरक आरोप पत्र दाखिल करने पर अदालत ने नाराज़गी जताई। इसने कहा कि आरोपियों को बिना ट्रायल के प्रभावी ढंग से जेल में रखने की यह प्रथा सुप्रीम कोर्ट को परेशान करती है।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुनवाई की। न्यायमूर्ति खन्ना ने ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू से कहा, 'डिफ़ॉल्ट जमानत का पूरा उद्देश्य यह है कि आप जांच पूरी होने तक गिरफ्तार नहीं करते हैं। आप यह नहीं कह सकते कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, ट्रायल शुरू नहीं होगा। आप पूरक आरोप-पत्र दाखिल नहीं करते रह सकते और फिर वह व्यक्ति बिना किसी ट्रायल के जेल में हो।'
अदालत ने यह टिप्पणी झारखंड के अवैध खनन मामले से जुड़े एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। आरोपी प्रेम प्रकाश पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कथित सहयोगी हैं। सोरेन को पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी ने गिरफ्तार किया था।
प्रकाश को पिछले साल जनवरी में झारखंड उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्होंने 18 महीने जेल में बिताए और इसे जमानत का स्पष्ट मामला बताया।
इस पर राजू ने आरोपियों को रिहा किए जाने पर सबूतों या गवाहों से छेड़छाड़ की चिंता जताई, लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं हुई। जस्टिस खन्ना ने जांच एजेंसी के वकील से कहा, 'अगर वह ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप हमारे पास आएं...'। उन्होंने आगे कहा, '...लेकिन 18 महीने सलाखों के पीछे?'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'इस मामले में व्यक्ति 18 महीने से सलाखों के पीछे है। यह हमें परेशान कर रहा है। किसी मामले में हम इसे उठाएंगे और हम इसमें आपको नोटिस दे रहे हैं। जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं तो मुकदमा शुरू होना चाहिए।'
मौजूदा क़ानूनों के तहत एक गिरफ्तार व्यक्ति डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए पात्र है यदि अधिकारी सीआरपीसी, या आपराधिक प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित समयसीमा के भीतर जांच पूरी करने, या अंतिम आरोप पत्र दायर करने में असमर्थ हैं। मामले की परिस्थितियों के आधार पर यह समयावधि या तो 60 या 90 दिन है।
हालांकि, प्रेम प्रकाश को बुधवार को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया, अदालत ने मुकदमे की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए एक महीने के लिए कार्यवाही आयोजित करने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया, जो अब हर रोज होगी।
अदालत ने पिछले साल अप्रैल में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी। तब जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा था, 'जांच पूरी किए बिना, किसी गिरफ्तार आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार से वंचित करने के लिए एक जांच एजेंसी द्वारा आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता है'।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से कई बड़े मामले प्रभावित हो सकते हैं। इनमें विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हैं। ईडी ने ऐसे कई नेताओं को जेल में रखा है जिनका ट्रायल अभी तक शुरू नहीं हुआ है और कई आरोप-पत्र दायर किए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए की धारा 45 के तहत लंबे समय तक जेल में रहने के कारण जमानत का अधिकार तब दिया जा सकता है, जब प्रथम दृष्टया यह विश्वास हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और उसके अपराध करने की संभावना नहीं है।
अदालत ने वरिष्ठ आप नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की कैद का जिक्र किया, जिन्हें फरवरी 2023 में शराब नीति मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था।
जस्टिस खन्ना ने कहा, 'मनीष सिसोदिया के मामले में भी, मैंने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत कुछ अलग है। यदि मुकदमे में देरी होती है, तो जमानत देने की अदालत की शक्ति नहीं छीनी जाती है।'
डिफॉल्ट जमानत और पूरक आरोप पत्र पर शीर्ष अदालत की टिप्पणियां विपक्ष के आरोपों के बीच आईं कि ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी केंद्रीय एजेंसियां सत्तारूढ़ भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों को विशेष रूप से चुनाव से पहले निशाना बनाती हैं, ताकि उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सके। भाजपा ने इस तरह के आरोपों को खारिज कर दिया है और जोर देकर कहा है कि सीबीआई और ईडी स्वतंत्र हैं और सभी भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के सरकार के संकल्प की दिशा में काम कर रहे हैं।